निजी व सहायता प्राप्त स्कूल अब ESI एक्ट के दायरे में: हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

निजी व सहायता प्राप्त स्कूल अब ESI एक्ट के दायरे में: हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

11, 8, 2025

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है कि राज्य के निजी एवं सहायता प्राप्त (aided) स्कूल अब कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (ESI Act) के दायरे से बाहर नहीं रह सकते। न्यायाधीश रजनी दुबे और न्यायाधीश अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने कई याचिकाएँ एक साथ सुनते हुए यह स्पष्ट किया कि शिक्षा संस्थाएँ “स्थापना” (establishment) की श्रेणी में आती हैं और वहां काम करने वाले शिक्षकों, स्टाफ एवं अन्य कर्मचारियों को इसके प्रावधानों का लाभ मिलना चाहिए।


मामला क्या था

कई निजी स्कूलों ने राज्य सरकार की 27 अक्टूबर 2005 की अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसमें यह कहा गया था कि कुछ स्कूलों को ESI अधिनियम के दायरे में लाया जाए। स्कूलों का तर्क था कि शिक्षा सेवा व्यवसाय नहीं है, और न ही ये उद्यम-उद्योग की तरह हैं इसलिए उन पर सामाजिक सुरक्षा अधिनियम लागू नहीं किया जाना चाहिए।

स्कूल प्रबंधन ने यह भी कहा था कि उनके यहाँ कर्मचारी संख्या कम है, काम के स्वरूप में औद्योगिक गतिविधियाँ नहीं हैं, इसलिए ESI जैसी औद्योगिक-किस्म की सामाजिक सुरक्षा व्यवस्थाएँ उन पर लागू नहीं होनी चाहिए।


ESI निगम और राज्य सरकार का पक्ष

राज्य सरकार और राज्य कर्मचारी राज्य बीमा निगम ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों का खंडन किया। उनका कहना है:

  • ESI अधिनियम सामाजिक सुरक्षा कानून है, जो मजदूरों और कर्मचारियों को स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ, दुर्घटना सुरक्षा व अन्य कल्याणकारी सुविधाएँ प्रदान करता है; इसका दायरा सिर्फ उद्योगों तक सीमित नहीं है, बल्कि उन सभी संस्थाओं तक है जहाँ व्यक्ति नियमित रूप से कार्य करता है।

  • स्कूलों में नियमित शिक्षण और परिचालन होते हैं, काफी कर्मचारी कार्यरत होते हैं; इसलिए ये संस्थाएँ “स्थापना” की परिभाषा में आ जाती हैं।


हाई कोर्ट ने क्या कहा

  • अदालत ने तर्कों को स्वीकार किया कि ESI एक्ट की “स्थापना” की परिभाषा व्यापक है और इसमें निजी या सहायता प्राप्त शिक्षा संस्थाएँ भी सम्मिलित हैं।

  • न्यायालय ने यह देखा कि अधिसूचना बनाने का समय-सारिणी (notice period) पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के अनुरूप था।

  • अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अधिसूचना वैध है और 2005 की अधिसूचना को बरकरार रखा जाए।

  • न्यायालय ने यह भी कहा कि सभी प्रभावित स्कूलों को ESI के तहत नामांकन करना चाहिए, सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्मचारी समय से ESI अंशदान (contribution) भरें और लाभ मिले।


किस-किसे लाभ होगा

  • राज्य के लगभग 1,900 निजी एवं सहायता प्राप्त स्कूल इस फैसले से प्रभावित होंगे।

  • हजारों शिक्षक व अन्य स्टाफ जिनके पास अभी ESI सुरक्षा नहीं थी, उन्हें स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना सुरक्षा, मातृत्व लाभ व अन्य कल्याणकारी सुविधाएँ मिलने की उम्मीद है।

  • विशेष कर छोटे स्कूलों का जो ESI के दायरे में नहीं थे, अब वे वैधानिक रूप से जुड़ेंगे और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार पाएँगे।


चुनौतियाँ और आगे की राह

हालाँकि यह फैसला मजदूरों के लिए बड़ी जीत है, पर कुछ चुनौतियाँ हैं:

  1. नामांकन प्रक्रिया: निजी स्कूलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे ESI निगम के पंजीकरण कराएँ। प्रशासन को सरल प्रक्रिया और मार्गदर्शन देना होगा।

  2. अंशदान भुगतान की व्यवस्था: नियमित रूप से कर्मचारी और नियोक्ता दोनों अंशदान भरें; किसी प्रकार की देरी न हो।

  3. अवधि-पूर्व लेखा-जोखा: पुराने वर्ष-वर्ष के ट्रांज़ैक्शन और कर्मचारी रिकॉर्ड आदि तैयार होना चाहिए ताकि दावों पर विवाद न हो।

  4. शिक्षकों की जागरूकता: कर्मचारी यह जानें कि उन्हें कौन-से लाभ प्राप्त होंगे, शिकायत के लिए कहाँ जाना है, उनके अधिकार क्या हैं।

  5. नियमित निरीक्षण और अनुपालन सुनिश्चित करना: राज्य सरकार/ESI निगम को यह देखना होगा कि सभी स्कूलों द्वारा यह कानून पालन किया जा रहा है, निरीक्षण हो और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो।


सामाजिक और नीतिगत महत्व

  • यह फैसला शिक्षा क्षेत्र के कर्मचारियों को वैधानिक सुरक्षा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

  • सामाजिक सुरक्षा की इस व्यवस्था से कर्मचारियों को मनोबल मिलेगा, स्वास्थ्य-स्वच्छता में सुधार होगा और शिक्षा सेवा में स्थिरता आएगी।

  • नीति निर्माताओं के लिए उदाहरण है कि कानून और संवैधानिक अधिकारों को समय-समय पर समीक्षा की आवश्यकता होती है।


छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह निर्णय निजी और सहायता प्राप्त स्कूलों के कर्मचारियों के लिए एक बड़ी सफलता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि शिक्षा संस्थाएँ भी ESI अधिनियम की कवरेज में आती हैं और कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा के सारे प्रावधान मिलने चाहिए।

अब अहम यह है कि राज्य सरकार और ESI निगम इस फैसले को समय पर लागू करें, सभी स्कूलों को नामांकन सुनिश्चित कराएँ और कर्मचारियों को उनके हक मिलें। यदि ऐसा हुआ, तो यह फैसला न सिर्फ न्याय बल्कि समाज की जिम्मेदारी को भी साकार करेगा।

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