किसानों से ₹35 लाख की ठगी — लोन-सब्सिडी का झांसा, ठग बने नकाब में

किसानों से ₹35 लाख की ठगी — लोन-सब्सिडी का झांसा, ठग बने नकाब में

24, 9, 2025

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छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक सदमे जैसी घटना सामने आई है, जिसमें किसानों को लोन और सब्सिडी का लालच देकर लगभग ₹35 लाख की ठगी की गई। बात ऐसी है कि ठगों ने नाबार्ड अधिकारी बनकर पेश आकर मछली पालन-फेंसिंग योजनाओं में 90% सब्सिडी का झांसा दिया और इसके बदले में रकम वसूल कर फरार हो गए।


ठगी की योजना और modus operandi

  • ठगों ने नकली परिचय और प्रमाण दिखाकर किसानों को विश्वास दिलाया कि वे नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक) के अधिकारी हैं।

  • उन्होंने प्रस्ताव दिया कि किसानों को मछली पालन और फेंसिंग (बाड़बंदी) योजना के लिए भारी सब्सिडी मिलेगी — जो १०० प्रतिशत लागत की ९०% तक हो सकती है।

  • किसान इस संभव सुविधा को देखकर रुचिकर परियोजना में निवेश करने लगे।

  • ठगों ने किसानों से अग्रिम राशि वसूलना शुरू कर दिया। बड़े- बड़े चेक, नकदी लेनदेन और अन्य भुगतान किये गए।

  • इसके बाद ठग अचानक गायब हो गए और किसानों से सम्पर्क टूट गया। किसानों को समझ नहीं आया कि पैसा कहां गया।


ठगी का प्रभाव और जड़ें

  • किसानों ने अपनी साव‍‍िफ्त जमा कर रखी रकम गंवाई — जो किसी के लिए बड़ी राशि होती है और खेती या घर की ज़रूरतों पर निर्भर हो सकती है।

  • इस तरह की ठगी विशेष रूप से कमजोर आर्थिक स्थिति वाले किसानों को प्रभावित करती है, जिनके पास पूंजी कम होती है और जोखिम बहुत अधिक।

  • धोखाधड़ी इस स्तर पर हुई कि ठगों ने योजनाओं और सरकारी संस्थानों की विश्वसनीयता का फायदा उठाया।

  • किसानों में विश्वास संकट में गया — अब वे किसी योजना या सरकारी मदद पर संदेह करने लगे हैं।


प्रशासन की प्रतिक्रिया और जांच

  • स्थानीय प्रशासन और पुलिस को आवेदन मिला, और मामले की शिकायत दर्ज की गई।

  • मामले की गंभीरता देखते हुए जांच अधिकारी इसे प्राथमिकता देने का निर्देश दे चुके हैं।

  • पुलिस इसे “आर्थिक अपराध” की श्रेणी में ले रही है और ठगों के ठिकानों, बैंक लेनदेन और डिजिटल ट्रेल की खोज को सक्रिय किया गया है।

  • यह देखा जा रहा है कि ठगों ने किस तरह पहचान बनाई, किन खातों में ट्रांज़ैक्शन किया और किस माध्यम से किसानों को फंसाया।


सतर्कता के उपाय और सीख

  • किसी भी योजना में पैसा देने से पहले सत्यापन करना ज़रूरी है — संस्था की असली पहचान, पंजीकरण, सरकारी वेबसाइट, प्रमाण पत्र आदि।

  • “90% सब्सिडी” जैसे बड़े दावे सुनने में ही संदेह उत्पन्न करते हैं — ये आसान नहीं होते।

  • किसानों को समूह, पंचायत या कृषि विभाग से सलाह लेनी चाहिये, और बड़े लेनदेन के समय समर्थक गवाहों को शामिल करना चाहिये।

  • नकदी और चेक के लेनदेन की रसीद और दस्तावेज संभालना बेहद ज़रूरी है।

  • यदि कोई अधिकारी पहचान देता है, तो उसकी पृष्ठभूमि और प्रमाण पत्र जाँचना चाहिये।

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