बिलासपुर: नवरात्रि के पहले दिन अरपा नदी पर हुई मनमोहक आरती — हजारों दीयों की रोशनी ने बनाया जादू

बिलासपुर: नवरात्रि के पहले दिन अरपा नदी पर हुई मनमोहक आरती — हजारों दीयों की रोशनी ने बनाया जादू

11, 8, 2025

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बिलासपुर की अरपा नदी के तट पर नवरात्रि के पहले दिन एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिला। जैसे ही नवचाँद दिखा और नवरात्रि की प्रथम आरती शुरू हुई, अरपा के किनारे लगभग 11,000 दीयों से लाइटिंग की गई, जिससे पूरे रिवर व्यू रोड का दृश्य अनोखा और दिव्य हो उठा।

दीपों की नीरवता — भक्ति की गूँज

सुबह की हल्की कोहरे के बीच जैसे ही लोग एक-एक दीप जलाते गए, उस मंद रोशनी ने एक शांत लेकिन गहरा एहसास जगाया। दीयों की कतारें इतनी लंबी थी कि नदी तट की पूरी सीमा रिव्यू रोड से लेकर किनारे तक जगमगा उठी।

वो दृश्य ऐसा था मानो आकाश से धरती मिल रही हो — दीपों की रोशनी, वातावरण में फैली हुई हल्की ठंड और हवा में आरती का स्वर। लोग एक-एक दीप हाथों में लिए नदी की ओर झुक रहे थे, नमस्कार कर रहे थे, कुछ आँसू थे, कुछ मुस्कानें थीं — सब कुछ एक ही भावना में डूबा हुआ था: श्रद्धा और शांति।

आयोजन और व्यवस्था

यह आयोजन स्थानीय लोगों और स्वयंसेवकों की एक संयुक्त पहल थी। अरपा अर्पण महाभियान समिति ने इस दिशा में विशेष तैयारी की थी। समय से पहले तट की सफाई की गई, सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता की गई, और यह सुनिश्चित किया गया कि दीयों के लिए पर्याप्त जगह हो और लोग आराम से आ-जा सकें।

प्रदर्शन स्थल पर लाउडस्पीकर्स पर आरती-भजन बज रहे थे, और हर जगह भक्तों की भीड़ थी। छोटे-बड़े, जवान और बूढ़े — हर कोई शामिल होना चाहता था। कुछ लोग अपनी मन्नतें बाँधने आए थे, कुछ दीप जलाने का मन दिखलाने आए थे, तो कुछ इस पावन अवसर पर आत्म-शांति पाने की चाह में।

नदी से जुड़ा संदेश

आलोकित दीपों के इस समारोह का एक और मकसद और भी था — अरपा नदी की सफाई और संरक्षण की ज़रूरत पर ध्यान खींचना। आयोजनकर्ता यह कहना चाहते थे कि जैसे नवरात्रि में हम देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, वैसे ही हमें प्रकृति, नदियों और जल स्रोतों की भी पूजा करनी चाहिए — उनकी सफाई और संरक्षण हमारी ज़िम्मेदारी है।

दीयों की रोशनी ने नदी के जल में परावर्तन किया, और इस दृश्य ने यह याद दिलाया कि अगर पानी और प्रकृति स्वच्छ हों, तो उनका सौंदर्य भी बढ़ जाता है। अनेक लोगों ने इस मौके पर सोशल मीडिया पर “#SaveArpaRiver”, “अरपा अर्पण” जैसे हैशटैग्स के साथ फोटो और वीडियो शेयर किए, ताकि यह संदेश दूर-दूर तक पहुँचे कि नदी सिर्फ पानी नहीं, जीवन है।

भावनाएँ और अनुभव

भक्तों ने बताया कि जैसे जैसे दीप जल रहे थे, उनका मन शांत हो गया। एक महिला ने कहा, “मैंने दीप जलाया और ऐसा लगा मानो मेरी सारी चिंताएँ उसमें समा गई हैं।” एक युवक ने बताया कि यह दृश्य इतने वर्षों बाद उन्होंने देखा है जहाँ शहर की भाग-दौड़ के बीच भी लोग एक साथ शांतिपूर्ण तरीके से जुटे हों।

बच्चे अपने-अपने हाथों में छोटे-छोटे दीप लिए माता की आरती के बाद उन्हें नदी किनारे रखना चाहते थे, बूढ़े हाथ जोड़कर धन्यवाद कर रहे थे कि इस तरह का आयोजन उनके शहर में हो रहा है।

बाधाएँ और चुनौतियाँ

हालाँकि आयोजन सुचारु रूप से हुआ, पर चुनौतियाँ भी थी। दिन भर की गर्मी ने कुछ लोगों को थका दिया, ट्रैफिक की व्यवस्था में कुछ जगहों पर जाम लग गया था, और कुछ लोगों ने कहा कि वे सही समय पर जानकारी न मिलने से देरी हो गई।

दीपों की जलन के बाद सोलहार (अरपा के किनारे) सफाई करना मुश्किल हुआ, क्योंकि बहुत से संसाधन नहीं थे। कुछ दीये और माचिसें नदी तट पर ही छूट गईं, जिन्हें बाद में स्वयंसेवकों ने जुटाया।

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व

नवरात्रि के पहले दिन की शुरुआत, देवी दुर्गा की पूजा और भक्ति की अनुभूति के लिए काफी मायने रखती है। इस आरती ने सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं बढ़ाया, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक सामूहिकता का भी अनुभव कराया।

इस तरह का आयोजन लोगों को जोड़ता है, उन्हें एक-दूसरे से जोड़ता है — भाषा, जाति, उम्र-पारिवारिक स्थिति से उपर उठकर। अज्ञात जनों के बीच एक साझा अनुभव होता है — रोशनी, भक्ति, संगीत, और नद-ताल की धुन।

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