CAF के 417 उम्मीदवार गलती से मजदूरी पर मजबूर: गृहमंत्री विजय शर्मा बोले – “अगर भरोसा नहीं है, कोर्ट जाओ”

CAF के 417 उम्मीदवार गलती से मजदूरी पर मजबूर: गृहमंत्री विजय शर्मा बोले – “अगर भरोसा नहीं है, कोर्ट जाओ”

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के इन उम्मीदवारों की कहानी निराशा, उम्मीद, और अधिकार के संघर्ष की है। करीब 417 उम्मीदवारों ने पिछले लगभग सात साल से नौकरी का इंतजार किया है — CAF (Candidates Against Faculty या भर्ती प्रक्रिया से जुڑا कोई नाम हो सकता है) के इस दायरे में आकर ये लोग लगातार अपील कर रहे हैं कि उनका चयन हो, उनका भविष्य संवर सके। लेकिन सरकार और संबंधित विभागों की ओर से समय-समय पर आश्वासन देने के बावजूद चीजें नहीं सुधरीं। अब गृहमंत्री ने कहा है कि अगर उम्मीदवारों को भरोसा नहीं है, तो न्यायालय चले जाएँ।


क्या है मामला?

  • सैकड़ों लोग जिन्होंने परीक्षा पास की है, प्रक्रियाएँ पूरी की हैं, लेकिन नौकरी नहीं मिल पा रही।

  • 7 साल से ये इंतज़ार है — इतने समय में जीवन की पार्टियाँ बदलती हैं, जिम्मेदारियाँ बढ़ती हैं, आर्थिक दबाव बढ़ता है।

  • इनमें से कई उम्मीदवार ओवरएज हो चुके हैं — मतलब समय बीतने के कारण उनकी उम्र सीमा समाप्त हो गई है, जिस वजह से अब वे इस भर्ती प्रक्रिया के अंतर्गत नहीं आ सकते। 

  • साथ ही, लगभग 3000 पद अभी भी खाली बताये जा रहे हैं। 


राजनीतिक और प्रशासकीय आश्वासन

उम्मीदवारों ने सरकार और विभाग से कई बार आश्वासन मांगे कि उनकी भर्तियाँ जल्द होंगी, न्याय होगा। कई बार गृहमंत्री के आश्वासनों की घोषणाएँ हुईं कि उन्हें समस्यायें मिल रही हैं, त्वरित कार्रवाई होगी, लेकिन समय-समय पर ये कहा गया कि कागजी प्रक्रिया में देरी है, संसाधनों की कमी है या चयन-प्रक्रिया पर पुनरावलोकन हो रहा है।

उम्मीदवारों की स्थिति इससे और पेंचीदा हो गई कि वे प्रशासनिक व्यवस्था का हिस्सा बन गए — निराशा के बीच उम्मीद। लेकिन जब कई उम्मीदवार ओवरएज हो गए, तो उन्हें अब अपने अधिकार खोते हुए महसूस हुआ।


गृहमंत्री का फरमान: “अगर भरोसा नहीं हो, कोर्ट जाओ”

जब समस्याएँ और व्यथा उम्मीदवारों ने सामने रखीं, तब गृहमंत्री विजय शर्मा ने जवाब दिया:

"अगर भरोसा नहीं है, आप कोर्ट जाइए।" 

यह उत्तर सुनने वालों के लिए तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि कानून की प्रक्रिया लंबी है, महँगी है, और हर उम्मीदवार की आर्थिक स्थिति कोर्ट खर्च वहन करने की नहीं होती। इसके अलावा, ओवरएज होने के बाद न्यायालय द्वारा उन्हें वापस नौकरी देने की गुंजाइश भी सीमित होती है।


उम्मीदवारों की हालत

  • कई उम्मीदवारों ने बताया है कि इस लंबी लड़ाई ने उनकी आर्थिक स्थिति बिगाड़ दी है। पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ, रोज़मर्रा का खर्च, पढ़ाई-लिखाई, जीवन की प्राथमिक ज़रूरतें—सब कुछ दबाव बन गया है।

  • कुछ ने ऐसे हालात बताए हैं जहाँ उन्होंने अपने करियर का सुनहरा मौका खो दिया क्योंकि उम्र सीमा खत्म हो गई थी।

  • मानसिक तनाव भी बहुत है: लगातार असमंजस, निराशा, उम्मीद की किरण के टूटते-टूटते फिर झलकने की स्थिति।


सवाल जो उठते हैं

  1. न्याय में देरी, अन्याय नहीं? अगर भर्ती-प्रक्रिया में इतने साल लग गए, तो क्या यह प्रकार का अन्याय नहीं है कि उम्र के कारण उम्मीदवारों को बाहर कर दिया जाए?

  2. सरकार का क्या उत्तरदायित्व है? जिन संसाधन की कमी या प्रक्रिया में खामियाँ हैं, उन्हें सुधारने की जिम्मेदारी किसकी है? क्या सरकार समय-बढ़ाने, ओवरएज की स्थिति में मुआवज़ा देने या विशेष छूट देने पर विचार नहीं कर सकती?

  3. न्यायालय तक पहुँच की बाधाएँ — हर कोई लीगल फंडिंग और वकील की फीस वहन कर सकता है क्या? न्यायालय की प्रक्रिया कितनी सुगम है आम उम्मीदवार के लिए?


संभावित रास्ते और समाधान

  • सरकार को चाहिए कि भर्ती प्रक्रिया की समयसीमा तय करे, पारदर्शी तरीके से निश्चित करे कि कब तक चयन पूरा होगा।

  • ओवरएज उम्मीदवारों के लिए विशेष प्रावधान हो सकता है, जैसे कि आवेदन तिथि के हिसाब से आयु-शर्त लागू हो, या उन लोगों को छूट मिले।

  • विभागीय स्तर पर शिकायत निवारण प्रणाली मजबूत होनी चाहिए, जहाँ उम्मीदवारों की समस्या सुनवाई हो और त्वरित निर्णय लिया जाए।

  • न्याय तक पहुँच सुगम हो: मुफ्त कानूनी सलाह या सरकारी वैकल्पिक उपाय हो सकते हैं ताकि उम्मीदवारों को कोर्ट जाने में आर्थिक बोझ न उठाना पड़े।


निष्कर्ष

इस मामले में सरकारी आश्वासन और अदालत की राह दोनों सामने हैं। पर जब हजारों लोगों की ज़िन्दगी इस तरह प्रभावित हुई हो, समय और उम्र का नुकसान हो चुका हो, तब सिर्फ़ “कोर्ट जाओ” कहना पर्याप्त नहीं लगता। न्याय की प्रक्रिया सिर्फ कानूनी साक्ष्य नहीं है, बल्कि इंसानियत और समय की कीमत को भी समझना चाहिए।

छत्तीसगढ़ की सरकार को यह देखना होगा कि भर्ती प्रक्रिया में होने वाली देरी, ओवरएज की समस्या और उम्मीदवारों की बेरुखी से उन्हें न्याय दिलाना है — सिर्फ वायदों से नहीं, क्रियात्मक कदमों से।

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