कक्षा-2 की छात्रा को 100 sit-ups से इतनी चोट कि चलना मुश्किल, स्कूल प्रबंधन व शिक्षक पर जांच शुरू

कक्षा-2 की छात्रा को 100 sit-ups से इतनी चोट कि चलना मुश्किल, स्कूल प्रबंधन व शिक्षक पर जांच शुरू

11, 8, 2025

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सुरगुजा जिले के प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान प्रातापगढ़ में एक आठ वर्षीय छात्रा की सेहत ऐसी बिगड़ी कि वह अब चलने-फिरने में भी असमर्थ हो गई है, क्योंकि शिक्षक ने उसे 100 sit-ups करने को मजबूर कर दिया था। मामला तब उजागर हुआ जब छात्रा ने दर्द के कारण गिर पड़ी और स्कूल प्रशासन, जिला शिक्षा अधिकारी व स्थानीय अधिकारियों ने तुरंत जांच शुरू कर दी है।


घटना की शुरुआत

  • घटना एक सरकारी स्कूल में हुई, जहाँ छात्रा कक्षा-2 में पढ़ती है। बताया गया है कि उसने कक्षा से बाहर जाकर टॉयलेट जाना चाहा था, लेकिन उसे अनुमति नहीं दी गई। जब उसने कारण बताया, तो शिक्षिका ने उसे stick से मारते हुए वापस क्लास में भेजा।

  • फिर उसने आदेश दिया कि वह 100 sit-ups करे। छात्रा ने कोशिश की लेकिन धीरे-धीरे घुटनों के नीचे दर्द शुरू हुआ और थोड़ी देर बाद वह बैठने-उठने में भी असमर्थ हो गई।


चोटों और स्वास्थ्य पर असर

  • डॉक्टरों ने बताया है कि छात्रा की टांगों की मांसपेशियों में दरार (muscular strain/crack) आ गई है। खासकर घुटनों के नीचे की मांसपेशियाँ प्रभावित हुई हैं, जिससे वे पैरों को उठाने-चलने में सक्षम नहीं है।

  • दर्द इतना ज़्यादा है कि बच्ची रात में नींद न सही हो पा रही है, भूख कम लगी है और दर्द से रोने-चिल्लाने की स्थिति बनी हुई है।

  • परिजनों के अनुसार, स्कूल से लौटने पर वह घर पर चलने-फिरने की कोशिश करती है, लेकिन दर्द और कमजोरी के कारण असफल होती है।


जांच और प्रशासनिक कार्रवाई

  • जिला शिक्षा अधिकारी ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तुरंत आदेश दिया है कि Block Education Officer मौके पर जाकर छात्र-छात्राओं सहित शिक्षकों, प्रधानाध्यापक के बयान दर्ज करें।

  • स्कूल प्रबंधन ने कहा है कि शिक्षिका और प्रिंसिपल दोनों को अनिश्चितकालीन छुट्टी पर भेजा गया है जब तक जांच पूरा नहीं होता।

  • साथ ही, सीसीटीवी फुटेज और स्कूल रिकॉर्डों की समीक्षा की जा रही है कि घटना कब हुई, कितने समय तक sit-ups करवाए गए और क्या प्रोटोकॉल का उल्लंघन हुआ।


सामाजिक प्रतिक्रिया और छात्रों-अभिभावकों की चिंता

  • अभिभावकों ने कहा है कि स्कूलों में अनुशासन हो सकता है, लेकिन ऐसा अनुशासन नहीं होना चाहिए कि बच्चियों की सेहत खराब हो जाए।

  • पड़ोसी स्कूलों और समाज के लोग भी इस घटना से परेशान हैं। कह रहे हैं कि शिक्षा की तनिक अपेक्षा है कि बच्चों के अधिकारों का सम्मान हो।

  • सामाजिक कार्यकर्ता बोले कि corporal punishment (शारीरिक दंड) पर प्रतिबंध होना चाहिए, और स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और संवेदनशीलता सुनिश्चित होनी चाहिए।


कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण

  • बिहार अधिनियमों और बाल संरक्षण नीतियों के अनुसार, स्कूलों में शारीरिक दंड या अनुचित दंड देना गैरकानूनी हो सकता है। आरोपी शिक्षिका व प्रधानाध्यापक को कानूनी रूप से जवाबदेह ठहराया जा सकता है।

  • शिक्षा विभाग के नियम कहता है कि किसी भी प्रकार की ऐसी सज़ा तभी दी जा सकती है जब वह मानवीय हो, बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर हो। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।


सुझाव और आगे की राह

  1. बाल अधिकार जागरूकता: स्कूलों व अभिभावकों दोनों को यह पता होना चाहिए कि बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार अनुचित है।

  2. प्रशिक्षण व नीति निर्देश: शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि discipline देना है तो किस तरह से सुरक्षित, संतुलित तरीके से किया जाए।

  3. पुनः स्वास की व्यवस्था: स्कूलों में first-aid और स्वास्थ्य सुविधा हो ताकि किसी चोट या तनाव हुई स्थिति में तुरंत चिकित्सा मिल सके।

  4. निगरानी तंत्र मजबूत हो: शिक्षा विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूलों में बाहरी निरीक्षण, शिकायत हेल्पलाइन और grievance redressal प्रणाली हो।


निष्कर्ष

सुरगुजा की यह घटना सिर्फ एक छात्रा के दर्द की कहानी नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है कि शिक्षा व्यवस्था में बच्चों की गरिमा और सेहत की रक्षा कितनी ज़रूरी है।

शिक्षक-शिक्षिका की भूमिका सिर्फ सिखाने की नहीं बल्कि सुरक्षा और देख-भाल की भी होती है। इस हादसे से यह उम्मीद की जा सकती है कि विभागीय कार्रवाई हो, दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाए और भविष्य में कोई बच्चा इस तरह की यातना ना झेले।

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