तलाक मामले की पेशी बनी अखाड़ा: बिलासपुर कोर्ट के बाहर प्रधान आरक्षकों में हुई मारपीट

तलाक मामले की पेशी बनी अखाड़ा: बिलासपुर कोर्ट के बाहर प्रधान आरक्षकों में हुई मारपीट

11, 8, 2025

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बिलासपुर। एक तलाक मामले की सुनवाई के दौरान बिलासपुर कोर्ट परिसर में कानून व्‍यवस्था की ऐसी तस्वीर उभरी कि ये अख़बार की सुर्खियाँ बनने लगी। दो प्रधान आरक्षक आपस में विवाद के दौरान हाथापाई पर उतर आए, कोर्ट से बाहर निकलते ही मारपीट हुई और मामला थाने तक पहुंच गया। इस घटना ने न्यायिक परिसर की गरिमा और पुलिस विभाग की अनुशासनहीनता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।


पता कैसे चला मामला

यह घटना शुक्रवार सुबह की है। तलाक के एक मामले की पेशी के लिए पुलिस बल की तैनाती हुई थी, जिसमें प्रधान आरक्षक अरुण कमलवंशी और प्रधान आरक्षक संजय जोशी मुख्य भूमिका में थे। कोर्ट के अंदर सुनवाई के दौरान ही दोनों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया जब यह बात सामने आई कि एक प्रकरण (case file) के पक्षकार बनाने की प्रक्रिया में अरुण को शामिल किया गया है, जबकि संजय को स्थिति गलत लगी।

जज ने स्थिति बिगड़ने पर दोनों राजपत्रित आरक्षकों को कोर्ट से बाहर जाने का आदेश दिया। लेकिन बाहर निकलते ही बातचीत से विवाद बढ़ गया और फिर हाथापाई शुरू हो गई।


बाहर हुई मारपीट और स्थिति की गंभीरता

कोर्ट परिसर से निकलने के बाद अरुण ने संजय का कॉलर पकड़ा और आरोप है कि उन्होंने शारीरिक हिंसा की शुरुआत कर दी। संजय ने भी पलटवार किया। इस दौरान आसपास के लोग और अन्य पुलिस कर्मचारी बीच-बचाव करने को आए, लेकिन पहले पलों में हालात तनावपूर्ण रहे।

भीड़ में मौजूद दुलाल मुखर्जी नामक व्यक्ति ने वीडियो बनाना शुरू कर दिया। वीडियो बनने पर तनाव और बढ़ गया, और दोनों पक्ष आपस में गाली-गलौज करने लगे।


बाद की कार्रवाई

हिंसा की घटना के बाद दोनों आरक्षक थाने पहुंचे और एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। थाने में भी विवाद थमा नहीं; परिवार और समर्थक भी आ पहुँचे और दोनों पक्षों में जुबानी आरोप-प्रत्यारोप हुए।

पुलिस ने इस मामले में रिपोर्ट दर्ज कर ली है। वर्तमान में मामला जांच अधीन है, दोनों की जांच की जा रही है कि किसने शुरुआत की और किन परिस्थितियों ने मारपीट को जन्म दिया।


विभागीय और प्रशासनिक प्रतिक्रिया

कोर्ट परिसर की इस घटना की गंभीरता को देखते हुए, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कोर्ट परिसर का माहौल शांतिपूर्ण होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह की ऐसी हरकत न्यायिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाती है और अनुशासनहीनता को बढ़ावा देती है।

पुलिस विभाग ने भी कहा है कि दोनों आरक्षकों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संभावना है। उन्होंने यह सुनिश्चित करने की बात कही है कि कर्मचारियों के व्यवहार और पेशेवर आचरण पर विशेष निगरानी रखी जाए।


सामाजिक और कानूनी महत्व

यह घटना सिर्फ एक फ़िज़ूल विवाद नहीं है, बल्कि यह इस बात की मिसाल है कि न्यायिक व्यवस्था में तैनात पुलिस कर्मियों की जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है। क्योंकि यदि पुलिस प्रशासन या कोर्ट सुरक्षा भी इन तरह की घटनाओं के लिए सक्षम नहीं है, तो समाज में न्याय व्यवस्था और कानून के प्रति विश्वास क्षीण होता है।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में पुलिस आचरण व शिष्टाचार नियमों का उल्लंघन होता है। कोर्ट परिसर विशेष रूप से संवेदनशील स्थान है, जहां कर्मचारियों से अनुशासन और संयम की अपेक्षा की जाती है।


क्या सीख मिलती है?

  • पुलिस अधिकारियों को कोर्ट परिसर में व्यवहार की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए कि किस तरीके से विवादों से बचा जाए।

  • विभागों को स्पष्ट निर्देश देने चाहिए कि किसी भी विवाद की स्थिति में कानूनी और शांतिपूर्ण मार्ग अपनाया जाए।

  • न्यायालयों को की सुरक्षा व्यवस्था इस प्रकार सुनिश्चित करनी चाहिए कि बाहरी विवाद कोर्ट की प्रक्रियाओं को प्रभावित न करें।

  • सार्वजनिक और मीडिया की सावधानी यह है कि वीडियो या सोशल मीडिया पर मतभेद को बढ़ावा न दें, बल्कि सही तथ्यों की बेहतर जांच के बाद ही निष्कर्ष निकाले जाएँ।


बिलासपुर शर्मनाक अनुभव से गुज़री है जब तलाक की सुनवाई न्यायालय के भीतर भले ही शांतिपूर्ण हो, लेकिन बाहर नाचीज विवाद में बदल गई। प्रधान आरक्षकों के बीच मारपीट ने यह दिखा दिया कि न्यायिक स्थानों पर भी कानून का पालन न रहने से कितना बड़ा सामाजिक और कानूनी संकट पैदा हो सकता है।

इस घटना ने यह भी याद दिलाया कि न्यायालयों की गरिमा सिर्फ न्यायाधीशों के फैसलों से नहीं, बल्कि वहां कार्यरत सभी व्यक्तियों के आचरण से बनती है। उम्मीद है कि जांच निष्पक्ष होगी और सामने आए दोषियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई होगी, ताकि भविष्य में किसी भी तरह की अव्यवस्था न्यायालय परिसरों में न हो।

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