CGPSC भर्ती घोटाला: परीक्षा-पत्र लीक, नियमों में फेरबदल, रिश्तेदारों को विशेष लाभ

CGPSC भर्ती घोटाला: परीक्षा-पत्र लीक, नियमों में फेरबदल, रिश्तेदारों को विशेष लाभ

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (CGPSC) भर्ती घोटाले ने राज्य के शासकीय भर्ती तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सीबीआई द्वारा दायर चार्जशीट के अनुसार, पिछले समय में अधिकारियों ने मिलकर नियमों में बदलाव किया, परीक्षा-पत्र लीक कराया, और अपने रिश्तेदारों तथा करीबी लोगों को उच्च पदों पर नियुक्त करवाया। इस पूरे मामले से यह स्पष्ट हो गया है कि भर्ती प्रकिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता कितनी महत्वपूर्ण है।

क्या हुआ- कैसे हुआ

मुख्य आरोपियों में आयोग के पूर्व अध्यक्ष, पूर्व सचिव, परीक्षा नियंत्रक और अन्य अधिकारियों का नाम है। ये सभी मिलकर CGPSC-2021 परीक्षा में लाभ दिलाने के लिए विभिन्न प्रकार की गड़बड़ियों में शामिल रहे। आरोप है कि उन्होंने परीक्षा की दिशा-निर्देशों ("Guidelines") में बदलाव कर ‘रिश्तेदार’ शब्द को हटाकर ‘परिवार’ की परिभाषा में ऐसा संशोधन किया कि ‘भतीजा’ शब्द को बाहर कर दिया जाए। इससे यह संभव हो सका कि अध्यक्ष के भतीजे परीक्षा दे सकें और उनका चयन हो सके।

इसके अलावा, परीक्षा-पत्र तैयार करने की प्रक्रिया में भी भ्रष्टाचार हुआ। प्रश्नपत्रों को जिस प्रिंटिंग कंपनी को देना था, उसने अंतिम मसौदे तैयार किए और सीलबंद लिफाफे में परीक्षा नियंत्रक के पास भेजे गए। आरोप है कि इन लिफाफों को परीक्षा नियंत्रक के आवास से उठाया गया और अध्यक्ष समेत अन्य प्रत्याशियों को परीक्षा से पहले ये प्रश्नपत्र उपलब्ध कराए गए।

कौन-कौन प्रभावित हुए

घोटाले में जिन लोगों का नाम सामने आया है उनमें आयोग अध्यक्ष के भतीजे, अन्य परिजन तथा कुछ नेताओं और बड़े अधिकारीयों के रिश्तेदार शामिल हैं। उदाहरण के लिए, कुछ ऐसे उम्मीदवार जो डिप्टी कलेक्टर, उप प्राधिकारी, जिला आबकारी अधिकारी आदि पदों पर चयनित हुए हैं। ये नियुक्तियाँ लगभग तब की गईं जब नियमों को बदलने की प्रक्रिया हुई थी, ताकि कुछ लोगों को विशेष लाभ मिल सके।

सीबीआई की जांच में यह सामने आया है कि कुछ चयनित उम्मीदवारों के सरनेम में छुपाव किया गया ताकि रिश्तेदार होने का एहसास न हो। साथ ही, CSR (Corporate Social Responsibility) के नाम पर NGO के माध्यम से रिश्वत देने-लिने का आरोप भी है।

नियमों में बदलाव और लाभ

उल्लेखनीय है कि नियमों में बदलाव एक बैठक के दौरान किया गया था। उसमें यह तय हुआ कि ‘रिश्तेदार’ की परिभाषा में ‘भतीजा’ को शामिल नहीं किया जाएगा। इस तरह की परिभाषात्मक चूक ने कुछ उम्मीदवारों को नियमों की छूट दिलाई।

परीक्षा नियंत्रक तथा अन्य अधिकारियों के माध्यम से प्रश्नपत्रों को समय से पहले प्राप्त करने और उन्हें प्रत्याशियों तक पहुँचाने की प्रक्रिया ने चयन को प्रभावित किया। इसके अलावा, इन नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी, उम्मीदवारों की मेरिट सूची में हेरफेर और भर्ती प्रक्रिया के अन्य दोष शामिल हैं।

नतीजा और प्रतिक्रियाएँ

घोटाले की गूंज व्यापक है। आम लोगों में रोष है क्योंकि ऐसे कार्यों ने उन मेहनती उम्मीदवारों की कोशिशों को बेकार कर दिया जो न्यायसंगत प्रतिस्पर्धा की उम्मीद पर भरोसा किए थे। राजनीतिक दलों तथा मीडिया ने इस मामले को लेकर तीखी आलोचना की है कि ऐसी नियुक्तियों ने सार्वजनिक प्रणाली की विश्वसनीयता को चोट पहुँचाई है।

सीबीआई ने इस मामले में आरोपपत्र दाखिल कर कई लोगों को आरोपी बनाया है। अब यह न्याय प्रक्रिया के अधीन है कि दोष सिद्ध होने पर कानूनी कार्रवाई हो। कई चयनित उम्मीदवारों की नियुक्ति पर हाई कोर्ट आदि में याचिकाएँ दाखिल हो चुकी हैं।

भविष्य की चुनौतियाँ

इस घोटाले के कारण यह नतीजा निकलता है कि भर्ती प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। भर्ती नियमों को स्पष्ट, पारदर्शी और ऐसी व्यवस्था हो कि किसी भी हितपक्षीय बदलाव की गुंजाइश न हो। परीक्षा नियन्त्रक, अध्यक्ष और अन्य अधिकारियों की भूमिका भी न्यायिक नियंत्रण के दायरे में आनी चाहिए।

नीति-निर्माता और सरकारी अमले को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी नियमों का पालन हो, भर्ती प्रक्रिया समय पर हो और पात्रता व मेरिट सूची की जांच सार्वजनिक हो सके। सार्वजनिक विश्वास बहाल करना इस वक्त सबसे बड़ा काम है।

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