बालोद की 9 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म: समाज, कानून और संवेदनशीलता की कसौटी

बालोद की 9 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म: समाज, कानून और संवेदनशीलता की कसौटी

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में हुई दर्दनाक घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। एक मासूम 9 वर्षीय बच्ची, जिसे खेल-कूद और पढ़ाई के दिन होने चाहिए थे, उस पर उसके ही रिश्तेदार—जो कि पिता का बड़ा भाई, अर्थात परिवार का सबसे बड़ा अभिभावक—द्वारा दुष्कर्म किया गया। यह घटना सिर्फ एक बच्ची के जीवन को प्रभावित नहीं करती, बल्कि पूरे समाज, पुलिस व्यवस्थापन, न्याय व्यवस्था तथा माता-पिता की जिम्मेदारियों को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा करती है।

पीड़िता का दर्द और परिवार की स्थिति

जिस बच्ची के साथ यह कुकृत्य हुआ, उसके माता-पिता ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके ही घर का एक सदस्य, जिसे वे अपना संरक्षक समझते थे, परिवार के विश्वास को इस कदर तोड़ देगा। घटना का खुलासा जब हुआ, तो परिवार टूट सा गया। बच्ची मानसिक रूप से गंभीर स्थिति में पहुंच गई और चिकित्सा के साथ-साथ उसे मानसिक परामर्श की सख्त आवश्यकता पड़ी।

कानून की प्रक्रिया

घटना के सामने आते ही पुलिस ने तत्परता दिखाई। सबसे पहले, पीड़िता की मेडिकल जांच कराई गई, जिसके बाद शिकायत दर्ज की गई। आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने विशेष टीम गठित की, जिसने उसे कुछ ही दिनों में पकड़ लिया। दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों में देश के कानून के अनुसार, आरोपी को कठोर सजा का प्रावधान है—यह निर्भया एक्ट व पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत आता है। ऐसी घटनाओं में पुलिस की तत्परता और संवेदनशीलता पीड़िता को न्याय दिलाने की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है।

समाज की जिम्मेदारी

बाल यौन शोषण केवल एक व्यक्तिगत या पारिवारिक मुद्दा नहीं है, बल्कि सामाजिक स्तर पर गंभीर चिंता का विषय है। छोटे बच्चे अपने साथ हुए गलत व्यवहार के बारे में बोलने से डरते हैं और चुप रह जाते हैं। इसलिए माता-पिता, अभिभावकों और शिक्षकों को बच्चों की गतिविधियों, व्यवहार तथा भावनात्मक बदलावों पर नजर रखनी चाहिए। समाज में जागरूकता के अभियान, बच्चों को उनके अधिकार, सुरक्षा तथा “गुड टच-बैड टच” की शिक्षा देने के लिए कार्यक्रम आवश्यक है।

यहां सबसे दुखद पहलू यह है कि अपराधी परिवार का ही सदस्य था। भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवारों को सुरक्षा की जगह माना जाता है, किंतु ऐसे दुर्लभ केस समाज के भरोसे को झकझोरते हैं। इसके बाद जो सबसे जरूरी पहलू है, वह है पीड़िता को मानसिक व भावनात्मक समर्थन देना। ऐसे बच्चों को पुनर्वास की नीतियों की जरूरत होती है।

पुलिस की कार्यप्रणाली और चुनौतियाँ

बाल यौन शोषण के मामलों में पुलिस को संवेदनशीलता, गोपनीयता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना होता है। मासूम बच्ची से पूछताछ करना, मेडिकल परीक्षण कराना तथा बयान दर्ज कराना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। यदि परिवार, समाज और पुलिस मिलकर सहयोग करें तो पीड़िता को न्याय दिलाने की संभावना बढ़ जाती है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया और बच्चों की सुरक्षा के लिए जागरूकता कार्यक्रमों की घोषणा की है।

न्यायिक प्रक्रिया

घटना के बाद पुलिस ने अभियुक्त के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और आई.पी.सी. की धारा 376 के तहत केस दर्ज किया। अदालत ने मामले की त्वरित सुनवाई का आदेश दिया। बाल यौन शोषण के मामलों में ठोस सबूत, मेडिकल रिपोर्ट और पीड़िता के बयान सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं। न्यायालय ने इस मामले में आरोपी को पुलिस रिमांड में भेजा और सजा सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्यों का संग्रह किया। ऐसी घटनाओं में दोषी को उम्रकैद या फाँसी तक की सजा का प्रावधान है, जिससे भविष्य में लोग ऐसा घृणित अपराध करने से डरें।

सामाजिक मनोविज्ञान और पुनर्वास

पीड़िता के पुनर्वास के लिए सिर्फ कानून की सख्ती पर्याप्त नहीं है, बल्कि सामाजिक मनोविज्ञान भी उतना ही जरूरी है। बच्चे को मानसिक रूप से मजबूत करना, उसके खोए आत्मविश्वास को लौटाना, उसके सपनों को नया आयाम देना, परिवार, समाज और सरकार की तीनों की जिम्मेदारी है। मेडिकल सहायता के साथ-साथ काउंसलिंग, स्कूल में मित्रों का समर्थन तथा समाज का सकारात्मक दृष्टिकोण पीड़िता के जीवन को सामान्य बनाने में मदद करेगा।

समाज के लिए संदेश

यह घटना पूरे देश और प्रदेश के लिए एक चेतावनी है कि बच्चों की सुरक्षा केवल कानून या पुलिस के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती। परिवार के सदस्य, स्कूल, समाज और सरकार, सभी को सामूहिक जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। बच्चों को छोटी उम्र से ही आत्मरक्षा, अधिकार और संकोच के बावजूद बोलने की शिक्षा देना होगी। पेरेंटिंग में “ओपन कम्युनिकेशन” की अवधारणा को अपनाने की जरूरत है, जिसमें बच्चा अपने मन की बात स्वतंत्र रूप से कह सके।

सरकार व नीति-निर्माताओं की जिम्मेदारी

छत्तीसगढ़ सरकार ने इस घटना के बाद नीति में बदलाव के संकेत दिए हैं—बाल सुरक्षा के लिए स्कूलों व पंचायत स्तर पर अभियान चलाने, जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन और दोषियों को कड़ी सजा दिलाने की व्यवस्था लाई जा रही है। यदि समाज, सरकार और कानून मिलकर पूरी जिम्मेदारी लें तो भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है।


इस तरह बालोद जिले में घटी यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे समाज, सरकार, प्रशासन और देश की चेतना को झकझोर देती है। यह समय है कि हम सब मिलकर बच्चों की सुरक्षा, अधिकार एवं भविष्य की रक्षा के लिए जागरूकता से लेकर कार्रवाई तक पूरी जिम्मेदारी निभाएं।

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