“माँ काली को बिग डेविल” कहने वाले प्रिंसिपल पर विवाद और FIR

“माँ काली को बिग डेविल” कहने वाले प्रिंसिपल पर विवाद और FIR

11, 8, 2025

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मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ सीमा के निकट अंबिकापुर में स्थित एक सरकारी महाविद्यालय में एक प्राध्यापक की टिप्पणी ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। वनस्पति शास्त्र विभाग के प्राध्यापक प्रो. डॉ. एच. डी. महार द्वारा “माँ काली” के बारे में की गई टिप्पणी - जिसमें उन्होंने देवी को 'बिग डेविल' यानी ‘सबसे बड़ा शैतान’ बताया - ने धार्मिक भावनाएं आहत की हैं।


घटना की शुरुआत

यह मामला महाविद्यालय के एक छात्र-व्हाट्सऐप ग्रुप से शुरू हुआ। प्रो. डॉ. महार ने उस ग्रुप में एक पोस्ट किया जिसमें माँ काली के लिए यह शब्द इस्तेमाल हुए कि वह “बिग डेविल” है। इस पोस्ट के वायरल होने के बाद छात्रों और स्थानीय समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया हुई।

छात्र संगठन (अखिल भारतीय छात्र संगठन) और अन्य हिन्दू संगठन इस पोस्ट को अपमानजनक मानकर प्राचार्य कक्ष में ज्ञापन सौंपने पहुँचे। उनका कहना था कि इस तरह की टिप्पणी न सिर्फ धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाती है, बल्कि सार्वजनिक भावनाएँ भी भड़काती है।


विरोध आंदोलन और राजनीतिक दबाव

  • सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने घटना को लेकर पुलिस प्रशासन से कार्रवाई की मांग की।

  • हिन्दू संगठनों और भाजपा की स्थानीय इकाइयों ने मामला गंभीरता से न लेने पर आंदोलन की चेतावनी भी दी।

  • एक नेता ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियाँ अमर्यादित और अनुचित है, और ऐसे प्राध्यापक पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।


पुलिस कार्रवाई

  • विरोध और ज्ञापन के बाद गांधीनगर थाने की पुलिस ने इस प्राध्यापक के ऊपर भारतीय दंड संहिता की धारा 298 के तहत FIR दर्ज कर दी है। यह धारा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने से संबंधित है।

  • FIR दर्ज होने के बाद प्राध्यापक ने सार्वजनिक रूप से एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने माफी माँगी।


प्राध्यापक की माफी और तर्क

  • प्राध्यापक ने वीडियो में कहा है कि वे स्वयं हिंदू हैं और माँ काली के भक्त भी हैं।

  • उनका कहना है कि टिप्पणी गलती से हुई है, व्याकरण (लड़क-पड़ाव के कारण वाक्य संयोजन) की त्रुटि रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका अभिप्राय किसी की आस्था को ठेस पहुँचाने का नहीं था।

  • प्राध्यापक ने विद्यार्थियों और हिन्दू समाज से हाथ जोड़कर माफी माँगी है और कहा है कि आगे से ऐसी गलती नहीं होगी।


धार्मिक, सामाजिक और कानूनी दृष्टि से महत्व

  • धार्मिक भावनाएँ भारतीय समाज में संवेदनशील विषय हैं; आस्था के नाम पर किए गए किसी भी अपमानजनक कथन से सामाजिक शांति भंग हो सकती है।

  • कानूनी दृष्टिकोण से, धारा 298 के अधिकारी प्रावधान हैं जो धार्मिक भावनाओं को बचाने की कोशिश करते हैं। इस तरह के मामलों में यह देखा जाता है कि क्या टिप्पणी जानबूझकर की गई थी या गलती से हुई थी, और क्या संवाद, माफी, तथा सुधार का अवसर मिला।

  • सामाजिक रूप से, छात्रों और समुदायों में बातचीत और सहिष्णुता की भूमिका बढ़ जाती है कि धार्मिक विविधता और विश्वासों का सम्मान हो।


संभावित परिणाम और आगे की स्थिति

  • पुलिस की FIR के बाद न्यायिक प्रक्रिया आगे बढ़ेगी; तथ्यों की जांच होगी कि टिप्पणी मानसिकता से हुई थी या गलती से।

  • महाविद्यालय की प्रशासन से इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए दिशानिर्देश बनेंगे—कैसे शिक्षक सार्वजनिक मंचों, सोशल मीडिया या छात्रों के ग्रुप में टिप्पणी करें।

  • विद्यार्थी संगठनों, धार्मिक संगठन और महाविद्यालय प्रशासन के बीच संवाद स्थापित किया जा सकता है, ताकि भविष्य में ऐसी सकारात्मक सहमति हो सके कि धार्मिक भावनाएँ सुरक्षित रहें।

  • शिक्षा विभाग या राज्य सरकार इस मामले की समीक्षा कर सकती है कि क्या प्राध्यापक पद पर बने रहना चाहिए या अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।


निष्कर्ष

यह मामला यह दिखाता है कि टिप्पणी का एक शब्द भी कितनी ज़्यादा दूरगामी असर रखता है—आस्था और विश्वास से जुड़ी बात हो, तो संवेदनशीलता ज़रूरी हो जाती है। प्राध्यापक की टिप्पणी, चाहे गलती से हुई हो, लेकिन उसने समाज में चिंता और आक्रोश को जन्म दिया।

माफी माँगना और सार्वजनिक उत्तरदेही स्वीकार करना महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन इसके साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि शिक्षा संस्थानों में यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी शिक्षक और छात्र समानतः धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करें।

इस घटना से हमें एक सीख मिलती है कि भाषा और संवाद में सजगता ज़रूरी है, क्योंकि संवेदनशील विषय जैसे धर्म, आस्था etc. पर किए गए शब्दों का प्रभाव केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरी समाज पर पड़ता है।


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