CGPSC 2021 भर्ती घोटाले में हाई कोर्ट ने “बे-दाग” अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी करने का आदेश

CGPSC 2021 भर्ती घोटाले में हाई कोर्ट ने “बे-दाग” अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी करने का आदेश

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (CGPSC) की 2021 की परीक्षा से जुड़ा एक बड़ा विवाद न्यायालय तक पहुँच गया है। इस परीक्षा-भर्ती को लेकर आरोप लगे थे कि इसमें गड़बड़ी हुई है। लेकिन अब न्यायालय ने उन अभ्यर्थियों को एक बड़ी राहत दी है जो पूरी तरह से निर्दोष हैं — जिनका नाम जांच एजेंसियों की चार्जशीट में नहीं है और जिनके खिलाफ कोई प्रतिकूल तथ्य नहीं मिले हैं। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि ये “बे-दाग” अभ्यर्थी 60 दिनों के अंदर नियुक्ति पत्र प्राप्त करें।


पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2021 में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने कई महत्वपूर्ण सरकारी पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी। ये भर्ती 20 तरह की सेवाओं में थीं, जैसे कि डिप्टी कलेक्टर, डिप्टी एसपी, लेखाधिकारी, जेल अधीक्षक, नायब तहसीलदार आदि। कुल मिलाकर यह भर्ती 171 पदों के लिए थी।

  • परीक्षा की प्रक्रिया हुई, और परिणाम घोषित हुए। लेकिन इसके बाद आरोप लगे कि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं रही — गड़बड़ियाँ हुई हैं, कुछ उम्मीदवारों को अनायास प्राथमिकता मिली हो सकती है। इस तरह की शिकायतों के बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई।


हाई कोर्ट का आदेश

  • न्यायमंत्री न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि जो अभ्यर्थी “बे-दाग” हैं — यानी जिनका नाम चार्जशीट में नहीं है और जिनके खिलाफ कोई आपराधिक या नकारात्मक तथ्य नहीं मिले हैं — उन्हें 60 दिनों के भीतर नियुक्ति पत्र जारी किया जाए।

  • अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि नियुक्ति पत्र मिलने के बाद यदि जांच में किसी तरह की गड़बड़ी पाई जाती है तो उन अभ्यर्थियों को सेवा से हटाया जा सकता है।


“बे-दाग” अभ्यर्थियों का मतलब क्या है?

“बे-दाग” से तात्पर्य है:

  1. जिनका नाम सीबीआई या अन्य जांच एजेंसियों की चार्जशीट में शामिल नहीं है।

  2. जिनके खिलाफ कोई आपराधिक आरोप, तथ्य या सबूत नहीं मिले हैं।

  3. जिनकी पृष्ठभूमि, रिकॉर्ड या कड़ी जांच में दोष नहीं पाया गया हो।

यहीं हालत उन उम्मीदवारों के लिए न्यायालय ने नियुक्ति की अनुमति दी है, ताकि उनकी उम्मीदवारी को अनावश्यक देरी या अड़चन का सामना न करना पड़े।


कारण और चुनौती

  • जब भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप लगते हैं, तो सरकार या भर्ती एजेंसियाँ अक्सर पूरा चयन रद्द कर देती हैं या नियुक्तियों को टाल देती हैं। इससे कई निर्दोष उम्मीदवार प्रभावित होते हैं जो किसी भी प्रकार की गड़बड़ी में शामिल नहीं थे।

  • ऐसी स्थिति में न्यायालय का यह कदम यह सुनिश्चित करता है कि निष्पक्ष उम्मीदवारों को उनका हक़ मिले, और पूरे चयन को अस्थायी रूप से नहीं टाला जाए।


कहां से हुआ था ब्रेक

  • आरोपों के बाद सीबीआई जांच शुरू हुई।

  • जांच के बीच नियुक्ति पत्र जारी करने पर रोक लग गई थी।

  • कुछ उम्मीदवारों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, क्योंकि उनका मानना था कि उन्हें कोई दोष नहीं है, फिर भी उन्हें भर्ती से वंचित रखा जा रहा है।

  • न्यायालय ने सुनवाई में यह माना कि सिर्फ आरोप लगने भर से पूरी प्रक्रिया को निलंबित करना, उन लोगों के भविष्य के साथ अन्याय है जिनके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिले हैं।


भावी प्रभाव और चुनौतियाँ

  • इन निर्दोष उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र मिलने से उनके करियर को बड़ा बल मिलेगा। आर्थिक स्थिति, नौकरी की अनिश्चितता आदि पर से दबाव कम होगा।

  • लेकिन, उच्च न्यायालय ने यह साफ कहा है कि यह नियुक्ति स्थायी नहीं होगी यदि आगे जांच में कुछ असाधारण तथ्य निकलें।

  • कानून व्यवस्था और भर्ती प्रणाली के लिए यह एक संदेश है कि पारदर्शिता ज़रूरी है और जांच-प्रक्रिया में दोषी साबित हुए लोगों को न्याय के अनुसार दायित्व झेलना होगा।

  • सरकार और भर्ती विभागों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में भर्ती प्रक्रियाएँ ऐसी हों कि अपराधिक आरोपों या गड़बड़ी के बाद निर्दोषों की उम्मीदवारी पर असर ना पड़े।


निष्कर्ष

चुनावी घोटाले, भर्ती धोखाधड़ी जैसे मामलों में अक्सर निर्दोष उम्मीदवारों का भविष्य अनिश्चित हो जाता है। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायालय केवल आरोपों या सुचनाओं पर पूरी प्रक्रिया को रोक देने की अनुमति नहीं देगा।

“बे-दाग” उम्मीदवारों को न्याय मिलने की उम्मीद है, और राज्य को 60 दिनों के भीतर नियुक्ति पत्र जारी करना होगा। साथ ही, यह फैसला भविष्य की भर्ती प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा — पारदर्शिता, निष्पक्षता और कार्यवाही की समय-सीमा की ज़रूरत पर जोर देना।

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