15 साल पुराने गांजा तस्करी मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी किया

15 साल पुराने गांजा तस्करी मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी किया

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐसे ड्रग केस में आरोपी को दोषमुक्त कर दिया है जिसकी तारीख लगभग 15 साल पहले की है। आरोपी के घर से बड़ी मात्रा में गांजा बरामद होने के बाद उस पर NDPS एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था। लेकिन अदालत ने पाया कि आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त ठोस साक्ष्य नहीं थे, तथा गिरफ़्तारी / जब्ती की प्रक्रिया में कुछ कमियाँ थीं।


मामला क्या था

  • वर्ष 2010-11 के आसपास पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी के घर पर गांजा संग्रहीत है। सूचना के बाद पुलिस ने रेड मारी और आरोपी के घर से 165 किलो गांजा बरामद किया गया। इसके अलावा नकदी (₹15,240) और तौलने की मशीन भी जब्त हुई थी।

  • इस बरामदगी के आधार पर आरोपी के खिलाफ NDPS एक्ट की धारा 20(बी)(2)(सी) शामिल कर मामला दर्ज किया गया।


विशेष कोर्ट का निर्णय

  • प्रारंभ में इस मामले की सुनवाई एक विशेष अदालत में हुई थी।

  • विशेष अदालत ने भी आरोपी को दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त प्रमाण न होने के कारण बरी कर दिया था।

  • गवाहों के बयानों में कई विरोधाभास पाए गए, और जब्ती व पंचनामा तैयार करने की प्रक्रिया में भी खामियाँ मिलीं।


हाईकोर्ट का फैसला

  • अब हाईकोर्ट ने विशेष अदालत की बरी की गई फैसला को स्वीकार करते हुए पुष्टि की कि साक्ष्यों में विश्वसनीयता की कमी है।

  • दो-न्यायाधीशों की बेंच ने ये कहा कि सिर्फ़ शक के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।

  • अदालत ने यह भी देखा कि गवाहों में से कई ने अपने बयान वापस ले लिए, और जब्त सामानों की प्रमाणिकता और पूरा रिकॉर्ड ठीक-ठाक नहीं पाया गया।


कानूनी बिंदु और महत्वपूर्ण पहलू

  1. “संदेह के आधार पर दोषसिद्धि नहीं”
    — न्यायपालिका ने स्पष्ट किया कि अपराध साबित करने के लिए “बियॉन्ड रीजनेबल डाउट” यानी कि शक से परे दोषसिद्धि जरूरी है।

  2. गवाहों की विश्वसनीयता
    — गवाहों के बयान बदलना, बयान से पलटना, या अधूरे बयान होना, अभियोजन पक्ष की स्थिति कमजोर करता है।

  3. जब्ती और पंचनामा प्रक्रियाएँ
    — जिस तरह से जब्ती किया गया और पंचनामा तैयार किया गया, उस प्रक्रिया में पारदर्शिता, दस्तावेजों की सत्यता, तौल-माप की विश्वसनीय मशीन का होना आदि बातें महत्वपूर्ण होती हैं।

  4. समय-गत न्याय की आवश्यकता
    — यह मामला 15 साल पुराना है, इतने पुराने मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों के लिए न्याय-प्रक्रिया लंबी हो जाती है, सबूत बासी हो सकते हैं, गवाहों की याददाश्त प्रभावित हो सकती है आदि।


आरोपी को राहत कैसे मिली

  • आरोपी को बरी किए जाने का मुख्य कारण “पर्याप्त प्रमाण नहीं मिलना” था।

  • गवाहों ने अपनी दलील से कुछ कहा, लेकिन बाद में अपने बयानों से मुकर गए।

  • जब्त किए गए सामानों का पंचनामा या तौल-तोल की प्रक्रिया न्यायपालिका के निर्देशों व विधिक मानकों के अनुसार पूरी तरह नहीं साबित हुई।


सामाजिक और न्याय-संबंधी महत्व

  • इस तरह के फैसले न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को बढ़ाते हैं क्योंकि वे दिखाते हैं कि आरोपी को सजा देने से पहले पूरा परीक्षण होता है और दोषसिद्धि सिर्फ़ आरोप या शक से नहीं होती।

  • इससे यह संदेश मिलता है कि नियम कानून सभी के लिए बराबर हैं—चाहे वक्त गुजर जाए, लेकिन दोष सिद्ध न हो तो अदालत व्यक्ति को न्याय देती है।

  • आरोपी की ज़िंदगी पर इतने सालों तक लगी कानूनी प्रक्रिया की चुनौतियाँ—तोड़-ताक में जेल-कस्टडी, समाज में कलंक, आर्थिक कठिनाइयाँ आदि—भी सामने आती हैं।


निष्कर्ष

यह फैसला यह दर्शाता है कि न्याय प्रक्रिया में “साख एवं प्रमाणिकता” कितनी महत्वपूर्ण होती है। आरोपी को दोषमुक्त करना अदालत ने सिर्फ इसलिए किया क्योंकि अभियोजन पक्ष ने वह सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाए जिससे कोई भी निष्कर्ष अत्यधिक संभावना के साथ ये हो कि आरोपी दोषी है।

साथ ही, यह लोगों को यह भरोसा देता है कि अगर गिरफ्तारी के बाद साक्ष्य पूरी तरह से हों, प्रक्रिया सही हो, तो न्याय मिलेगा। लेकिन यह भी एक चेतावनी है कि जांच-प्रक्रिया में खामियों को दूर करना जरूरी है — गवाहों की विश्वसनीयता, दस्तावेजी प्रक्रिया, जब्ती-जमानत की प्रक्रिया, पंचनामों की सटीकता आदि — ताकि न्याय में देरी या अन्याय न हो।

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