सर्बदलीय विरोध प्रदर्शन: सुरगुजा के हसदेव जंगल में खनन परियोजनाओं के खिलाफ जन-जागरूकता और संघर्ष

सर्बदलीय विरोध प्रदर्शन: सुरगुजा के हसदेव जंगल में खनन परियोजनाओं के खिलाफ जन-जागरूकता और संघर्ष

11, 8, 2025

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सुरगुजा जिले के हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को लेकर एक जोरदार सर्बदलीय विरोध प्रदर्शन हाल ही में हुआ है। इस विरोध में क्षेत्र की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों, स्थानीय आदिवासी समुदायों और सामाजिक संगठनों ने हिस्सा लिया।


हसदेव जंगल की महत्ता और विवाद

हसदेव अरण्य को मध्य भारत के जंगलों का फेफड़ा कहा जाता है। यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है और कई आदिवासी समुदायों की जीवन और संस्कृति से गहरा जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोग इस जंगल को अपनी सांस्कृतिक विरासत और जीविका का स्रोत मानते हैं।

सरकार ने इस इलाके में कोयला खनन के लिए भूमि हस्तांतरण और वन्य क्षेत्र की कटाई की योजना बनाई है, जिसमें 1742 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र को खनन के लिए खाली किया जाना है। इस प्रस्ताव के तहत अडानी सहित कई कॉर्पोरेट कंपनियों को खनन का लाइसेंस दिए गए हैं। इस खनन के कारण लगभग 6 लाख से अधिक पेड़ों को काटना पड़ सकता है।


विरोध के प्रमुख कारण

स्थानीय ग्राम सभाओं ने इस खनन को लेकर न केवल विरोध दर्ज कराया है, बल्कि उन्होंने कहा है कि वन क्षेत्रों की ऐसी कटाई से उनके जीवनयापन के साधन समाप्त हो जाएंगे। कृषि, जंगल उपज और पारंपरिक जीवनशैली पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा। ग्राम सभा की स्वीकृति के बिना हुई खनन परियोजनाओं को उन्होंने अवैध बताया है, जिसमें फर्जी ग्राम सभा बैठक विवरण भी शामिल हैं।

कई आदिवासी नेताओं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसे पर्यावरणीय आपदा और आदिवासी समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है। उन्होंने खनन परियोजनाओं के तत्काल रद्द करने की मांग की है।


हिंसा और कानून व्यवस्था की चुनौती

विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव बढ़ा और कई जगहों पर पुलिस ने लाठीचार्ज करने सहित गिरफ्तारियां कीं। प्रदर्शन के दौरान स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस कर्मचारियों दोनों को चोटें आईं। राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं ने इस घटनाक्रम की निंदा करते हुए आदिवासी समुदायों के साथ एकजुटता जताई है।

बस्तर क्षेत्र के कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव समेत कई विपक्षी नेताओं ने इस मुद्दे को आदिवासी अधिकारों का मसला बताते हुए सरकार को कटु चेतावनी दी है कि बिना स्थानीय समुदाय की सहमति के वन भूमि का दोहन स्वीकार्य नहीं होगा।


पर्यावरण एवं कानूनी पहलू

वन अधिकार अधिनियम (FRA) और संविधान की अनुसूची पांचवीं के तहत आदिवासी और वनवासी समुदायों के वन अधिकार सुरक्षित हैं। कई पर्यावरण विशेषज्ञ और सामाजिक संगठन मानते हैं कि प्रस्तावित खनन परियोजना इन कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करती है।

छत्तीसगढ़ सरकार की वन विभाग ने खनन हेतु भूमि मंजूरी दी है, जिसका विरोध गंभीर रूप से किया जा रहा है। अभियोजन पक्ष का तर्क है कि यह विकास एवं रोजगार के लिए आवश्यक कदम है, लेकिन विरोधी इसे पाखंड और विस्थापन का कारण बता रहे हैं।


आंदोलन की जारी लड़ाई

हसदेव अरण्य की रक्षा के लिए कई वर्षों से लगातार जन आंदोलन जारी हैं। 2021 में 20 गांवों के आदिवासियों ने लगभग 300 किलोमीटर का पदयात्रा कर राजधानी में अपनी मांगें रखीं। आंदोलन की मांग है कि वन भूमि को खनन के लिए न दिया जाए और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए।

हालांकि कुछ कोयला ब्लॉकों को पहले ही रद्द कर दिया गया है, लेकिन अब भी प्रस्तावित परियोजनाओं को लेकर गंभीर विवाद हैं। लोगों का कहना है कि झूठे दस्तावेज, दबाव और प्रशासन की मिलीभगत से खनन जारी रखा जा रहा है।


निष्कर्ष

सुरगुजा के हसदेव जंगल में खनन परियोजनाओं को लेकर हो रहे विरोध ने आदिवासी अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन का महत्वपूर्ण सवाल सामने रखा है। यह संघर्ष केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए आदिवासी अधिकारों और प्राकृतिक संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग की लड़ाई है।

सरकार, सामाजिक संगठन और स्थानीय समुदायों को मिलकर ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो विकास के साथ साथ पर्यावरण और मानव अधिकारों की रक्षा भी कर सकें। हसदेव का यह संघर्ष हमें याद दिलाता है कि प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के बिना सतत विकास संभव नहीं।

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