बिजापुर: नक्सलियों ने शांति वार्ता से किया इंकार — तनाव बढ़ेगा कार्रवाई की राह

बिजापुर: नक्सलियों ने शांति वार्ता से किया इंकार — तनाव बढ़ेगा कार्रवाई की राह

11, 8, 2025

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बिजापुर, छत्तीसगढ़ — जिले में शांति की उम्मीद जगाने वाली चर्चाएँ ठप हो गई हैं क्योंकि स्थानीय नक्सली संगठनों ने सरकार द्वारा प्रस्तावित शांति वार्ता से साफ इंकार कर दिया है। इस फैसले के बाद सुरक्षा-बलों और प्रशासनिक अधिकारियों में सतर्कता बढ़ गई है, और चुनिंदा क्षेत्रों में खतरा गहराने की संभावना जताई जा रही है।


प्रस्ताव क्या था?

प्रदेश सरकार और सुरक्षा बलों ने नक्सल प्रभावित इलाकों — खासकर बिजापुर, सु्क्मा तथा अन्य बस्तर के जिलों — में शांति स्थापित करने के लिए नक्सलियों को हाथ बढ़ाने की पेशकश की थी। प्रस्ताव के तहत:

  • एक महीने की लिए संघर्ष बंद करने (ceasefire) की वार्ता शुरू करवाना।

  • बातचीत की मेज पर बैठकर आपसी समझ और विकास योजनाएँ लागू करना।

  • नक्सल प्रभावित गाँवों में बुनियादी सुविधाएँ बेहतर हो, जैसे सड़क, स्वास्थ्य, बिजली आदि।

ये प्रस्तावों ने उम्मीद जगाई कि हिंसा और संघर्ष से झुलसे ग्रामीण इलाकों में राहत मिल सकती है।


नक्सलियों का इंकार और उनका बयां

हालाँकि, नक्सलियों ने इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया। उनका कहना है कि सरकार की शर्तें — जैसे सुरक्षा बलों की मौजूदा गतिविधियों का बंद होना, गिरफ़्तारियों में देरी आदि — शांति वार्ता में बाधा हैं। इसके अलावा नक्सली संगठन यह भी दावा कर रहे हैं कि उनके जेल में बंद साथी नायकों को सम्मिलित किए बिना वार्ता निष्कर्षों में भरोसा नहीं किया जा सकता।

उनका इंकार इस बात पर आधारित है कि वार्ता सिर्फ कागज़ों और विज्ञापनों तक सीमित न हो, बल्कि वास्तविक बदलाव हो — जमीन पर विकास, सुरक्षा, स्थानीय आत्म-प्रभुता आदि क्षेत्रों में।


प्रशासन और सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया

इंकार के बाद स्थानीय प्रशासन ने यह स्पष्ट किया है कि सुरक्षा कार्रवाई लगातार जारी रहेगी। सुरक्षा बलों ने बताया है कि नक्सली गतिविधियों पर नजर बढ़ाई गई है, इलाके में गश्त और कार्रवाई तेज की गई है।

स्थानीय अधिकारी यह कह रहे हैं कि शांति वार्ता का प्रस्ताव सरकार की पहल थी, लेकिन यदि दूसरी तरफ़ वार्ता के लिए गंभीरता और स्पष्टता न हो, तो प्रतिबंध और कठोर ऑपरेशन बढ़ेंगे।


ग्रामीणों का डर और स्थिति

ग्रामीण इलाकों में शांति की स्थिति खराब होने का डर है। लोगों को लग रहा है:

  • कि इंकार के बाद संघर्ष या हिंसा में इज़ाफा हो सकता है।

  • कि विकास परियोजनाएँ प्रभावित होंगी क्योंकि सरकार उन इलाकों में पहुँचने से पहले सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहेगी।

  • कि स्थानीय लोग, विशेषकर आदिवासी, नक्सलवादी और सुरक्षा बलों के बीच में फँस सकते हैं।

कुछ ग्रामीणों ने कहा कि वे चाहते थे कि शांति वार्ता हो जाए क्योंकि युद्ध, हिंसा और तूफ़ानी जवाबदेही से ज़्यादा कष्ट उन्हें झेलना पड़ रहा है।


क्या हो सकती है अगली चाल?

  • सरकार को चाहिए कि नक्सलियों को विश्वास दिलाया जाए कि वार्ता के दौरान उनकी सुरक्षा और उनके साथी नेताओं की भागीदारी सुनिश्चित होगी।

  • वार्ता के प्रस्तावों में पारदर्शिता होनी चाहिए — किस वार्ता का एजेंडा है, कौन-कौन शामिल होंगे, वार्ता के बाद क्या होगा आदि।

  • ग्रामीण इलाकों में बची-खुची विस्थापितता, बुनियादी सुविधाएँ जैसे सड़क, बिजली, स्वास्थ्य आदि जल्दी से जल्दी सुधारने की कोशिश हो।

  • सुरक्षा बलों को यह ध्यान देना चाहिए कि कार्रवाई करते समय आम लोगों को नुकसान न हो, इससे नकारात्मक भावना और ज्यादा बढ़ सकती है।


निष्कर्ष

नक्सलियों का शांति वार्ता से इंकार इस बात की निशानी है कि समस्या सिर्फ हथियारों की नहीं है — भरोसा, न्याय, भागीदारी और विकास की ज़रूरत है।

सरकार के प्रस्तावों को प्रभावी बनाने के लिए जमीन स्तर पर काम करना होगा — लोगों की समस्या सुननी होगी, उनकी अपेक्षाएँ पूरी करनी होंगी।

बिजापुर के इलाके में शांति की राह खुल सकती है, लेकिन इंकार के बाद अब संघर्ष की संभावना ज़्यादा है।

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