छत्तीसगढ़ में बाल अधिकार और राजनीति: चिंता, जागरूकता और नेतृत्व संकट

छत्तीसगढ़ में बाल अधिकार और राजनीति: चिंता, जागरूकता और नेतृत्व संकट

11, 8, 2025

13

image

छत्तीसगढ़ में हाल ही में घटित दो प्रमुख घटनाओं ने राज्य के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को गहराई से प्रभावित किया है। एक ओर जहाँ बालोद जिले में 9 वर्षीय बच्ची के साथ उसके ही रिश्तेदार द्वारा दुष्कर्म की दर्दनाक घटना ने समाज को झकझोर दिया, वहीं दूसरी ओर राजधानी रायपुर में आम आदमी पार्टी के प्रदेश महासचिव जसबीर के अलगाववादी कदम—इस्तीफे—ने राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। इन दोनों खबरों के मध्य से राज्य की वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ और आवश्यक सुधारों की पड़ताल बेहद जरूरी हो गई है।


बालोद की घटना: मासूमियत पर हमला

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में जिस प्रकार से एक मासूम बच्ची के साथ उसके ‘बड़े पिता’ ने दुष्कर्म किया, यह समाज में परिवार की सुरक्षा-कवच और विश्वास की धारणा को गहरा आघात पहुँचा गया। पीड़िता और उसका परिवार फिलहाल मानसिक रूप से बिखर गया है। बच्चों के साथ घर के ही बड़े, जिनका कर्तव्य सुरक्षा करना था, वही जब खलनायक बन जाते हैं, तब भारतीय परिवार व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है।

ऐसी घटनाओं के बाद पीड़ित के पुनर्वास के लिए केवल कानून की सख्ती ही नहीं बल्कि समग्र सामाजिक समर्थन आवश्यक हो जाता है। बच्ची को मेडिकल इलाज के बाद मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग दी जा रही है; पर उसका जीवन फिर से सामन्य हो सके, इसके लिए परिवार, स्कूल और समाज को मिलकर आश्वासन देना होगा।

इस तरह के अपराधों में जब आरोपी घर का ही सदस्य है, तब जांच-पड़ताल और न्याय प्रक्रिया बेहद संवेदनशील हो जाती है। पुलिस ने आरोपी को पकड़ने के लिए विशेष टीम गठित की और त्वरित कार्रवाई की। पोक्सो एक्ट व आइपीसी की धारा 376 के तहत केस दर्ज होना तथा कोर्ट का त्वरित हस्तक्षेप निश्चित ही आशाजनक है, मगर सवाल यह भी है: क्या ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है?


समाज और सरकार की जिम्मेदारियाँ

बाल यौन शोषण के मामलों को सिर्फ पुलिस या अदालत के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। बच्चों को ‘गुड टच-बैड टच’ की शिक्षा, अपने अधिकार और स्थिति को बताने की हिम्मत दी जानी चाहिए। माता-पिता और टीचर्स को बच्चों में होने वाले सामान्य या असामान्य बदलावों पर ध्यान देना आवश्यक है। छत्तीसगढ़ सरकार ने विमर्श किए हैं कि बाल सुरक्षा जागरूकता अभियान पंचायत और स्कूल स्तर पर चलाए जाएँगे।

इसके अलावा, ऐसी घटनाओं के बाद बच्चे का पुनर्वास, शिक्षा में पर आधारित मित्रता, परिवार का भावनात्मक सहारा और समाज का सकारात्मक दृष्टिकोण बेहद अहम हैं। कानून के साथ-साथ संवेदनशीलता, कठोरता और मनोवैज्ञानिक समर्थन—इन तीनों का समन्वय हर ऐसी घटना में होना चाहिए।


रायपुर: आम आदमी पार्टी में संकट, जसबीर का इस्तीफा

छत्तीसगढ़ की राजनीति में आम आदमी पार्टी के प्रदेश महासचिव जसबीर का इस्तीफा उस समय आया, जब पार्टी पहले ही संगठनात्मक संकट से जूझ रही है। प्रदेश में आम आदमी पार्टी बीते कुछ वर्षों से कांग्रेस और भाजपा के विकल्प के रूप में खुद को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही थी, मगर इस इस्तीफे ने पार्टी में आंतरिक असंतोष व नेतृत्व की कमजोरी को उजागर कर दिया।

जसबीर के इस्तीफे के पीछे सबसे बड़ी वजह संगठन में संवाद का अभाव, रणनीतिक स्पष्टता की कमी और ऊपर नेतृत्व द्वारा प्रदेश इकाई की अनदेखी बताई जा रही है। इन वजहों से प्रदेश में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इस्तीफा दे चुके हैं। पदाधिकारी संगठन की नीतियों से निराश हैं—उनका आरोप है कि पार्टी राज्य में कभी भी स्वतंत्र रूप से कांग्रेस के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ती, गठबंधन या समझौते से कार्यकर्ता और जनता को भ्रमित किया जाता है।

जसबीर के इस्तीफे ने पार्टी के भीतर असंतोष को खुलकर बाहर ला दिया। प्रदेश नेतृत्व में लगातार इस्तीफे, प्रत्याशियों की हार, और प्रदेश इकाई की कमजोरी ने आम आदमी पार्टी के छत्तीसगढ़ में जनाधार के विस्तार पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।


राजनीतिक अस्थिरता और नेतृत्व संकट

आम आदमी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का इस्तीफा यह दर्शाता है कि प्रदेश की राजनीति अब अस्थिरता और नेतृत्व संकट के दौर से गुजर रही है। राजनीतिक दलों के लिए केवल संगठन की मजबूती ही नहीं, प्रदेश स्तर की समस्याओं की समझ, नेतृत्व के साथ संवाद और कार्यकर्ता का सम्मान भी उतना जरूरी है।

रायपुर जैसे राजनीतिक केंद्र में ऐसे इस्तीफों के कारण विपक्ष का विकल्प कमजोर हुआ है। प्रमुख दल पर हमला या असंतोष जताने के बजाय, आम आदमी पार्टी के नेता पार्टी की समस्याओं के विपक्षी पक्ष में अपनी जगह ढूंढ़ने में लगे हैं। नीति, नेतृत्व और जमीन पर काम—तीनों बिंदुओं पर सुधार करना पार्टी के लिए अनिवार्य है।


छत्तीसगढ़ में वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य

छत्तीसगढ़ की ये दोनों घटनाएँ राज्य की परेशानियों व चुनौतियों का प्रतीक हैं। बच्चों की सुरक्षा, महिला अधिकार, परिवारों में जागरूकता और राजनीतिक संगठनों में पारदर्शिता—इन क्षेत्रों में ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

राज्य में कानून व्यवस्था का प्रश्न जितना बड़ा है, उतनी ही राजनीति की नेतृत्व क्षमता और सामाजिक संवेदनशीलता के भी मापदंड हैं। ऐसी घटनाओं के जरिये समाज, सरकार और राजनीतिक दलों को आत्ममंथन का अवसर मिलता है, जिससे वे नए सुधारों और जागरूकता अभियानों की दिशा में ठोस कार्य पूरा कर सकें।


इस प्रकार बालोद की बच्ची से दुष्कर्म और आम आदमी पार्टी के महासचिव जसबीर के इस्तीफे—दोनों खबरें छत्तीसगढ़ के विकास, सुरक्षा और नेतृत्व की कसौटी हैं। समाज, सरकार और राजनीति, तीनों को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए भविष्य की नींव मजबूत करनी होगी—तभी राज्य प्रगति और सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर हो सकेगा।

Powered by Froala Editor