छत्तीसगढ़ का नया मॉडल: पाठ्यपुस्तक निगम बिहार-झारखंड जैसा चलेगा

छत्तीसगढ़ का नया मॉडल: पाठ्यपुस्तक निगम बिहार-झारखंड जैसा चलेगा

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में क्रमबद्ध सुधार करते हुए घोषणा की है कि अब राज्य का पाठ्यपुस्तक निगम बिहार-झारखंड की तर्ज पर काम करेगा। इसका उद्देश्य किताबों के छपाई, वितरण और गुणवत्ता नियंत्रण की प्रक्रिया को बेहतर करना है और इस बदलाव से अनुमान लगाया जा रहा है कि लगभग ₹20 करोड़ की बचत समझी जा सकती है।


क्या बदलाव होंगे?

  • अब एक ही टेंडर निकालेगा जो किताबों को छापने (printing) और बाँटने (distribution) दोनों कार्यों को शामिल करेगा। पहले अलग-अलग ठेकों पर ये काम होता था।

  • टीचर्स, विभागीय अधिकारी और प्रशासन मिलकर यह प्रक्रिया देखेंगे ताकि गलतियाँ कम हों और पूरा काम समय पर हो।

  • इस बदलाव से गुणवत्ता नियंत्रण मजबूत होगा क्योंकि छपाई व वितरण दोनों पर एक ही प्राधिकरण की निगरानी होगी।


बिहार-झारखंड मॉडल कैसे काम करता है?

  • बिहार और झारखंड में पाठ्यपुस्तक निगम पहले से ही ऐसा मॉडल अपनाते हैं जहाँ छपाई से लेकर स्कूलों तक किताबें भेजने का पूरा चक्र नियंत्रित तरीके से होता है।

  • इस मॉडल में, टेंडर सार्वजनिक प्रक्रिया से निकलते हैं जिसमें बोली माँगी जाती है, प्रतिस्पर्धा होती है, निर्धारित गुणवत्ता मापदंड तय होते हैं, और वितरण समयबद्ध तरीके से सुनिश्चित किया जाता है।

  • इस प्रणाली से किताबों की लागत, समय और प्रशासनिक बोझ कम होता है और यह सुनिश्चित होता है कि बच्चों को किताबें समय पर मिलें।


छत्तीसगढ़ में क्यों ये कदम उठाया गया?

  1. समय पर वितरण की समस्या
    कई स्कूलों में समय पर पुस्तकें नहीं पहुँच पाती थीं क्योंकि छपाई और वितरण का काम अलग-अलग एजेंसियों द्वारा होता था और समन्वय ठीक से नहीं हो पाता था।

  2. खर्चों में अधिकता
    अलग-अलग ठेकेदारों से काम करवाने की वजह से लागत बढ़ जाती थी। छपाई और वितरण एक ही ठेके पर होने से लागत में कटौती होगी।

  3. गुणवत्ता नियंत्रण में कमी
    जब अलग-अलग एजेंसियाँ जिम्मेदार हों, तो सामग्री की गुणवत्ता, छपाई की सटीकता या वितरण प्रक्रिया में दोष आने की संभावना बढ़ जाती है।


अनुमानित फायदे

  • ₹20 करोड़ के लगभग बचत होगी, जो सरकारी खज़ाने के लिए अच्छी-खासी राशि है।

  • पुस्तकें शिक्षा ब्लॉकों और स्कूलों में समय पर पहुँचेंगी, जिससे पढ़ाई के पहले चरणों में व्यवधान नहीं होगा।

  • बच्चों को बेहतर गुणवत्ता की किताबें मिलेंगी, रंग, पेपर गुणवत्ता आदि मामूल से लेकर बेहतर होंगे।

  • प्रशासन की प्रक्रियाएँ सरल और पारदर्शी होंगी, चयन प्रक्रिया, टेंडर खुलापन, जिम्मेदारी तय होगी।


संभावित चुनौतियाँ और ध्यान देने योग्य बातें

  • टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता: यह सुनिश्चित करना होगा कि टेंडर निकलते समय लाभ-हानि, गुणवत्ता, समय सीमा आदि सभी मानदंड स्पष्ट हों।

  • प्रिंटिंग क्षमता: ऐसी छपाई इकाइयाँ हों जहाँ छपाई की गुणवत्ता, माप-मान और समय पर काम हो सके।

  • वितरण नेटवर्क: किताबों को गाँव-गाँव, दूर-दराज स्कूलों तक सुरक्षित तरीके से पहुँचाने की व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए।

  • मानव संसाधन और समय प्रबंधन: छपाई और वितरण के बीच समन्वय होना चाहिए, समय सीमाएँ तय हों ताकि विलंब न हो।


क्या उम्मीद की जा सकती है?

  • शिक्षा विभाग और पाठ्यपुस्तक निगम जल्द ही इस मॉडल को लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे।

  • अगले एक-दो सत्रों में यह बदलाव महसूस होने लगेगा — कम विलंब, बेहतर किताबें, पाठ्य सामग्री का समय से वितरण।

  • बजट में इस काम के लिए संसाधन सुनिश्चित किए जाएंगे, ताकि मॉडल पूरी तरह कार्यान्वित हो सके।


निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ का यह निर्णय कि पाठ्यपुस्तक निगम बिहार-झारखंड मॉडल की तर्ज पर काम करेगा, शिक्षा प्रणाली को मजबूती देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे लागत घटेगी, गुणवत्ता बढ़ेगी और बच्चों को समय पर और बेहतर पाठ्य सामग्री मिलेगी। अगर योजना सुचारू रूप से लागू हुई, तो राज्य में शिक्षा क्षेत्र में सुधार की उम्मीद निश्चित ही की जा सकती है।

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