गुरु घसिदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में नमाज़ कराने का आरोप, विवादों में घिरे शिक्षक

गुरु घसिदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में नमाज़ कराने का आरोप, विवादों में घिरे शिक्षक

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) शिविर के दौरान गुरु घसिदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने यह आरोप लगाया है कि उन्हें बिना सहमति के नमाज़ पढ़ने के लिए मजबूर किया गया। इस घटना ने धार्मिक स्वतंत्रता, सहिष्णुता और शिक्षा संस्थानों में अधिकारों-संवेदनशीलता को लेकर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।


क्या हुआ था

  • घटना मार्च 2025 में हुई, जब गुरु घसिदास केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक NSS शिविर “शिवतराई गाँव, कोटा ब्लॉक” में रहा। शिविर की अवधि 26 मार्च से 1 अप्रैल थी।

  • उस दिन, जो कि मुस्लिम त्योहार ईद-उल-फितर का दिन था (31 मार्च), कुछ छात्रों को सुबह करीब 6 से 7 बजे के बीच योग सभा या अन्य कार्यक्रम के दौरान बुलाया गया। वहाँ मुस्लिम छात्रों ने नमाज़ अदा की और फिर कहा गया कि बाकी छात्रों को भी वही नमाज़ पढ़ने की क्रिया के अनुसार दोहराना चाहिए।

  • कुल मिलाकर लगभग 159 छात्र-छात्राएँ शिविर में शामिल थे, जिनमें से सिर्फ चार मुस्लिम विद्यार्थी थे। बाकी गैर-मुस्लिम थे। आरोप है कि गैर-मुस्लिम छात्रों को इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए दबाव बनाया गया।


आरोपों की प्रकृति और FIR

  • छात्रों ने दावा किया कि जब उन्होंने प्रदर्शन के इस भाग को ग़ैरइच्छानुसार कहा गया हिस्सा मानते हुए विरोध किया, तो उन्हें धमकी दी गई कि यदि उन्होंने हिस्सा नहीं लिया तो उनके NSS प्रमाणपत्र नहीं दिए जाएंगे।

  • इस मामले की सूचना मिलने पर विश्वविद्यालय प्रबंधन ने एक fact-finding कमेटी बनाई। उसके बाद पुलिस ने शिकायत पर एफआईआर दर्ज की।

  • कुल आठ व्यक्ति नामजद हुए हैं: सात शिक्षक और एक छात्र नेता। शिक्षक उन लोगों में शामिल हैं जो कार्यक्रम समन्वय या संचालन में थे। छात्र नेता टीम का कोर लीडर था।

  • उन पर विभिन्न धाराएँ लगायी गई हैं — धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने की धारा, धार्मिक स्वतंत्रता कानून, समूहों के बीच विरोध को भड़काने की धारा इत्यादि।


विश्वविद्यालय और प्रशासन की प्रतिक्रिया

  • विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया में कहा गया है कि उन्होंने मीडिया रिपोर्ट मिलने के बाद मामले की जानकारी प्राप्त की है और एक आंतरिक जांच कमेटी गठित की गई है।

  • विश्वविद्यालय मीडिया प्रभारी ने कहा है कि अभीतक कोई आधिकारिक शिकायत campus प्रशासन को नहीं मिली थी, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी तथ्यों की समीक्षा की जा रही है।

  • पुलिस ने बताया है कि शुरुआती जांच में छात्र-विहार, कार्यक्रम कार्यक्रम-समय, संचालकों के बयान, गवाहों की पहचान आदि की जानकारी एकत्र की जा रही है।


कानूनी पहलू और जांच

  • पुलिस ने मामला दर्ज करते समय यह ध्यान दिया है कि यह सिर्फ एक धार्मिक क्रिया का मामला नहीं है, बल्कि छात्रों की स्वेच्छा, स्वतंत्रता और अधिकारों से जुड़ा विषय है।

  • आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की विभिन्न धाराएँ लागू की गई हैं, साथ ही प्रदेश के धर्म-स्वतंत्रता कानून के प्रावधान भी।

