छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड अध्यक्ष का आदेश: मुस्लिम युवाओं से गरबा में न जाने की अपील

छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड अध्यक्ष का आदेश: मुस्लिम युवाओं से गरबा में न जाने की अपील

24, 9, 2025

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रायपुर। छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज ने नवीन ताजा बयान में मुस्लिम युवाओं से गरबा जैसे धार्मिक आयोजनों में शामिल न होने की अपील की है। उनका कहना है कि यदि मुस्लिम समाज मूर्ति-पूजा में आस्था नहीं रखता, तो उन्हें ऐसे आयोजनों से दूरी बनाए रखना चाहिए। 

डॉ. सलीम राज ने क्या कहा?

डॉ. सलीम राज ने स्पष्ट किया कि गरबा कोई साधारण नृत्य कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह माता दुर्गा की आराधना से जुड़ी पवित्र धार्मिक परंपरा है। इस परंपरा में ज़रूरी है कि भाग लेने वाला उसकी पवित्रता का सम्मान करे। 

उनका तर्क है कि यदि कोई मुस्लिम युवक इस कार्यक्रम में भाग लेता है, तो वह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई मुस्लिम-संबद्ध व्यक्ति गरबा में भाग लेने की इच्छा रखता है, तो समितियों से अनुमति लेने, परंपरागत वेशभूषा पहनने और रीति-रिवाजों का पालन करने का सुझाव दिया है। 

सामाजिक शांति और भाईचारा बुलावा

डॉ. सलीम राज ने यह भी कहा है कि उनका यह अपील शांति, भाईचारे और सद्भाव बनाए रखने के उद्देश्य से है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को ध्यान में रखते हुए, हमें आपसी सम्मान और सहिष्णुता को प्राथमिकता देनी चाहिए। 

इस्लाम, उन्होंने कहा, शांति का प्रतीक धर्म है, इसलिए हर कदम ऐसा हो कि किसी समुदाय की भावनाएँ आहत न हों। 

बहस और प्रतिक्रियाएँ

इस विषय पर सुर्खियाँ बढ़ी हैं क्योंकि यह धर्म, सांस्कृतिक सीमाओं और सामाजिक एकता की संवेदनशीलता को छूता है। कुछ लोग इसे असहिष्णुता की ओर एक कदम कह रहे हैं, जबकि समर्थक इसे धार्मिक भावनाओं की रक्षा और सामाजिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश मानते हैं।

वाक्य यह है कि धार्मिक आयोजनों में भागीदारी पर सीमाएं लगाना विवादास्पद हो सकता है, खासकर जब ये आयोजन सांस्कृतिक भी माने जाते हों।

निष्कर्ष

डॉ. सलीम राज की अपील धार्मिक और सामाजिक सवालों को सामने लाती है: किस हद तक धार्मिक आयोजनों में भागीदारी को सीमित किया जाए? क्या किसी समुदाय को ऐसी गतिविधियों से दूर रहने का निर्देश देना न्यायोचित है?

यह मामला छत्तीसगढ़ में त्योहारों के आयोजन, धार्मिक संवेदनशीलता, और सांस्कृतिक सहिष्णुता की जटिलता को दर्शाता है। आगे की प्रतिक्रिया, मीडिया बहस और जनता की सोच यह तय करेगी कि यह बयान कितनी स्वीकार्यता पाएगा और क्या इसका कोई सामाजिक या राजनीतिक प्रभाव होगा।

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