कबीरधाम जिले के बालोद में बोधगया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के समर्थन में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया।

कबीरधाम जिले के बालोद में बोधगया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के समर्थन में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया।

24, 9, 2025

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कबीरधाम जिले के बालोद में बोधगया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के समर्थन में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया। यह रैली बौद्ध समुदाय के अधिकारों की रक्षा और महाबोधि मंदिर के प्रबंधन में बौद्धों की पूर्ण भागीदारी की मांग को लेकर आयोजित की गई। इस आंदोलन का उद्देश्य बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को निरस्त कर मंदिर के प्रबंधन का अधिकार पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपना है।

आंदोलन का उद्देश्य और पृष्ठभूमि

बोधगया महाबोधि महाविहार, जिसे महाबोधि मंदिर भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल है, जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति की थी। यह स्थल यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। हालांकि, मंदिर का प्रबंधन वर्तमान में बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 के तहत एक मिश्रित समिति द्वारा किया जाता है, जिसमें चार हिंदू और चार बौद्ध सदस्य होते हैं, और अध्यक्ष जिला कलेक्टर होते हैं। बौद्ध समुदाय का आरोप है कि इस संरचना के कारण मंदिर के प्रबंधन में बौद्धों की भागीदारी सीमित है और ब्राह्मणवादी रीति-रिवाजों का प्रभाव बढ़ रहा है। इसलिए, बौद्ध समुदाय ने मंदिर के प्रबंधन में पूर्ण बौद्ध नियंत्रण की मांग की है।

बालोद में आयोजित रैली

बालोद जिले में आयोजित इस रैली में हजारों की संख्या में बौद्ध अनुयायी और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। रैली का नेतृत्व केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने किया। उन्होंने रैली में भाग लेते हुए कहा कि महाबोधि मंदिर की मुक्ति के लिए यह आंदोलन महत्वपूर्ण है और इसे पूरी दुनिया में फैलाना चाहिए। रैली में शामिल लोगों ने "महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन" के समर्थन में नारे लगाए और अपने अधिकारों की रक्षा की बात की।

आंदोलन की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

यह आंदोलन केवल बालोद तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश और विदेशों में भी इसका समर्थन मिल रहा है। बिहार के बोधगया में बौद्ध भिक्षुओं ने फरवरी 2025 से भूख हड़ताल शुरू की थी, जिसमें उन्होंने बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को निरस्त करने की मांग की थी। इसके बाद, देश के विभिन्न हिस्सों जैसे लद्दाख, गुजरात, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ से भी बौद्ध समुदाय के लोग इस आंदोलन में शामिल हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कंबोडिया, जापान, श्रीलंका, थाईलैंड, और अन्य देशों के बौद्ध समुदाय ने इस आंदोलन का समर्थन किया है।

आंदोलन के प्रमुख नेता और उनका दृष्टिकोण

केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने इस आंदोलन के प्रमुख नेता के रूप में अपनी भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि महाबोधि मंदिर के प्रबंधन में बौद्धों की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए यह आंदोलन आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि इस आंदोलन की शुरुआत डॉ. भीमराव अंबेडकर के बौद्ध धर्म अपनाने की वर्षगांठ, 14 अक्टूबर, 2025 से की जाएगी।

निष्कर्ष

महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन बौद्ध समुदाय के अधिकारों की रक्षा और मंदिर के प्रबंधन में उनकी पूर्ण भागीदारी की मांग को लेकर चलाया जा रहा है। बालोद में आयोजित रैली ने इस आंदोलन को और भी सशक्त किया है और यह संदेश दिया है कि बौद्ध समुदाय अपने अधिकारों के लिए एकजुट है। आगे चलकर यह आंदोलन महाबोधि मंदिर के प्रबंधन में बौद्धों की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने में सफल हो, यही उम्मीद की जाती है।

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