स्थायी विकलांग भाजपा नेता ने सरकार से मांगी इच्छा मृत्यु; आर्थिक टूट और उपेक्षा से व्यथित

स्थायी विकलांग भाजपा नेता ने सरकार से मांगी इच्छा मृत्यु; आर्थिक टूट और उपेक्षा से व्यथित

11, 8, 2025

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अंबिकापुर। बीजेपी नेता बिशंभर यादव, जो दो साल पहले एक बड़े सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हुए थे, ने हाल ही में राज्य सरकार से इच्छा मृत्यु की अनुमति देने की मांग की है। उनकी स्थायी विकलांगता, लगातार बढ़ती चिकित्सा खर्च और संगठन की ओर से मिली उपेक्षा ने उनके मन में ये कदम उठाने का कारण बना है।


हादसा और जीवन की स्थिति

दो साल पहले, प्रधानमंत्री की रायपुर क्षेत्रीय सभा में शामिल होने के लिए भाजपा संगठन की बस बेमेतरा के पास सड़क हादसे का शिकार हुई थी। इस हादसे में बिशंभर यादव को रीढ़ की हड्डी सहित जो गंभीर चोटें आईं, वे जीवन को पूरी तरह बदल देने वाली थीं। उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया और सर्जरी हुई, लेकिन हालत ऐसी बनी कि अब वह कभी चल-फिर नहीं सकते।

उन्होंने बताया है कि चोटों और इलाज के कारण उनका जीवन अब “नरकीय” जैसा हो गया है—दर्द, निर्भरता और आर्थिक बोझ ने जीवन को भारी बना दिया है।


आर्थिक संकट और सामाजिक उपेक्षा

बिशंभर यादव के अनुसार, दो वर्षों में उन्होंने इलाज पर लगभग 30-35 लाख रुपये खर्च कर दिए। इन खर्चों के कारण उनका परिवार पूरी तरह आर्थिक संकट में है।

उनकी पत्नी ने बताया कि जेवर रोज़ाना खर्च ट्रांसफर और इलाज के लिए बेचे गए। रिश्तेदारों से उधार लिए, क़र्ज़ चढ़े, आर्थिक स्थिति बिगड़ी। साथ ही, कहा जा रहा है कि भाजपा संगठन से पर्याप्त सहारा नहीं मिला; पार्टी नेताओं ने उनकी हालत की ज़्यादा मदद नहीं की।


“इच्छा मृत्यु” की मांग

अपने दर्द, टूटे स्वास्थ्य और आर्थिक बर्बादी के चलते बिशंभर यादव ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की अनुमति देने का निवेदन किया है। उनका कहना है कि वर्तमान जीवन स्थिति में असहायता और निर्भरता ही उनका साथी है।

उन्होंने लिखा है कि जीवन की गुणवत्ता इतनी घट गयी है कि मरना बेहतर विकल्प लगने लगा है। उनका परिवार भी थक चुका है—न केवल मानसिक दबाव बल्कि आर्थिक दायित्व भी भारी पड़े हुए हैं।


प्रतिक्रिया-सरकार और जनता की

  • इस पत्र को सार्वजनिक होते ही राजनीतिक दलों और समाज में चर्चा शुरू हो गयी है। कुछ लोग इस कदम को न्याय की कमी और सामाजिक सुरक्षा की अभाव की प्रतिक्रिया मान रहे हैं।

  • पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस पर ज़ोर दिया है कि निदान और इलाज की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने बिशंभर यादव के परिवार से संपर्क किया है और कह रहे हैं कि राज्य सरकार की ओर से मदद की जाएगी।

  • भाजपा संगठन में भी कुछ आवाज़ें उठ रही हैं कि समर्पित कार्यकर्ता की हालत यहीं तक पहुंचने न दी जाए और संगठनात्मक जिम्मेदारी निभाई जाए।


कानूनी और भावनात्मक मापदंड

  • “इच्छा मृत्यु” (euthanasia) भारत में एक संवेदनशील विषय है — न्यायालयों द्वारा कुछ सीमित परिस्थितियों में निवारक अनुमति दी जाती है, जैसे कि मरीज की सहमति हो और जीवन बचने की कोई संभावना न हो।

  • बिशंभर के मामले में स्पष्ट है कि उनकी स्थायी विकलांगता और चलने-फिरने की क्षमता नहीं है, लेकिन यह निर्णय लेना होगा कि क्या चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक सहायता और जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाने के उपाय उपलब्ध हैं।

  • मानसिक दबाव, जीवन का बोझ और सामाजिक उपेक्षा ऐसे मामलों में बड़ी भूमिका निभाते हैं।


आगे की संभावित राह

  1. स्वास्थ्य सहायता: सरकार और स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करना होगा कि बिशंभर के साथ अन्य विकलांगों के लिए भी इलाज और पुनर्वास सुविधाएँ सुलभ हों।

  2. न्यायालय और नीति निर्धारण: चिकित्सा अनुसंधान और नीति निर्माताओं को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि विकलांगों को न्याय और सम्मान मिले।

  3. सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क: राज्य में बीमा योजनाएँ, सहायता कोष और विकलांग कल्याण बोर्ड को मजबूत बनाना चाहिए ताकि व्यक्ति को अपनी गरिमा के साथ जीवन यापन का अवसर मिले।

  4. मानसिक स्वास्थ्य सेवा: इस तरह की प़ीड़ा से गुजर रहे लोगों को Counselling, मानसिक सहारा व सामाजिक सहभागिता की ज़रूरत होती है।


बिशंभर यादव की इच्छा मृत्यु की मांग सिर्फ़ एक व्यक्तिगत निवेदन नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य नीति, राजनीतिक ज़िम्मेदारी और मानवीय संवेदनशीलता का परीक्षण है।

यदि सरकार ने समय रहते उचित इलाज, आर्थिक सहायता और मानवीय सम्मान सुनिश्चित किया, तो ऐसा कदम न उठाने का मौका हो सकता था। अब बिशंभर की मांग पर ज़रूरी है कि समुदाय, सरकार और पार्टी मिल कर देखें कि क्या स्थिति सुधार योग्य है और जीवन को वापस किसी तरह की गरिमा मिल सकती है।

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