मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर: प्राथमिक स्कूल में शिक्षकों की अनुपस्थिति से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित

मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर: प्राथमिक स्कूल में शिक्षकों की अनुपस्थिति से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्र में स्थित शासकीय प्राथमिक स्कूल खेतौली में शिक्षा व्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही है। स्कूल में शिक्षकों की नियमित अनुपस्थिति ने न केवल बच्चों की शैक्षणिक प्रगति पर असर डाला है, बल्कि अभिभावकों और स्थानीय समाज में भी चिंता पैदा कर दी है। यह मामला शिक्षा विभाग और प्रशासन के लिए गंभीर चुनौती बन गया है।


शिक्षकों की अनुपस्थिति का विवरण

खेतौली प्राथमिक स्कूल में पदस्थ शिक्षिकाओं की नियमित उपस्थिति न के बराबर है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, स्कूल में शिक्षिका केवल महीने में 5 से 10 दिन ही उपस्थित रहती हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई में लगातार रुकावटें आती हैं।

  • शिक्षक न होने की वजह से कक्षाओं का संचालन बाधित हो जाता है।

  • छात्रों को पढ़ाई की निरंतरता नहीं मिल पाती और वे पीछे रहने लगते हैं।

  • अभिभावकों ने बताया कि बच्चों को घर पर अतिरिक्त पढ़ाई कराने की जरूरत पड़ रही है, जिससे परिवार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है।


शैक्षणिक असर

शिक्षकों की अनियमित उपस्थिति से बच्चों की पढ़ाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

  • गणित, हिंदी और विज्ञान जैसे मुख्य विषयों में बच्चों की समझ कमजोर हो रही है।

  • नियमित शिक्षण नहीं होने से बच्चों का मनोबल गिर रहा है और वे कक्षा में उत्साहित नहीं रहते।

  • इस समस्या के चलते स्कूल की वार्षिक परीक्षा में भी छात्रों के प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

इस स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षक केवल पाठ पढ़ाने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि बच्चों के शैक्षणिक विकास और मानसिक संतुलन में भी अहम भूमिका निभाते हैं।


स्थानीय लोगों और अभिभावकों की चिंता

ग्रामीणों और अभिभावकों ने शिक्षकों की अनियमितता पर कड़ी आपत्ति जताई है।

  • उन्होंने कहा कि बच्चों की पढ़ाई की अनदेखी समाज के भविष्य के लिए खतरा है।

  • अभिभावक बार-बार स्कूल आते हैं और शिक्षकों से संपर्क करते हैं, लेकिन सुधार नहीं हो रहा है।

  • ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल का यह हाल बच्चों के शिक्षा के अधिकार के साथ खिलवाड़ है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि शिक्षकों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को तत्काल कदम उठाने होंगे।


प्रशासनिक और शिक्षा विभाग की भूमिका

शिक्षा विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और जांच के आदेश दिए हैं। विभाग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो।

  • विभाग ने कहा है कि स्कूलों में शिक्षकों की नियमित उपस्थिति अनिवार्य है।

  • अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अनुपस्थित शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करें और छात्रों के लिए शिक्षण की निरंतरता सुनिश्चित करें।

  • भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए निगरानी और रिपोर्टिंग प्रणाली को और मजबूत किया जाएगा।


सुधार के उपाय

शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं।

  1. उपस्थिति निगरानी: स्कूल में शिक्षकों की उपस्थिति और अनुपस्थिति का रियल-टाइम मॉनिटरिंग।

  2. स्थानीय समुदाय की भागीदारी: अभिभावकों और ग्राम पंचायत की सक्रिय भागीदारी से शिक्षकों पर दबाव बनाया जा सकता है।

  3. प्रोत्साहन और दंड: नियमित शिक्षक को प्रोत्साहन और अनुपस्थित शिक्षक के खिलाफ उचित दंड।

  4. शिक्षा जागरूकता अभियान: बच्चों और अभिभावकों को शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करना।

  5. तकनीकी समाधान: ऑनलाइन शिक्षण मॉड्यूल और रिकॉर्ड-कीपिंग से कक्षा संचालन में सुधार।

इन उपायों से न केवल शिक्षक की उपस्थिति सुनिश्चित होगी, बल्कि छात्रों की पढ़ाई और शैक्षणिक प्रगति भी सुधरेगी।


सामाजिक और दीर्घकालिक प्रभाव

शिक्षकों की अनियमित उपस्थिति से केवल छात्रों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होती, बल्कि इसका समाज और भविष्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

  • बच्चों में शैक्षणिक पिछड़ापन बढ़ता है, जिससे उच्च शिक्षा में उनकी सफलता पर असर पड़ता है।

  • समाज में शिक्षा के प्रति विश्वास कम होता है और सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।

  • भविष्य में यह स्थिति बच्चों के रोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता के अवसरों को भी प्रभावित कर सकती है।

इसलिए शिक्षकों की नियमित उपस्थिति केवल शैक्षणिक विषयों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के दीर्घकालिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।


निष्कर्ष

खेतौली प्राथमिक स्कूल की स्थिति यह दर्शाती है कि शिक्षा क्षेत्र में अभी भी कई सुधार की जरूरत है।

  • बच्चों की पढ़ाई की निरंतरता सुनिश्चित करना शिक्षा विभाग और प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

  • शिक्षक केवल पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि बच्चों के मार्गदर्शक और भविष्य निर्माता हैं।

  • स्थानीय समाज, अभिभावक और प्रशासन को मिलकर सुनिश्चित करना होगा कि सभी बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करें।

इस मामले से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा के अधिकार की रक्षा करना और शिक्षकों की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करना न केवल प्रशासनिक कर्तव्य है, बल्कि समाज की जिम्मेदारी भी है। यदि सही कदम उठाए जाएँ, तो बच्चों की शिक्षा में सुधार संभव है और भविष्य की पीढ़ी सक्षम और शिक्षित बन सकती है।

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