शारदीय नवरात्रि की शुरुआत: सरगुजा में मां भगवती की पूजा विविध रूपों में

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत: सरगुजा में मां भगवती की पूजा विविध रूपों में

11, 8, 2025

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आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है, जो पूरे देशभर में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में इस पर्व की विशेष महत्ता है, जहां मां भगवती की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है।

मां भगवती के विविध रूप

सरगुजा में नवरात्रि के दौरान मां भगवती के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। यहां के लोग मां को अलग-अलग नामों से पुकारते हैं और उनकी पूजा विधि भी क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार होती है। इन नामों और पूजा विधियों में स्थानीय संस्कृति और आस्थाओं का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है।

घटस्थापना की विशेषता

नवरात्रि की शुरुआत में घटस्थापना का विशेष महत्व है। सरगुजा में यह परंपरा बड़े श्रद्धा भाव से निभाई जाती है। स्थानीय लोग अपने घरों में कलश स्थापित कर मां भगवती की पूजा अर्चना करते हैं। इस दौरान विशेष रूप से मिट्टी के बर्तन में जौ बोने की परंपरा है, जिसे नवपत्तिका कहा जाता है। नौ दिनों तक इसकी देखभाल की जाती है और दशमी के दिन इसे विसर्जित किया जाता है।

पूजा विधि और अनुष्ठान

सरगुजा में नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा विधियों का पालन किया जाता है। प्रात:काल उठकर स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप जलाए जाते हैं। मां भगवती के चित्र या प्रतिमा के समक्ष दीप, धूप, नैवेद्य और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ और आरती की जाती है। नौ दिनों तक यह अनुष्ठान निरंतर चलता है।

सामूहिक आयोजन और मेलों की परंपरा

सरगुजा में नवरात्रि के दौरान सामूहिक पूजा और मेलों का आयोजन भी होता है। ग्रामों में विशेष रूप से देवी मंदिरों में भव्य सजावट की जाती है। श्रद्धालु बड़ी संख्या में एकत्रित होकर पूजा अर्चना करते हैं और मेलों का आनंद लेते हैं। यह सामूहिकता न केवल धार्मिक आस्था को प्रगाढ़ करती है, बल्कि सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है।

महिलाओं की विशेष भूमिका

नवरात्रि के दौरान महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वह घरों में पूजा की व्यवस्था करती हैं और व्रत रखकर मां भगवती की आराधना करती हैं। इसके अलावा, कई स्थानों पर कन्या पूजन की परंपरा भी है, जिसमें नन्ही कन्याओं को भोजन कराया जाता है और उन्हें उपहार दिए जाते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और रात्रि जागरण

नवरात्रि के नौ दिनों में रात्रि जागरण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। स्थानीय कलाकार देवी गीतों और भजनों की प्रस्तुतियां देते हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है। यह कार्यक्रम न केवल धार्मिकता को बढ़ावा देते हैं, बल्कि क्षेत्रीय कला और संस्कृति को भी संरक्षित रखते हैं।

पर्यावरण संरक्षण की पहल

हाल के वर्षों में सरगुजा में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी कदम उठाए गए हैं। प्लास्टिक की जगह मिट्टी के बर्तन और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग बढ़ाया गया है। इसके अलावा, पूजा सामग्री का विसर्जन नदी या तालाबों में करने की बजाय घर के बगीचे में करने की परंपरा को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि जल स्रोतों को प्रदूषण से बचाया जा सके।

प्रशासन की ओर से व्यवस्थाएं

नवरात्रि के दौरान प्रशासन की ओर से भी विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं। सुरक्षा, यातायात और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं। पुलिस बल की तैनाती, सफाई व्यवस्था और आपातकालीन सेवाओं का प्रबंध सुनिश्चित किया जाता है, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

समापन और विजय दशमी

नवरात्रि का समापन विजय दशमी के दिन होता है, जिसे दशहरा भी कहा जाता है। इस दिन रावण दहन की परंपरा है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। सरगुजा में भी यह दिन धूमधाम से मनाया जाता है। रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है और आतिशबाजी होती है।

निष्कर्ष

सरगुजा में शारदीय नवरात्रि न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह क्षेत्रीय संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। यह पर्व लोगों को एकजुट करता है और उन्हें अपने सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है। मां भगवती की पूजा के माध्यम से लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति की कामना करते हैं।

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