“नौकरी दिलाने” का झांसा देकर 12 लोगों से 70 लाख की ठगी, पिता-पुत्र गिरफ्तार

“नौकरी दिलाने” का झांसा देकर 12 लोगों से 70 लाख की ठगी, पिता-पुत्र गिरफ्तार

11, 8, 2025

12

image

दुर्ग। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में “नौकरी लगवाने” के नाम पर एक बड़े फ्रॉड का खुलासा हुआ है। पुलिस ने पिता-पुत्र और उनके साथी को गिरफ्तार किया है, जिन्होंने उपस्थिति और आवाजाही की विश्वसनीयता से लोगों को मंत्रालय में बाबू या चपरासी बनने का झांसा देकर लाखों रुपये ऐंठे।


कैसे खुला मामला

अंजोरा थाना पुलिस को 2022 में एक शिकायत मिली कि ग्राम चिरवार के रहने वाले संतराम देशमुख को भेषराम और रविकांत (पिता-पुत्र) और उनका साथी अरुण मेश्राम ने मंत्रालय में बाबू या चपरासी की नौकरी दिलाने का झांसा दिया था। उन्होंने कहा कि उनके पास बड़े अधिकारी-संपर्क हैं और यदि दर-भुगतान कर दिया जाए तो नौकरी सुनिश्चित है।

शिकायत में बताया गया कि संतराम ने दावा संख्याबद्ध राशि दी, जो लाखों में थी। बाद में कई अन्य लोग भी ऐसे ही झांसे में फँसे। कुल मिलाकर 12 पीड़ितों से लगभग 70 लाख रुपये की ठगी हुई।


आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारियां

पुलिस ने मामले की जांच की और पाया कि आरोपियों ने 2,50,000 रुपए से लेकर 4,00,000 रुपए तक की राशि वसूली की।

  • भेषराम देशमुख (62 वर्ष) निवासी ग्राम चिरवार, पिता;

  • रविकांत देशमुख (32 वर्ष) जो भेषराम के पुत्र हैं;

  • तीसरा साथी अरुण मेश्राम निवासी राजनांदगांव अभी फरार बताया जा रहा है।

पुलिस ने भेषराम और रविकांत को बस स्टेशन दुर्ग से गिरफ्तार कर न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया है।


ठगी का तरीका

चपत का तरीका कुछ ऐसा था:

  1. लोगों को “नियुक्ति पत्र”, “अधिकारियों से संबंध” का झांसा दिया गया।

  2. झूठे वादों के साथ राशि वसूली की गई — विभाग, पंजीकरण, नामांकन या शुल्क आदि के नाम पर।

  3. आरोपियों ने प्रायः बैंक ट्रांज़फर, नकद भुगतान और दस्तावेजों जैसे पासबुक, डायरी आदि का प्रयोग किया।

  4. शिकायतों में दावा किया गया कि कुछ राशि प्लाट खरीदने में खर्च की गयी है, जबकि अन्य रकम निजी उपयोग में चली गयी।


पुलिस की कार्रवाई

  • अंजोरा थाना पुलिस ने शिकायत मिलने के बाद धारा 420 (धोखाधड़ी) और 34 (संयुक्त कार्रवाई) के तहत मामला दर्ज किया।

  • पूछताछ में आरोपियों ने ठगी को स्वीकार किया है और बताया है कि उन्होंने कुल राशि से कुछ हिस्सा प्लाट खरीदने में लगाया, बाकी खर्च किया।

  • पुलिस ने बैंक रिकॉर्ड, डायरी, बैंक पासबुक, रजिस्ट्री दस्तावेज जब्त किए हैं।

  • फरार आरोपी की तलाश जारी है।


पीड़ितों की स्थिति और सामाजिक प्रभाव

यह धोखाधड़ी उन बेरोज़गारों को निशाना बनाने की कहानी है जो सरकारी नौकरी की उम्मीद में हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि युवक-वृद्ध, सामान्य परिवारों से लोग जिन्होंने अपने क़र्ज़ या बचाए हुए पैसे इस झाँसे में दे दिए।

पीड़ितों का कहना है कि नौकरी का झांसा देकर लगातार दबाव बनाया गया और समय-समय पर वायदे किए गए कि नियुक्ति शीघ्र होगी, लेकिन नौकरी कभी नहीं मिली।

यह घटना सामाजिक विश्वास को हिला देने वाली है क्योंकि लोग मानने लगे हैं कि सरकारी नौकरी प्राप्त करना धन और संपर्क के बिना संभव नहीं है।


कानूनी और सार्वजनिक दृष्टिकोण

  • सरकारी नौकरी के नाम पर इस तरह की धोखाधड़ी गंभीर अपराध है और इसे सिर्फ़ व्यक्तिगत मामला नहीं, बल्कि सामाजिक समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए।

  • न्यायालय और पुलिस को ऐसे मामलों में त्वरित सुनवाई और गिरफ्तारी आवश्यक है ताकि लोगों का भरोसा कानून व्यवस्था पर बना रहे।

  • अभियोजन पक्ष को मजबूत साक्ष्य, ग्राउंड जांच और रिकॉर्डिंग आवश्यक है ताकि दोषियों को सजा दिलायी जा सके।


दुर्ग की इस घटना ने दर्शाया कि बड़े-बड़े वादों के पीछे अक्सर धोखा होता है। जब बेरोज़गारों के हौसले और उम्मीदों के साथ खेला जाता है, तो विश्वास की हड्डियाँ टूट जाती हैं।

पुलिस की कार्रवाई एक सही कदम है, लेकिन इससे ज़्यादा ज़रूरी है कि ऐसी घटनाओं को रोका जाएं, लोगों में जागरूकता बढ़े और धन व समय की लागत से बचा जाए।

Powered by Froala Editor