39 वर्षों बाद न्याय: 100 रुपए रिश्वत मामले में जटिल कानूनी लड़ाई के बाद जगेश्वर प्रसाद की बरी

39 वर्षों बाद न्याय: 100 रुपए रिश्वत मामले में जटिल कानूनी लड़ाई के बाद जगेश्वर प्रसाद की बरी

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 39 वर्षों के लंबित कानूनी विवाद के बाद जगेश्वर प्रसाद अवस्थी नामक व्यक्ति को 100 रुपए रिश्वत मामले में बरी कर दिया है। यह मामला 1986 का है, जिसमें आरोप था कि जगेश्वर प्रसाद ने एक कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा से उसके बकाया बिल आपको निपटाने के लिए 100 रुपए रिश्वत मांगी थी।


मामला और जांच की रूपरेखा

1986 में यह आरोप लगा कि जगेश्वर प्रसाद, जो उस समय मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में बिलिंग असिस्टेंट थे, ने कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा से बकाया बिल क्लियर करने के लिए 100 रुपए की रिश्वत मांगी थी। शिकायत के बाद लोकायुक्त ने फेनोल्फ्थेलिन पाउडर लगे नोटों के साथ एक जाल बिछाया, जिसमें जगेश्वर पकड़े गए।

निचली कोर्ट ने 2004 में जगेश्वर को रिश्वत मांगने का दोषी ठहराते हुए एक वर्ष की जेल और 1000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई।


हाई कोर्ट में अपील और फैसले की कसौटी

जगेश्वर प्रसाद ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की। उनके वकील ने तर्क दिया कि उस समय उनके पास बिल जारी करने का अधिकार नहीं था और बिल भुगतान के लिए उच्च अधिकारी की मंजूरी भी बाद में मिली। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने रिश्वत मांगने का ठोस प्रमाण प्रस्तुत करने में असफल रहा।

हाई कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में कई कमजोरियां पाई:

  • रिश्वत मांगने की बात साबित करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था।

  • छुपा गवाह ना तो वार्तालाप को सुन सका था और ना ही स्वीकारोक्ति देखी थी।

  • सरकारी गवाह 20-25 गज दूर थे, जिससे वे लेन-देन की पुष्टि नहीं कर सकते थे।

  • जब्त नोटों की संख्या और रकम साफ नहीं थी कि वह Rs. 100 का एक नोट था या दो Rs. 50 के नोट।

अदालत ने कहा कि केवल गंदे नोट मिलना अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है अगर रिश्वत मांगने और स्वीकार करने की नियत सिद्ध न हो। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने ट्रैप फेल माना और निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए जगेश्वर को बरी कर दिया।


प्रभावित किए गए जीवन और न्याय की देरी

जगेश्वर प्रसाद अवस्थी के लिए यह 39 वर्षों की लंबी लड़ाई रही, जिसमें उन्होंने अपना अधिकांश जीवन कोर्ट-कचहरी के चक्कर में बिताया। 83 वर्ष की उम्र में यह फैसला मिला तो उन्होंने कहा, "न्याय में देरी है लेकिन इनकार नहीं।"

इस मामले ने न केवल न्याय प्रक्रिया की कमजोरियों को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया कि गलत आरोपों में फंसे व्यक्ति को न्याय मिलने में कितना लंबा समय लग सकता है।


निष्कर्ष

यह केस न्याय व्यवस्था में देरी की समस्याओं और सबूतों की कड़ाई की आवश्यकता को दर्शाता है। साथ ही, यह एक मिसाल है कि धैर्य और सच्चाई से न्याय प्राप्त किया जा सकता है। जगेश्वर प्रसाद की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो कानूनी लड़ाई में संघर्ष कर रहा हो।


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