छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: दूषित मध्याह्न भोजन खाने वाले 84 छात्रों को 25-25 हज़ार का मुआवज़ा

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: दूषित मध्याह्न भोजन खाने वाले 84 छात्रों को 25-25 हज़ार का मुआवज़ा

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार ज़िले के पलारी ब्लॉक के लच्छनपुर सरकारी माध्यमिक विद्यालय में एक बेहद चिंताजनक और चौंकाने वाली घटना सामने आई। यहाँ मध्याह्न भोजन योजना के तहत 84 छात्रों को ऐसा भोजन परोसा गया, जिसे एक आवारा कुत्ते ने गंदा कर दिया था। इस घटना ने शिक्षा व्यवस्था और बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

मामला अदालत तक पहुँचा और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इसे बेहद गंभीर लापरवाही मानते हुए सरकार को आदेश दिया कि सभी प्रभावित छात्रों को 25-25 हज़ार रुपये का मुआवज़ा दिया जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मुआवज़ा एक महीने के भीतर हर हाल में बच्चों तक पहुँचना चाहिए।


घटना का पूरा विवरण

यह घटना 28 जुलाई को हुई, जब स्कूल में बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन तैयार किया जा रहा था। अचानक एक आवारा कुत्ता खाना पकने वाले स्थान पर पहुँच गया और भोजन को दूषित कर दिया। कुछ बच्चों ने यह सब अपनी आँखों से देखा और तुरंत शिक्षकों को इसकी जानकारी दी। लेकिन दुर्भाग्य से किसी शिक्षक या स्टाफ ने इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया।

परिणाम यह हुआ कि वही दूषित खाना सभी 84 छात्रों को परोसा गया। यह लापरवाही इतनी गंभीर थी कि बच्चों के स्वास्थ्य को बड़ा खतरा हो सकता था।


अभिभावकों का गुस्सा और प्रशासन की कार्रवाई

जब यह बात छात्रों के अभिभावकों तक पहुँची तो उन्होंने स्कूल प्रशासन से कड़ा विरोध दर्ज कराया। स्थानीय स्तर पर जमकर नाराज़गी देखने को मिली। बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावक दहशत में आ गए।

बाद में प्रशासन हरकत में आया। स्कूल के प्रधानाचार्य संतोष कुमार साहू, क्लस्टर प्रमुख, भोजन तैयार करने वाला स्व-सहायता समूह, और कुछ जिम्मेदार कर्मचारी तुरंत निलंबित कर दिए गए। इसके अलावा सभी 84 बच्चों को एहतियातन तीन-तीन रैबीज़ विरोधी इंजेक्शन लगवाए गए, ताकि किसी भी संभावित संक्रमण को रोका जा सके।


हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

मामला जब हाईकोर्ट पहुँचा तो न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी. डी. गरु की खंडपीठ ने बेहद सख्त टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि जानवर द्वारा दूषित भोजन को बच्चों को परोसना सीधे तौर पर राज्य सरकार और शिक्षा विभाग की लापरवाही है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर बच्चों को किसी गंभीर बीमारी का संक्रमण हो जाता तो यह मामला जानलेवा भी साबित हो सकता था। इस तरह की घटनाएँ सरकार की जिम्मेदारी पर सीधा सवाल उठाती हैं।

इसीलिए अदालत ने आदेश दिया कि हर प्रभावित छात्र को ₹25,000 का मुआवज़ा दिया जाए। यह राशि केवल हानि की भरपाई के लिए नहीं, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने के लिए चेतावनी के रूप में भी देखी जानी चाहिए।


मध्याह्न भोजन योजना पर सवाल

यह घटना सिर्फ़ एक स्कूल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे मध्याह्न भोजन कार्यक्रम पर सवाल खड़े करती है। यह योजना लाखों बच्चों के लिए पोषण और शिक्षा से जुड़े अवसर देती है। गरीब परिवारों के बच्चे इसी योजना पर निर्भर रहते हैं। लेकिन जब भोजन की सुरक्षा और गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता, तो बच्चों का जीवन खतरे में पड़ सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, जानवरों द्वारा दूषित भोजन खाने से बैक्टीरिया, परजीवी और वायरस फैल सकते हैं। कुत्तों से रैबीज़ जैसी खतरनाक बीमारी का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में यदि कोई घटना हो जाए तो दूषित भोजन को तुरंत नष्ट कर देना चाहिए और बच्चों को बिल्कुल भी नहीं परोसना चाहिए।


भविष्य के लिए सबक

हाईकोर्ट के आदेश से यह साफ हो गया है कि सरकार और प्रशासन अब और लापरवाही बर्दाश्त नहीं कर सकते। कुछ अहम बिंदु जिन पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है:

  1. किचन और भंडारण स्थल की सुरक्षा – स्कूलों में भोजन पकाने और रखने की जगह पर पालतू या आवारा जानवरों का प्रवेश पूरी तरह रोकना होगा।

  2. स्टाफ का प्रशिक्षण – जो लोग भोजन पकाते और परोसते हैं, उन्हें स्वच्छता और स्वास्थ्य मानकों की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।

  3. नियमित निगरानी – स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग को स्कूलों का नियमित निरीक्षण करना चाहिए।

  4. आपातकालीन प्रोटोकॉल – अगर भोजन दूषित हो जाए, तो उसे तुरंत फेंकने और बच्चों को वैकल्पिक भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था होनी चाहिए।

  5. जवाबदेही तय करना – इस तरह की घटनाओं पर तुरंत जिम्मेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।


निष्कर्ष

लच्छनपुर स्कूल की यह घटना एक बड़ी चेतावनी है। यह सिर्फ़ बच्चों के भोजन की गुणवत्ता का मामला नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी, सेहत और सम्मान से जुड़ा मुद्दा है। बच्चों को सुरक्षित और स्वच्छ भोजन देना सरकार और शिक्षा विभाग की पहली जिम्मेदारी है।

हाईकोर्ट का आदेश सिर्फ़ मुआवज़े तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है कि अगर बच्चों के साथ लापरवाही हुई तो सरकार को उसकी कीमत चुकानी होगी। उम्मीद की जा रही है कि इस फैसले के बाद राज्य और देश भर में मध्याह्न भोजन योजना को और सुरक्षित, पारदर्शी और जिम्मेदार बनाया जाएगा।

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