छत्तीसगढ़: ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लेखक विनोद कुमार शुक्ल ने छह महीनों में कमाए 30 लाख रुपए रायल्टी, पुस्तकों की ताकत दर्शाई

छत्तीसगढ़: ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लेखक विनोद कुमार शुक्ल ने छह महीनों में कमाए 30 लाख रुपए रायल्टी, पुस्तकों की ताकत दर्शाई

11, 8, 2025

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रायपुर, छत्तीसगढ़। हिंदी साहित्य के उभरते लेखक विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी किताब ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के माध्यम से मात्र छह महीनों में 30 लाख रुपये से अधिक की रायल्टी कमाकर हिंदी पुस्तकों की ताकत और लोकप्रियता को साबित कर दिया है। इस सफलता को उनके प्रकाशक शैलेश ने हिंदी साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है।

शैलेश के अनुसार, जब कोई लेखक लिखी हुई रचनाओं से सीधे पाठकों के दिलों तक पहुंचता है, तब उसका प्रभाव जल्दी फैलता है। हिंदी किताबों की बिक्री पर कई बार संशय होता था, लेकिन इस रिकॉर्ड के साथ यह साबित हो गया है कि अच्छे लेखन की मांग हमेशा बनी रहती है। हिंद युग्म के कई लेखक ऐसे हैं जिनकी किताबें लाखों प्रतियों में बिक चुकी हैं और वे इससे लखपति बन चुके हैं। विनोद कुमार शुक्ल की यह उपलब्धि खास इसलिए भी है कि उनकी रायल्टी इतनी बड़ी राशि में इतनी कम अवधि में किसी पुराने हिंदी लेखक को नहीं मिली।

शैलेश ने उल्लेख किया कि अंग्रेजी पढ़ना अब युवाओं के बीच कूल नहीं रहा, बल्कि हिंदी पढ़ना और हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे डिजिटल प्लेटफार्मों की भूमिका भी अहम है, जहां हिंद युग्म जैसे प्रकाशन ने 15 वर्षों में हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां दी हैं।

विनोद कुमार शुक्ल की किताब ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ कई दिनों में 2000 से अधिक प्रतियों में बिक चुकी है, और उनकी अन्य किताबों को भी नए कलेवर में प्रकाशित करने की योजना बनाई जा रही है। शैलेश ने नए लेखकों को सलाह दी कि वे बेहतर लेखन पर ध्यान दें क्योंकि अच्छी किताब का कोई विकल्प नहीं होता।

हिंद युग्म की शुरुआत साल 2008 के बुक फेयर से हुई थी, जब सिर्फ पांच किताबें बिकीं। तब से अब तक कई लेखक लोकप्रिय हुए हैं और हिंदी किताबों की बिक्री में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। आज प्रकाशक नए लेखकों की तलाश में रहते हैं और नए लेखक 300-500 प्रतियों की शुरुआत करते हुए सफल हो रहे हैं।

यह कहानी हिंदी साहित्य, विशेषकर छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय लेखकों के लिए प्रेरणा और एक बड़ी उपलब्धि है, जो दर्शाती है कि गुणवत्ता लेखन की मांग और लोकप्रियता दोनों ही लगातार बढ़ रहे हैं।


इस प्रकार विनोद कुमार शुक्ल की सफलता हिंदी साहित्य के प्रेमियों और आने वाले समय के लेखकों के लिए प्रोत्साहन का स्रोत बनी हुई है और हिंदी की किताबें डिजिटल युग में भी अपनी जगह मजबूत बनाए रखने में सक्षम हैं।

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