उसलापुर स्टेशन पर ‘अमृत भारत योजना’ में बड़ी कमी: प्लेटफार्म पर टूटी-फूटी सुविधा, शौचालय तक नहीं

उसलापुर स्टेशन पर ‘अमृत भारत योजना’ में बड़ी कमी: प्लेटफार्म पर टूटी-फूटी सुविधा, शौचालय तक नहीं

11, 8, 2025

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बिलासपुर। “अमृत भारत स्टेशन योजना” के तहत शानदार व आधुनिक सुविधाएँ देने का दावा करते हुए उसलापुर रेलवे स्टेशन में काम लगभग पूरा माना जा रहा है। लेकिन स्टेशन के प्लेटफार्म दो और तीन पर शौचालय जैसी एक महत्वपूर्ण सुविधा अभी तक नहीं लगी है, जिससे यात्रियों को रोजमर्रा की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अक्टूबर में उद्घाटन की तैयारी हो रही है, लेकिन इस कमी ने यह बतला दिया है कि “आधुनिक” नाम के पीछे बुनियादी जरूरतों की उपेक्षा हुई है।


प्लेटफार्मों पर शौचालय का अभाव

स्टेशन के प्लेटफार्म दो और कटनी-छोर वाले हिस्से में कोई शौचालय सुविधा नहीं है। यात्रियों का कहना है कि अगर प्लेटफार्म का वह हिस्सा उपयोग कर रहे हों तो उन्हें पूरा स्टेशन घूमना पड़ता है या पटरी पार जैसे ज़रूरतमंद लेकिन जोखिम भरे रास्ते अपनाने पड़ते हैं।

कटनी से आने-जाने वाली कई ट्रेनें प्लेटफार्म दो पर रुकती हैं, जिससे यात्रियों का समय लगता है। विशेषकर बुज़ुर्ग, महिलाएँ और बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि लंबे इंतज़ार और शेड की कमी के कारण धूप/बारिश में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

यात्रियों ने बताया कि कभी-कभी स्टेशन की सफाई और रंग-रोगन जैसे काम ज़रूर दिखते हैं, लेकिन शौचालय नहीं होने के कारण ये सब सुविधाएँ अधूरी लगती हैं। इस तरह की प्राथमिक सुविधाएँ तो सबके लिए ज़रूरी होती हैं — एक स्टेशन की शोभा सिर्फ देख-भाल से नहीं, बल्कि ज़रूरी मूलभूत आवश्यकताओं से होती है।


शिकायतें और यात्रियों की नाराज़गी

स्थानीय यात्रियों और नियमित ट्रेन उपयोगकर्ताओं ने कई बार रेलवे प्रशासन के लिए शिकायत भेजी है। उन्होंने कहा है कि अफसरों को इस कमी की सूचना मिल चुकी है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

एक यात्री ने बताया कि वह हर दिन प्लेटफार्म दो से ट्रेन पकड़ता है, और अक्सर बारिश या धूप में वो शेड लेने के लिए प्लेटफार्म तीन या अन्य हिस्सों तक जाना पड़ता है—यह न सिर्फ समय बरबाद करता है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी ठीक नहीं है।


अमृत भारत योजना: क्या वादे हुए थे?

अमृत भारत स्टेशन योजना का मकसद रेलवे स्टेशनों को “यात्री-अनुकूल, आधुनिक और सुविधासंपन्न” बनाना है।

उसलापुर स्टेशन इस योजना के अंतर्गत आता है, और वहाँ की कई सुविधाएँ जैसे नई प्रतीक्षालय, अंजीराई शेड, बेहतर लाइटिंग, स्टेशन की सुंदरता आदि का काम पूरा होने के करीब है। लेकिन शौचालय जैसी बुनियादी ज़रूरतों का पूरा ना होना यह दर्शाता है कि योजना में कार्य प्रबंधन में कुछ चूक हुई है।

रेलवे के सीनियर डीसीएम ने कहा है कि स्टेशन की श्रेणी और बजट के मुताबिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं, परन्तु “फेज टू” में शौचालय और अन्य ज़रूरी सुविधाएँ जोड़ी जाएँगी।


सुरक्षा और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से समस्या

शौचालय की कमी सिर्फ असुविधा नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य और सुरक्षा का मामला भी है:

  • बढ़ी हुई दूरी तय करना पड़ती है, खासकर रात के समय या बीमार यात्री होने पर समस्या गंभीर हो जाती है।

  • पटरी पार करना यात्री सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है।

  • सफाई, संक्रमण और स्वच्छता संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं यदि लोग भीड़-भाड़ वाले हिस्सों में “नजिक का कोई विकल्प” न पा सकें।


रेलवे और स्थानीय प्रशासन की भूमिका

रेलवे प्रशासन ने स्वीकार किया है कि शौचालय की कमी एक दोष है।

  • उन्होंने कहा है कि उद्घाटन के समय कुछ सुविधाएँ शायद अधूरी हों, लेकिन उद्घाटन पश्चात “फेज टू” के दौरान शौचालय, शेड और अन्य मूलभूत उपाय किए जाएँगे।

  • रेलवे अफसरों ने यह भी कहा है कि यात्रियों द्वारा मिली शिकायतों को खंगाला जा रहा है और जल्द समाधान निकलने की कोशिश होगी।


उम्मीद और सुझाव

यात्रियों की सुविधा, स्वच्छता और सुरक्षा के मद्देनज़र कुछ सुझाव किए जा सकते हैं:

  1. तत्काल शौचालय निर्माण प्लेटफार्म दो-तीन के कटनी-छोर हिस्से में, ताकि समय बचे और जोखिम कम हो।

  2. प्लेटफार्म पूरी तरह से शेडेड किए जाएँ ताकि मौसम की मार से बचाव हो सके।

  3. गार्ड और रेल सुरक्षा बल से कहा जाए कि त्वरित पहुँच सुनिश्चित हो, और जोखिम वाले हिस्सों की निगरानी हो।

  4. यात्रियों से सूचना चैनल बनाए रखें — रेलवे हेल्पलाइन, स्थानीय स्टेशनों के notice board आदि पर सूचनाएँ दी जाएँ कि कौन-सी सुविधाएँ कब पूरे होंगी।


अमृत भारत स्टेशन योजना जैसी बड़ी पहल में यह कमी बर्दाश्त करने योग्य नहीं है कि बुनियादी तौल और ज़रूरी सुविधाएँ मौजूद ही न हों। उसलापुर स्टेशन का विकास उत्साहवर्धक है, लेकिन यात्रियों के अनुभव को यह सुविधा-अभाव गहरा असर डाल रही है।

जब तक शेड, शौचालय और सुरक्षा-राहत की चीज़ें पूरी नहीं हों, उद्घाटन का औचित्य थोड़ा धुंधला लगता है। ऐसे में रेलवे प्रशासन और स्थानीय अधिकारी दोनों की ज़िम्मेदारी है कि सार्वजनिक सेवा का सही मतलब निभाएं — देखने की चमक से ज्यादा करने की जिम्मेदारी निभाएँ।

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