ड्रैगन फ्रूट की चकरी पद्धति: पौधे सुरक्षित रहते हैं और 15 वर्षों तक फल देते हैं

ड्रैगन फ्रूट की चकरी पद्धति: पौधे सुरक्षित रहते हैं और 15 वर्षों तक फल देते हैं

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती में एक खास पद्धति अपनाई है जिसे चकरी पद्धति कहा जाता है। इस पद्धति की ख़ासियत है कि इससे पौधे बेहतर तरीके से सुरक्षित रहते हैं और 15 साल तक फल देने की क्षमता बनाए रखते हैं। किसान परमार के अनुसार, इस पद्धति ने खेती को अधिक टिकाऊ और लाभदायक बनाया है।


चकरी पद्धति क्या है?

चकरी शब्द से यह संकेत मिलता है कि पौधे को ऐसे सहारे दिए जाते हैं कि उनकी वृद्धि और रख-रखाव बेहतर हो। इस पद्धति में:

  • ड्रैगन फ्रूट के पौधों को एक सशक्त सहारा (जैसे पोल या संरचनात्मक तख्तियाँ) दी जाती हैं जिससे उनकी बेलें (vines/cladodes) फैल सकें लेकिन जमीन से सीधे संपर्क न हो।

  • पौधे जमीन की नमी, कीट-रोग और सड़ांध (rot) से बचाए जाते हैं क्योंकि बेलें जमीन से ऊपर, बेहतर हवा गोद में होती हैं।

  • संरचनाएँ इस तरह से बनाई जाती हैं कि पौधे को धूप, बारिश, हवा आदि प्राकृतिक प्रभावों से अधिक बचाव मिले।

इससे पौधों की लंबी आयु बनती है और उत्पादकता बनी रहती है।


15 वर्ष तक फल देने का फायदा

  • चकरी पद्धति अपनाने से ड्रैगन फ्रूट पौधे लगभग 15 साल तक फल देने की स्थिति में रहते हैं। यानी किसान को एक-दो साल की अवधि नहीं, बल्कि मध्यम से लंबी अवधि का लाभ मिलता है।

  • इस अवधि में सामान्य रख-रखाव और पौधे की सुरक्षा सुनिश्चित करने से फल की गुणवत्ता और उपज स्थायी बनी रहती है। 


किसान परधिकाएँ और उनके अनुभव

  • राजनांदगांव जिले के किसानों ने बताया कि पहले वे सिर्फ धान, गेहूँ और सामान्य सब्जियाँ ही उगाते थे। लेकिन ड्रैगन फ्रूट को चकरी पद्धति से लगाने के बाद उनकी उपज और आय में सुधार हुआ है। 

  • इस पद्धति के कारण पौधे कम बीमारियों से प्रभावित होते हैं क्योंकि जमीन की नमी और कीटों की जोखिम कम हो जाती है। पौधे को ज्यादा पानी-खपत या जलजमाव की समस्या कम होती है। 


खेती की प्रक्रिया: चकरी पद्धति के चरण

चकरी पद्धति अपनाते समय किसानों को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना पड़ता है:

  1. सही सहारा तैयार करना: मजबूत पोल या तख्तियाँ लगाना ज़रूरी है जो कि वर्षा, हवा और अन्य प्राकृतिक प्रभावों को सह सकें।

  2. मिट्टी और जल निकासी: मिट्टी अच्छी तरह से जलनिकासी क्षमता वाली होनी चाहिए। जहाँ पानी ठहरता है वहाँ रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।

  3. सूरज की रोशनी और छाँव: पौधे को इतना धूप मिले कि वह अच्छी तरह बढ़ सके, पर ज़्यादा तेज सूर्य होने पर कुछ छाँव की व्यवस्था करना चाहिए।

  4. पोषण सामग्री: समय-समय पर जैविक खाद, मिट्टी सुधारक, और आवश्यक पोषक तत्व देने से पौधे स्वस्थ रहते हैं।

  5. रख-रखाव: बेलों / शाखाओं को नियमित रूप से ट्रिम करना, कीट-नियंत्रण करना, और आवश्यकतानुसार पानी देना।


लाभ और चुनौतियाँ

लाभ:

  • लंबे समय तक उपज, जिससे निवेश की लागत जल्दी वसूल होती है।

  • कीट-बीमारी और सड़ांध की समस्या कम होती है।

  • छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्र में, जहां जलवायु उपयुक्त है, किसान अपनी आमदनी में वृद्धि कर सकते हैं।

  • अति ताप, माटी की असमय सड़ांध आदि से सुरक्षा मिलती है।

चुनौतियाँ:

  • शुरुआत में सहारा तैयार करने का खर्च और श्रम ज़्यादा होगा।

  • किसान को तकनीकी जानकारी होनी चाहिए कि कैसे सही तरीके से पोल लगायें, बेलों को संवारेँ।

  • पानी प्रबंधन और मौसम परिवर्तन से होने वाले प्रभावों का सामना करना होगा।


क्यों होगी यह खेती छत्तीसगढ़ में कामयाब

  • जलवायु: छत्तीसगढ़ का मौसम, वर्षा-अनुसार वर्षा वितरण और तापमान ड्रैगन फ्रूट उगाने के लिए उपयुक्त स्थानों में आता है। मार्केट की मांग: ड्रैगन फ्रूट एक विदेशी फल है जो स्वाद, पोषण व आकर्षण के कारण ग्राहकों में लोकप्रिय है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है।

  • कृषि विविधता: किसान पारंपरिक फसलों (धान, गेहूँ आदि) के साथ इस तरह की नई ताज़ा फसल उगा कर अपनी आय के स्रोत बढ़ा सकते हैं।


निष्कर्ष

चकरी पद्धति ड्रैगन फ्रूट की खेती को स्थिर, टिकाऊ और उत्पादक बनाती है। 15 वर्षों तक फल देने की क्षमता से किसानों को लंबी अवधि तक लाभ मिलता है। छत्तीसगढ़ में इस तरह की कृषि विधियों से आम किसानों की ज़िंदगी में सुधार हो सकता है, खेती अधिक मुनाफे वाली हो सकती है, और प्राकृतिक चुनौतियों का सामना बेहतर ढंग से किया जा सकता है।

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