छत्तीसगढ़ HC ने मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसर भर्ती का सरकारी आदेश रद्द किया

छत्तीसगढ़ HC ने मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसर भर्ती का सरकारी आदेश रद्द किया

11, 8, 2025

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें सरकार द्वारा दिसंबर 2021 में जारी एक अधिसूचना को अवैध करार दिया गया है। यह अधिसूचना सरकारी मेडिकल, डेंटल, नर्सिंग और फिजियोथेरेपी कॉलेजों में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर की डायरेक्ट भर्ती की अनुमति देती थी। न्यायालय ने कहा है कि इस तरह की भर्ती नियमों के अनुरूप नहीं है क्योंकि वहाँ पहले से स्थापित भर्ती नियमों में यह तय है कि प्रोफेसर पद “पूरी तरह से एसोसिएट प्रोफेसर से प्रोत्साहन (promotion)” द्वारा भरा जाना चाहिए।


नियम क्या कहता है

  • 2013 के “छत्तीसगढ़ मेडिकल एजुकेशन (गज़ेटेड) सर्विस भर्ती नियम” (Chhattisgarh Medical Education (Gazetted) Service Recruitment Rules, 2013) के नियम-6 और Schedule II में स्पष्ट है कि प्रोफेसर पदों की भर्ती सीधे नहीं हो सकती, बल्कि एसोसिएट प्रोफेसरों के बीच से प्रमोशन के आधार पर होनी चाहिए।

  • सरकार की अधिसूचना ने “Rule 22” के मुताबिक एक-बार की छूट देने का प्रावधान किया था, ताकि कुछ खाली पदों को सीधे भर्ती के द्वारा भरा जाए, क्योंकि आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों में स्टाफ की कमी है और नए कॉलेज खुलने की वजह से प्रोफेसर पद ख़ाली पड़े हैं।


आवेदक (Associate Professors) की शिकायत और HC की सुनवाई

कई एसोसिएट प्रोफेसरों ने writ petition याचिकाएँ दाखिल कीं। उनका दावा था कि सरकार ने नियमों को बदले बिना executive अधिसूचना के माध्यम से भर्ती का तरीका बदलने की कोशिश की, जो कि नियमों के उल्लंघन के समान है।

न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि Rule 22 केवल “सेवा की शर्तों” को छूट देने के लिए है, न कि नियुक्ति के तरीके को बदलने के लिए। यदि नियुक्ति विधि (method of recruitment) नियमों द्वारा निर्धारित है, तो सरकार उसे अधिसूचना द्वारा नहीं बदल सकती।

सरकार ने कहा कि नई मेडिकल कॉलेजों के खुलने से प्रोफेसरों की संख्या बहुत बढ़ गई है और योग्य एसोसिएट प्रोफेसरों की संख्या पर्याप्त नहीं है, इसलिए सरकार को मजबूरी में यह कदम उठाना पड़ा था। उन्होंने चेतावनी दी थी कि यदि तत्काल रूप से भर्ती न हुई, तो मेडिकल कॉलेजों की मान्यता (recognition) पर असर आने की संभावना है।


HC का फैसला और कारण

हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने Chief Justice और एक अन्य न्यायाधीश की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार की अधिसूचना असंवैधानिक (ultra vires) है। न्यायालय ने यह तय किया:

  • सरकार की वह अधिसूचना रद्द की जाए।

  • भविष्य में किसी भी प्रोफेसर या एसोसिएट प्रोफेसर की भर्ती केवल 2013 के नियमों के अनुसार हो, यानी प्रमोशन के जरिए।

  • Rule 22 की relaxation की शक्ति सेवा-शर्तों तक सीमित है और भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकती।

न्यायालय ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 ( बराबरी का अधिकार ) के अंतर्गत लोगों का अधिकार है कि यदि नियम निर्देश करें कि पद प्रमोशन से भरे जाएँ, तो सीधे भर्ती अनुमति नहीं हो सकती जब प्रावधान स्पष्‍टक हो।


प्रभाव और प्रतिक्रियाएँ

इस फैसले का असर कई तरह से हुआ है:

  • उन एसोसिएट प्रोफेसरों को राहत मिली है जो प्रमोशन के हकदार थे, लेकिन सीधे भर्ती की वजह से उनसे अवसर छिनने का डर था।

  • राज्य सरकार को नए मेडिकल कॉलेजों के लिए स्टाफ की कमी को पूरा करने की योजना पुनः देखनी होगी। पूरक रास्ते अपनाने होंगे — जैसे कि असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसरों की नियुक्ति और उनका प्रशिक्षण, ताकि समय आने पर पर्याप्त प्रोत्साहन-योग्य प्रोफेसर तैयार हों।

  • मेडिकल शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में किसी भी भर्ती प्रक्रिया में नियमों का उल्लंघन न हो, और अधिकारियों की जिम्मेदारी की स्पष्टता बनी हो।


चिंताएँ और चुनौतियाँ

हालाँकि न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया है कि नियमों का पालन हो, लेकिन इस फैसले के बाद कुछ चुनौतियाँ भी सामने हैं:

  1. प्रोफेसरों की कमी — बहुत से मेडिकल कॉलेजों में अभी भी अनुभवी प्रोफेसरों की कमी है। प्रमोशन प्रक्रिया समय ले सकती है क्योंकि एसोसिएट प्रोफेसर बनने की पात्रता, अनुभव और परीक्षा जैसी चीज़ें पूरी करनी पड़ती हैं।

  2. नियोजन और प्रशिक्षण — नए एसोसिएट प्रोफेसरों का समय पर प्रशिक्षण और पोस्टिंग सुनिश्चित करना ज़रूरी होगा ताकि प्रमोशन प्रक्रिया बाधा-रहित हो।

  3. मान्यता जोखिम — सरकारी दलील थी कि यदि स्टाफSoon नहीं मिले, तो नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) या अन्य नियामक संस्थाएं मान्यता हटाने की कार्रवाई कर सकती थीं।

  4. कार्रवाई का अनुपालन — सरकार निर्णय के बाद कितनी शीघ्रता से नियमों के अनुसार भविष्य की भर्तियाँ करेगी, यह देखना होगा। सरकारी विभागों में प्रबंध और नीति को बदलने में झिझक हो सकती है।


छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक प्रशासनिक फैसले से कहीं अधिक है। यह शिक्षा सेवा में नियमों की प्रधानता, संवैधानिक अधिकारों की रक्षा, और सरकारी आदेशों की वैधता की परीक्षा है।

यह फैसला संकेत है कि भर्ती नीतियाँ, विशेषकर शिक्षण संस्थाओं में, केवल सुविधा के लिए नहीं बदली जा सकतीं; उन्हें कानूनी रूप से निर्धारित नियमों और संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिए। छात्र, अभ्यर्थी, और जो लोग भविष्य में प्रोफ़ेसर बनने की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए यह स्थिति न्याय का भरोसा पैदा करती है कि नियमों से खिलवाड़ नहीं हो पाएगा।

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