₹100 रिश्वत का झूठा केस…39 साल की सजा: केस लड़ते-लड़ते पत्नी चल बसी, बच्चों की पढ़ाई छूटी, बुढ़ापा गरीबी में कटा, अब हाईकोर्ट बोला- जागेश्वर निर्दोष

₹100 रिश्वत का झूठा केस…39 साल की सजा: केस लड़ते-लड़ते पत्नी चल बसी, बच्चों की पढ़ाई छूटी, बुढ़ापा गरीबी में कटा, अब हाईकोर्ट बोला- जागेश्वर निर्दोष

11, 8, 2025

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₹100 रिश्वत का झूठा केस…39 साल की सजा: केस लड़ते-लड़ते पत्नी चल बसी, बच्चों की पढ़ाई छूटी, बुढ़ापा गरीबी में कटा, अब हाईकोर्ट बोला- जागेश्वर निर्दोष

भारतीय न्याय व्यवस्था की धीमी रफ़्तार और प्रशासनिक लापरवाही का सबसे दर्दनाक उदाहरण छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के रहने वाले जागेश्वर प्रसाद का है। एक मामूली-सा रिश्वत का मामला, जिसमें रिश्वत की रकम महज़ ₹100 थी, ने उनकी पूरी ज़िंदगी छीन ली। 39 साल तक अदालतों के चक्कर काटते रहे, परिवार बिखर गया, घर बर्बाद हो गया, लेकिन आखिरकार हाईकोर्ट ने उन्हें निर्दोष घोषित किया। मगर यह न्याय तब आया, जब जागेश्वर का जीवन संघर्ष और अभावों में ढल चुका था।

रिश्वत का झूठा आरोप

साल 1985 में जागेश्वर प्रसाद पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने सरकारी कामकाज में ₹100 की रिश्वत मांगी। आरोप दर्ज होते ही उन पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा चलाया गया। उस वक्त वह एक छोटे कर्मचारी थे, जिनकी आय इतनी भी नहीं थी कि परिवार का ढंग से गुज़ारा हो सके। लेकिन अचानक इस आरोप ने उन्हें अपराधी बना दिया।

मुकदमे की लंबी लड़ाई

आरोप सिद्ध करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं था, मगर स्थानीय प्रशासन और जांच एजेंसियों ने औपचारिक कार्रवाई कर दी। धीरे-धीरे केस ट्रायल कोर्ट तक पहुँचा और फिर अपील-दर-अपील का सिलसिला शुरू हुआ।

39 साल तक जागेश्वर हर सुनवाई में अदालत के दरवाजे पर खड़े रहे। न कभी तारीख़ समय पर मिली, न कभी सुनवाई पूरी हुई। इस दौरान उनके जीवन का सबसे कीमती समय—जवानी और मध्य आयु—इसी केस की लड़ाई में बीत गया।

परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़

जागेश्वर की पत्नी ने भी इस संघर्ष को झेला। परिवार की आर्थिक हालत इतनी खराब हो गई कि बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट गई। घर में खाने तक की समस्या रहने लगी। पत्नी ने सालों तक उम्मीद बनाए रखी कि कभी न कभी पति पर लगे आरोप हटेंगे, मगर लंबी बीमारी और तनाव ने उसकी जान ले ली।

बच्चे छोटे थे, पढ़ाई के लिए पैसा नहीं था, तो मज़बूरी में उन्हें कम उम्र में ही काम पर जाना पड़ा। शिक्षा छूटने का असर यह हुआ कि वे बेहतर नौकरी या करियर नहीं बना पाए। पूरा परिवार गरीबी की चपेट में आ गया।

बुढ़ापा तन्हाई और तंगी में

जागेश्वर ने अपना पूरा बुढ़ापा इसी मुकदमे में काट दिया। जब उनके उम्र के लोग अपने पोते-पोतियों के साथ जीवन के आख़िरी पल सुकून से बिता रहे थे, तब जागेश्वर पुलिस स्टेशन और अदालतों के चक्कर लगा रहे थे।

हर तारीख़ पर वकील की फीस, आने-जाने का खर्च और कोर्ट का तनाव—इन सबने उन्हें तोड़ दिया। उनके पास न पेंशन थी, न कोई स्थायी साधन। सिर्फ़ रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों से उधार लेकर किसी तरह गुजर-बसर हुई।

हाईकोर्ट का फैसला

अंततः इतने लंबे इंतजार के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने साफ शब्दों में कहा—जागेश्वर प्रसाद निर्दोष हैं। अदालत ने माना कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप साबित नहीं होते।

इस फैसले ने जरूर कानूनी रूप से जागेश्वर को अपराधी की छवि से बाहर निकाल दिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या उनके खोए हुए 39 साल, परिवार की बर्बादी और पत्नी की मौत का कोई मुआवज़ा मिल सकता है?

न्याय में देरी, अन्याय के बराबर

यह मामला सिर्फ जागेश्वर का नहीं है, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था के उस कड़वे सच को उजागर करता है, जिसमें न्याय पाने में पीढ़ियाँ बीत जाती हैं। “न्याय में देरी, न्याय से वंचित करना है”—यह कहावत इस केस पर पूरी तरह सही बैठती है।

अगर जांच एजेंसियां समय पर और निष्पक्षता से काम करतीं, अगर अदालतें समय रहते फैसला देतीं, तो शायद जागेश्वर और उनके परिवार की ज़िंदगी ऐसी न होती।

सवाल और सीख

यह केस हमें कई सवालों के सामने खड़ा करता है:

  • क्या किसी निर्दोष व्यक्ति को 39 साल तक आरोपी की तरह जीने पर मजबूर करना, एक तरह की सज़ा नहीं है?

  • क्या ऐसे मामलों में सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह पीड़ित को मुआवज़ा और सम्मान लौटाए?

  • क्या हमें अपनी न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था को इतना तेज़ और संवेदनशील नहीं बनाना चाहिए कि कोई और परिवार इस तरह बर्बाद न हो?

जागेश्वर की कहानी – एक सबक

जागेश्वर प्रसाद का जीवन आज की पीढ़ी के लिए एक सबक है। यह हमें याद दिलाता है कि रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के झूठे केस भी उतने ही खतरनाक हो सकते हैं जितने असली केस। एक मामूली आरोप किसी इंसान की पूरी दुनिया उजाड़ सकता है।

सच्चाई यह है कि जागेश्वर को भले ही अब अदालत ने निर्दोष ठहराया हो, लेकिन उनकी जिंदगी का बड़ा हिस्सा पहले ही उनसे छीन लिया गया। यह निर्णय उन्हें मानसिक संतोष जरूर देगा, मगर जो खो गया, वह कभी वापस नहीं आएगा।


👉 कुल मिलाकर, ₹100 की रिश्वत का झूठा आरोप जागेश्वर प्रसाद और उनके परिवार के लिए 39 साल लंबा दु:स्वप्न बन गया। अब जबकि अदालत ने उन्हें निर्दोष करार दिया है, तो यह न्यायपालिका और सरकार दोनों के लिए आत्ममंथन का अवसर है कि आखिर क्यों एक निर्दोष को इतना लंबा संघर्ष करना पड़ा।

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