दुर्ग अस्पताल में इंजेक्शन देने के कुछ देर बाद युवक की मौत, परिजनों ने गलत इलाज का आरोप लगाया

दुर्ग अस्पताल में इंजेक्शन देने के कुछ देर बाद युवक की मौत, परिजनों ने गलत इलाज का आरोप लगाया

11, 8, 2025

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दुर्ग। जिले के सरकारी जिला अस्पताल में बुधवार को इलाज के दौरान एक युवक की मौत हो गई है, जिसे परिजनों ने डॉक्टर और स्टाफ की लापरवाही बताया है। मामला चूहा मारने की दवा खाने के बाद अस्पताल में भर्ती युवक प्रभाष सूर्या का है, जिसकी स्थिति सुबह अचानक बिगड़ गई। अस्पताल प्रशासन ने मामले की छानबीन शुरू कर दी है।


कैसे हुई घटना

23 वर्षीय प्रभाष सूर्या मंगलवार को चूहा मारने की दवा खाने के बाद अपने घर वालों की मदद से जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। परिजनों ने बताया कि हालात पहले तो स्थिर थी, रात भर प्रभाष ने ठीक अनुभव किया और संवाद भी किया।

लेकिन बुधवार सुबह एक स्टाफ नर्स ने उल्टी कराने के लिए जो इंजेक्शन लगाया गया, उसके कुछ ही समय बाद प्रभाष की तबीयत तेजी से खराब होती चली गई। परिजन दावा करते हैं कि इंजेक्शन लगाने के बाद डॉक्टर की जवाबदेही अव्यवस्थित रही और उपचार में देर हुई, जिससे अंतिम समय में जीवन बचाने का प्रयास असफल हो गया।


परिजनों की प्रतिक्रिया और आरोप

प्रभाष की माँ पूजा सूर्या का कहना है कि अगर डॉक्टरों ने सही प्रकार की उपचार पद्धति अपनाई होती, तो शायद उनकी जान बच सकती थी। उन्होंने यह भी कहा कि अस्पताल स्टाफ ने स्थिति को हल्के में लिया और परिजन जब तक गंभीर हो गए, तक कार्रवाई नहीं हुई।

भाई निखिल ने बताया कि इंजेक्शन देने वाली स्टाफ नर्स घटना के बाद गायब हो गई और डॉक्टर भी मृतक का नाम नहीं सही-सही बता सके। परिजन इस तरह की लापरवाही को अस्वीकार्य मानते हैं और न्याय की मांग करते हैं।


प्रशासनिक कार्रवाई

घटना की सूचना मिलने पर अस्पताल प्रशासन ने तुंरत कार्रवाई करते हुए मामले की आंतरिक जांच शुरू कर दी है। अस्पताल प्राचार्य ने कहा कि दोषियों की पहचान की जाएगी और यदि लापरवाही पाई गई, तो सख्त कार्रवाई होगी।

स्थानीय विधायक और अन्य राजनीतिक प्रतिनिधि मौके पर पहुंचे और परिजनों को सांत्वना दी। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग से पूरी रिपोर्ट मांगी है। पुलिस भी मामले को संज्ञान में ले चुकी है और घटना की प्रारंभिक रिपोर्ट दर्ज की गयी है।


सामाजिक और स्वास्थ्यकर्मी टिप्पणी

स्वास्थ्य कर्मियों और स्थानीय लोगों में हुई चर्चा में यह बात सामने आ रही है कि अस्पतालों में स्टाफ संख्या, प्रशिक्षित कर्मियों की अनुपस्थिति और समय पर जरूरी जांच-परीक्षण न होने के कारण ऐसी घटनाएँ हो रहीं हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि जब किसी भी विष या मेडिकल इमरजेंसी के मामले में अस्पताल में निगरानी (monitoring) तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया (emergency response) पर्याप्त नहीं हो, तो समय पर दी जाने वाली छोटी-सी भूल भी जानलेवा साबित हो सकती है।


कानूनी पहलू

परिवार ने बताया है कि यदि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह साबित हुआ कि इंजेक्शन या उपचार में गलती हुई है, तो डॉक्टर और नर्स के खिलाफ मेडिकल नेगलिजेंस की कार्रवाई की जाएगी।

मेडिकल लॉ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह के मामलों में अस्पतालों को पारदर्शी रिकॉर्ड रखना चाहिए — कौन-से डॉक्टर/नर्स ने क्या दवा दी, किस समय और किस पर dosage बनाई थी, ये सभी विवरण मेडिकल रिकोर्ड में होने चाहिए। यह डेटा बाद में न्यायालय में महत्वपूर्ण हो सकता है।


संभावित दिशा और सुझाव

इस घटना से ये बातें स्पष्ट होती हैं कि अस्पतालों में निम्न-लिखित व्यवस्थाएं बेहतर होनी चाहिए:

  1. मॉनिटरिंग सिस्टम: इंजेक्शन एवं इलाज के बाद मरीज पर निगरानी की व्यवस्था हो कि स्थिति बिगड़ती है तो तुरंत कार्रवाई हो सके।

  2. स्टाफ की जवाबदेही: डॉक्टर व नर्सों के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण हो और मेडिकल एथिक्स व प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित किया जाए।

  3. पारदर्शी रिकॉर्डिंग: इलाज के हर चरण का विवरण लिखा जाए — किसने क्या दवा दी, कब दी, किस डोज़ में। यह दावों के समय काम आए।

  4. आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र: अस्पताल के किसी भी यूनिट में इमरजेंसी सेवाएँ सक्रिय हों, और ऐसे कर्मचारी हों जो तुरंत प्रतिक्रिया दे सकें।

  5. मामलों की निगरानी और शिकायत तंत्र: मरीजों और उनके परिवारों को पता होना चाहिए कि यदि कोई गलती हुई है तो शिकायत कहाँ करनी है।


दुर्ग जिला अस्पताल में हुई यह घटना सिर्फ एक उपचार में गलती का नहीं, बल्कि अस्पतालों की तैयारी और जवाबदेही की कमी की गवाही है। प्रभाष के परिवार के दुःख को शब्दों में बयान करना मुश्किल है, लेकिन यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि स्वास्थ्य सेवाएँ सिर्फ दवाएं देने तक सीमित नहीं — बल्कि समय, देखभाल, सावधानी और मानवता की कसौटी भी हैं।

यदि जांच निष्पक्ष होगी और आवश्यक सुधार होंगे, तो भविष्य में ऐसी घटनाएँ कम होंगी। लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि हर अस्पताल में लापरवाही की मौतें सिर्फ खबरें न बनें, बल्कि न्याय और सुधार की दिशा में कदम हों।

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