24 साल पुराने दुष्कर्म मामले में आरोपी नाबालिग साबित, हाई कोर्ट ने सजा रद्द कर मामला किशोर न्याय बोर्ड को भेजा

24 साल पुराने दुष्कर्म मामले में आरोपी नाबालिग साबित, हाई कोर्ट ने सजा रद्द कर मामला किशोर न्याय बोर्ड को भेजा

11, 8, 2025

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 24 साल पुराने दुष्कर्म मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने निचली अदालत द्वारा दी गई सात साल की सजा को रद्द करते हुए कहा कि आरोपी घटना के समय नाबालिग था। इसके साथ ही केस को किशोर न्याय बोर्ड को सौंप दिया गया है, जहां छह महीने के भीतर इसका निपटारा करने के निर्देश दिए गए हैं।

घटना का पृष्ठभूमि

यह मामला जुलाई 2001 का है। रतनपुर क्षेत्र के एक गांव में एक किशोरी के साथ दुष्कर्म की घटना घटी थी। पीड़िता की उम्र उस समय लगभग 15 वर्ष थी। आरोप है कि पीड़िता का मौसेरा भाई, जो उस रात घर में रुका हुआ था, ने उसके साथ जबरदस्ती संबंध बनाए। अगले दिन पीड़िता ने घटना की जानकारी अपने परिवार को दी और थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई।

पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर चार्जशीट पेश की। सेशन कोर्ट ने 2002 में आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(1) के तहत दोषी मानते हुए सात साल सश्रम कारावास और 500 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।

हाई कोर्ट में अपील

आरोपी ने सजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की। सुनवाई के दौरान उसने दावा किया कि घटना के समय वह नाबालिग था। इसके समर्थन में उसने स्कूल रिकॉर्ड प्रस्तुत किया जिसमें जन्म तिथि 15 अक्टूबर 1984 दर्ज थी। इस आधार पर घटना के समय उसकी उम्र 16 वर्ष 8 माह और 19 दिन साबित हुई।

जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की बेंच ने आरोपी के इस तर्क को स्वीकार किया। अदालत ने कहा कि अपराध के समय आरोपी की उम्र महत्वपूर्ण है, न कि सजा सुनाए जाने की तारीख। इस आधार पर आरोपी किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के दायरे में आता है और उसे वयस्क अपराधी की तरह सजा नहीं दी जा सकती।

अदालत का फैसला

हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट का फैसला रद्द करते हुए पूरा मामला किशोर न्याय बोर्ड को सौंप दिया है। बोर्ड को निर्देश दिए गए हैं कि वह छह महीने के भीतर केस का अंतिम निपटारा करे।

अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि निर्णय लेते समय निम्न बिंदुओं पर ध्यान दिया जाए:

  • आरोपी ने अब तक लगभग डेढ़ साल जेल में बिताए हैं।

  • आरोपी और पीड़िता दोनों अब अलग-अलग परिवारों में बस चुके हैं और उनके बच्चे भी हैं।

इसके अलावा आरोपी की जमानत बरकरार रखी गई है और उसे 8 अक्टूबर 2025 को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश होने का आदेश दिया गया है।

सामाजिक और कानूनी महत्व

यह फैसला न्याय व्यवस्था के लिए कई मायनों में अहम है। सबसे बड़ा संदेश यह है कि आयु निर्धारण मामलों में बेहद महत्वपूर्ण है। यदि घटना के समय आरोपी नाबालिग था, तो कानून उसे वयस्क मानकर दंडित नहीं कर सकता।

दूसरा पहलू यह है कि न्यायालय समय बीत जाने के बाद भी साक्ष्यों और दस्तावेज़ों की गहन समीक्षा करता है। 24 साल पुराने मामले में भी स्कूल रिकॉर्ड को आधार बनाकर आरोपी को राहत मिली। यह दिखाता है कि न्याय केवल तत्कालिक परिस्थितियों पर नहीं, बल्कि तथ्यों और कानून पर आधारित होता है।

समाज पर असर

ऐसे फैसलों से समाज को यह संदेश जाता है कि न्यायालय न केवल कठोर है बल्कि संवेदनशील भी है। अदालत ने आरोपी और पीड़िता की मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखकर कहा कि उनके वर्तमान जीवन पर भी विचार किया जाना चाहिए।

विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भविष्य में ऐसे मामलों में जांच एजेंसियों और अभियोजन पक्ष को और अधिक सतर्क रहना होगा। आरोपी की उम्र और उससे जुड़े दस्तावेज़ों को मजबूत ढंग से प्रस्तुत करना अब और भी जरूरी हो जाएगा।

निष्कर्ष

24 साल पुराने इस मामले में आया फैसला यह दर्शाता है कि न्यायालय कानून की व्याख्या में कितनी गंभीरता बरतता है। आरोपी का नाबालिग साबित होना और सजा का रद्द होना सिर्फ एक व्यक्ति की राहत नहीं है, बल्कि न्याय प्रणाली के लिए एक मिसाल है।

यह मामला यह भी बताता है कि न्याय देर से मिल सकता है, लेकिन मिलता जरूर है। और जब मिलता है तो वह कानून, संवेदनशीलता और तथ्यों के संतुलन के आधार पर दिया जाता है।

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