  • हाई कोर्ट ने इस मामले में जांच को आगे बढ़ने देने का फैसला किया है और नामजद प्राध्यापकों की याचिका एफआईआर निरस्त करने की खंडपीठ ने खारिज कर दी है — यानी कि मामले की जांच को रोका नहीं जाएगा।


सामाजिक एवं शिक्षा-स्तरीय प्रभाव

  • इस तरह की घटनाएँ छात्रों में असुरक्षा की भावना पैदा कर सकती हैं, विशेषकर उन छात्रों को जो अल्पसंख्यक हैं। जब कोई धार्मिक आस्था विवादों का विषय बन जाए, तो छात्रों का मनोबल प्रभावित होता है।

  • शिक्षा संस्थानों में धार्मिक संवेदनशीलता की अहमियत बढ़ जाती है—यह ज़रूरी है कि शिक्षक-प्रशिक्षक, कार्यक्रम आयोजक आदि यह समझें कि सहभागिता को दबाव से अलग रखना चाहिए, सहमति की प्रणिति होनी चाहिए।

  • सामाजिक स्तर पर यह घटना यह याद दिलाती है कि विविधता और सहिष्णुता सिर्फ शब्दों में नहीं, व्यवहार में भी जरूरी हैं।


कौन-सी चुनौतियाँ सामने हैं

  • एक मुख्य चुनौती यह है कि “स्वीकृति” कैसे तय होगी—क्या कोई छात्र स्वतंत्र रूप से भाग लेने से मना कर सकता है, और क्या उसके मना करने पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जैसे कि प्रमाणपत्र न मिलना आदि।

  • गवाहों के बयानों में विरोधाभास निकलने की संभावना होती है; किसने क्या कहा, किसने दबाव डाला, ये ख़ुद में मुद्दे हैं।

  • जांच में समय लगेगा क्योंकि आरोप समय-स्थान-प्रमाण आदि की विस्तारपूर्ण पड़ताल पर निर्भर हैं।

  • भावनाएँ उबल सकती हैं, राजनीतिक और सामुदायिक संगठन से दबाव बढ़ सकता है। इसलिए न्याय प्रक्रिया का निष्पक्ष और पारदर्शी होना ज़रूरी है।


संभावित सीख और सुझाव

  1. स्वेच्छा और सहमति — किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक गतिविधि के लिए छात्रों की स्वेच्छा प्राप्त करनी चाहिए, और किसी तरह की बाधा या धमकी नहीं होनी चाहिए।

  2. समय एवं सूचना — कार्यक्रम आयोजक पहले से छात्रों को सूचना दें कि कोई धार्मिक क्रिया हो सकती है, और ग़ैर-धार्मिक छात्रों की पसंद-नापसंद का सम्मान करें।

  3. शिक्षक-नेता संघटन का मार्गदर्शन — विश्वविद्यालय प्रबंधन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि NSS या अन्य कार्यक्रमों में सभी धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का ध्यान रखा जाए।

  4. निगरानी और जवाबदेही — यदि किसी प्रकार की शिकायत होती है तो त्वरित कार्रवाई हो, और मामले को सार्वजनिक विश्वास के आधार पर निष्पक्ष रूप से सुलझाया जाए।


निष्कर्ष

गुरु घसिदास केंद्रीय विश्वविद्यालय का यह मामला यह दिखाता है कि शिक्षा संस्थानों में धार्मिक स्वतंत्रता, सहमति, और भावनात्मक सुरक्षा किस हद तक महत्वपूर्ण है। केवल धर्म-स्वतंत्रता की कानूनी बातें नहीं, बल्कि दिन-प्रतिदिन के व्यवहार और कार्यक्रमंओं की आयोजन शैली भी मायने रखती है।

छात्रों को यह भरोसा मिलना चाहिए कि उनकी आस्था और उनकी पसंद दोनों का सम्मान किया जाएगा। वहीं विश्वविद्यालयों को यह प्रतिबद्धता दिखानी होगी कि शिक्षण के साथ-साथ संवेदनशीलता, न्याय और विवेक का भी वातावरण बनाया जाए।

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