हाईवे पर रील बनाने का वीडियो वायरल होने के बाद हाईकोर्ट ने पुलिस को लगाई फटकार

हाईवे पर रील बनाने का वीडियो वायरल होने के बाद हाईकोर्ट ने पुलिस को लगाई फटकार

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक सोशल मीडिया वीडियो ने बड़े विवाद को जन्म दिया, जिससे हाईवे पर ट्रैफिक बाधित हुई, और न्यायालय ने पुलिस की कार्रवाई की कठोर आलोचना की है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुछ युवाओं द्वारा “रील बनाने” की घटना हुई जिसमें लग्ज़री गाड़ियों को हाईवे पर पार्क कर दिया गया, वीडियो बनाया गया, ड्रोन और रोशनी की व्यवस्था की गई। इस घटना ने हाईवे नियमों और सार्वजनिक सुरक्षा पर झंडा खड़ा कर दिया है।


क्या हुआ था

  • घटना उस समय की है जब कुछ युवाओं ने एक नई लग्ज़री SUV खरीदी थी, और उसे सेलिब्रेशन के मौके पर हाईवे पर दोस्तों के साथ रील बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहा। इस दौरान उन्होंने अपनी गाड़ियाँ नेशनल हाईवे के बीचों-बीच रोक दीं, हाईवे को ब्लॉक कर दिया गया। कुछ गाड़ियाँ दोनों ओर लगाई गईं, चलती ट्रैफ़िक रोक दी गई, लोगों और वाहनों की आवाजाही बाधित हुई। 

  • वीडियो में देखा गया कि ड्रोन, पेशेवर कैमरा, रोशनी आदि का इस्तेमाल हुआ ताकि स्थिति दर्शनीय बने। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। 


पुलिस की शुरुआत की कार्रवाई और शिकायतें

  • पुलिस ने शुरू में मोटर वाहन अधिनियम की धारा 184 के तहत चालान काटे। यह धारा आमतौर पर वाहन परिचालन के नियमों के उल्लंघन, सुरक्षित ड्राइविंग न करने आदि से संबंधित है। 

  • इसके साथ ही पुलिस ने आरटीओ (रिकॉर्डिंग और लाइसेंस प्राधिकरण) को पत्र लिखा कि involved ड्राइवरों के लाइसेंस सस्पेंड किए जाएँ। 

  • लेकिन विवाद इस बात का है कि पुलिस ने उस स्थिति को पूरी तरह नियंत्रण में नहीं लिया: गाड़ियाँ जब्त नहीं की गईं, FIR तुरंत दर्ज नहीं हुई, और ना ही किसी तरह की सख्त कार्रवाई की शुरुआत हुई।


हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

  • घटना सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हाईकोर्ट ने स्व-नियत संज्ञान लिया। यानि कि न्यायालय ने बिना किसी प्रार्थना-याचिका के, खुद इस मामले को देखा और शुरुआत हुई।

  • न्यायमूर्ति रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति बी. डी. गुरु की बेंच ने पुलिस की “मेहरबानी” जैसे हल्के कदमों को नोटिस किया जो नियमों के उल्लंघन होने पर पर्याप्त नहीं थे। अदालत ने पूछा कि ऐसी स्थिति में महज मामूली जुर्माना क्यों लगा और रस्मी कार्रवाइयाँ क्यों टाली गईं।

  • हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से एफिडेविट दाखिल करने को कहा है, जिसमें बताया जाए कि इस मामले में पुलिस ने क्या कार्रवाई की, किसने आदेश दिए और क्या सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित की गई।


सामाजिक-कानूनी महत्व

  • हाईवे डॉक्टरों, यात्रियों, सार्वजनिक परिवहन और अन्य लोगों के लिए जीवन रेखा है। जब कोई हाईवे बाधित करता है, तो यह सिर्फ नियम उल्लंघन नहीं, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा की अनदेखी है।

  • सोशल मीडिया की लोकप्रियता के चलते कुछ लोग अपनी “रील” या “कंटेंट” के लिए इस तरह की हलचल करते हैं, जिससे आम लोगों को परेशानी होती है, दुर्घटनाओं का खतरा पैदा हो जाता है, ट्रैफिक जाम होता है। ये वायरल वीडियो आकर्षण के लिए जोखिम उठाते हैं।

  • न्यायालय का कहना है कि कानून सभी के लिए बराबर होना चाहिए, चाहे कोई सामाजिक रूप से कितना भी प्रतिष्ठित हो या ना हो। “प्रिविलेज” या प्रभावशाली होने का मतलब कानून की उपेक्षा नहीं होना चाहिए। 


क्या हो सकता है आगे

  • पुलिस को ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करनी पड़ेगी: वाहनों की त्वरित जब्ती, FIR दर्ज करना, जिसमें मोटर वाहन अधिनियम की ज़रूरी धाराएँ लगें।

  • सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हाईवे नियमों के उल्लंघन पर निगरानी बढ़ानी पड़ेगी।

  • सरकार और प्रशासन को यह देखना होगा कि किस तरह से सोशल मीडिया गतिविधियाँ कानून के दायरे में रहती हों, और कंटेंट क्रिएटर्स को यह समझाना जरूरी है कि नियमों का उल्लंघन करने से सार्वजनिक सुरक्षा प्रभावित होती है।

  • भविष्य में न्यायालय ऐसे मामलों में समय रहते कार्रवाई की अपेक्षा करेगा, ताकि किसी की मनमानी या प्रभाव का फायदा न हो।


निष्कर्ष

यह मामला एक चेतावनी है कि सोशल मीडिया लोकप्रियता के चक्कर में कानून और सार्वजनिक सुरक्षा की अनदेखी बहुत महँगी पड़ सकती है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक सड़कें निजी रंगमंच नहीं हैं जहाँ कोई भी अपनी इच्छानुसार प्रदर्शन कर सकता है।

पुलिस की भूमिका सिर्फ नियमों की उल्लंघन करने वालों को ढूंढने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि कानून सब-के लिए समान हो, और कोई भी ज़बरदस्त प्रभावशाली व्यक्ति नियमों के बाहर न हो। हाईकोर्ट का यह आदेश इस दिशा में एक मजबूत कदम है।

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