रावतपुरा मेडिकल कॉलेज मान्यता घोटाला: तीन डॉक्टर हुए निलंबित

रावतपुरा मेडिकल कॉलेज मान्यता घोटाला: तीन डॉक्टर हुए निलंबित

11, 8, 2025

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रायपुर के रावतपुरा मेडिकल कॉलेज की मान्यता से जुड़े गहरे घपले ने एक बार फिर से सुर्खियाँ बटोरी हैं। मान्यता प्राप्त कराने के नाम पर रिश्वत लेने और निरीक्षण रिपोर्ट को गड़बड़ाने के आरोप में तीन डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया है। इस मामले में जांच सीबीआई कर रही है, और आरोपों की गंभीरता से प्रशासन भी हैरान है।


घटना क्या है?

  • मामला इस तरह है कि रायपुर स्थित रावतपुरा मेडिकल कॉलेज को मेडिकल एजुकेशन विभाग से मान्यता दिलाने के लिए जुलाई में कुछ निरीक्षण किए गए थे।

  • आरोप है कि निरीक्षण टीम की रिपोर्ट सकारात्मक दिखाने के लिए कई तैयारियाँ पहले से की गई थीं। कॉलेज तथा संबंधित लोगों ने निरीक्षण कार्यक्रम की जानकारी अग्रिम में हासिल कर ली थी। फिऱर, ज़रूरी दस्तावेज़ और रिकॉर्ड पहले से तैयार रखे गए थे ताकि मानक पूरी तरह पूरे होने का दिखावा किया जा सके।

  • इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कुल 55 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप लगे हैं। इसके चलते सीबीआई ने छह लोगों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया।

  • विशेष रूप से तीन डॉक्टर ऐसे थे जिन पर सीधा आरोप है कि उन्होंने इस पूरी रिपोर्ट का हिस्सा बनने में योगदान दिया — यानी निरीक्षण की रिपोर्ट में जानबूझकर सकारात्मक बिंदु शामिल करवाए और गुणवत्ता मानकों को पूरा दिखाने का झूठा दावा किया।


कौन हैं आरोपित डॉक्टर?

इस मामले में जिन तीन डॉक्टरों को निलंबित किया गया है, वे इस प्रकार हैं:

  1. डॉ. चैत्रा एमएस — वे राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद की सदस्य हैं और एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में अध्यापन से जुड़े हुए हैं।

  2. डॉ. मंजप्पा सीएन — आर्थोपेडिक्स विभाग के प्रोफेसर हैं और मंड्या मेडिकल संस्थान से जुड़े हैं।

  3. डॉ. अशोक शेलके — वे कम्युनिटी मेडिसिन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, एक अन्य मेडिकल संस्थान में कार्यरत हैं।

इन तीनों पर आरोप है कि उन्होंने सकारात्मक रिपोर्ट तैयार करवाने की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे कॉलेज को मान्यता मिल सके।


कार्रवाई और नतीजे

  • कर्नाटक की मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट ने इन डॉक्टरों को निलंबित कर दिया है।

  • आरोप सिद्ध होने पर उनकी सेवाएँ निलंबित रहेंगी, और आगे की कार्रवाई संभवत: जांच के निष्कर्षों के आधार पर होगी।

  • इस घटना में कुल 34 लोगों के खिलाफ नाम दर्ज किया गया है। ये लोग कॉलेज, NMC (नेशनल मेडिकल कमीशन), मेडिकल एजुकेशन विभाग और अन्य अधिकारी शामिल हैं।

  • मान्यता प्राप्त न होने के कारण इस साल रावतपुरा मेडिकल कॉलेज “ज़ीरो इयर” घोषित कर दिया गया है, यानी कि इस कॉलेज की मान्यता रद्द करते हुए उसे इस साल के लिए मान्यता अवधि में शामिल नहीं किया जाएगा।

  • छात्रों की सीटों पर भी असर पड़ा है — इस कॉलेज की मान्यता न मिलने से मेडिकल की सीटें कम हुई हैं। इसके लिए राज्य सरकार ने अन्य निजी मेडिकल कॉलेजों में सीटों को बढ़ाने की व्यवस्था की है, ताकि मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों का नुकसान कम हो।


क्यों है मामला चिंताजनक?

यह मुद्दा सिर्फ एक भ्रष्टाचार या रिश्वत लेने का नहीं है — इसमें शैक्षिक गुणवत्ता, नैतिकता और लोगों के विश्वास का मामला है। जब मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थाएँ मान्यता प्राप्त करने के लिए प्रक्रियाओं में धोखाधड़ी करें, तो इसका असर छात्रों, उनके भविष्य, अस्पतालों की विश्वसनीयता और स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ता है।

  • गुणवत्ता का सवाल: मान्यता मिलने पर यह अपेक्षा की जाती है कि कॉलेज सुविधाएँ, शिक्षक, प्रयोगशाला, क्लीनिकल प्रशिक्षण आदि मानकों के अनुरूप हों। यदि रिपोर्ट को झूठे दावों के आधार पर मान्यता दिलाई गई हो, तो छात्रों को सही प्रशिक्षण नहीं मिल पाएगा, जिससे उनके पेशेवर कौशल प्रभावित होंगे।

  • विश्वास की कमी: जब डॉक्टर, निरीक्षक या शिक्षा विभाग की संस्थाएँ पारदर्शिता से काम नहीं करें, तो जनता और अभिभावकों का उनका विश्वास टूटता है। मेडिकल कॉलेजों की मान्यता प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं, और यह लगता है कि सिर्फ पैसों से सब कुछ तय होता है।

  • प्रभाव छात्रों पर: मान्यता न मिलने से छात्रों को मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं — पढ़ाई में देरी, डिग्री की वैधता पर शक, भविष्य की नौकरी/रजिस्ट्रेशन समस्या इत्यादि।


उम्मीदें और आगे की राह

इस तरह की घटनाएँ यह संकेत देती हैं कि निरीक्षण और मान्यता देने वाली संस्थाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और कड़े नियमों की ज़रूरत है।

  • जाँच का निष्पक्ष होना: सीबीआई जांच को पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए, ताकि दोषियों को पूरी सजा मिल सके, और निर्दोष लोगों की भी सफाई हो सके।

  • शिक्षण संस्थानों की जवाबदेही: मेडिकल कॉलेजों और उनके संचालकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निरीक्षण से पहले तैयारी नहीं कि जा रही है, बल्कि वास्तविक सेवाएँ और व्यवस्थाएँ बनी हों।

  • नीति सुधार: मान्यता प्रक्रिया में सुधार हो, निरीक्षण टीमों की नियुक्ति, उनकी पहचान की गोपनीयता, निरीक्षण रिपोर्ट की समीक्षा व मूल्यांकन और शिकायत निवारण व्यवस्था आदि को कड़ा किया जाना चाहिए।

  • छात्र हित संरक्षण: जिन्हें इस वजह से नुकसान हुआ है, उन्हें राहत दी जानी चाहिए — जैसे कि सीटों की कमी, समय की बरबादी आदि की भरपाई हो सके।


निष्कर्ष

रावतपुरा मेडिकल कॉलेज मान्यता मामले ने शिक्षा व्यवस्था में एक चिंताजनक सच उजागर कर दिया है — कि कभी-कभी कार्यालयीन प्रक्रिया और निरीक्षण के नाम पर सिर्फ दिखावे के लिए काम होता है, जो छात्रों और सार्वजनिक हितों के विपरीत है। तीन डॉक्टरों का निलंबन इस बात का संकेत है कि प्रशासन ने इस पर गंभीरता दिखाई है।

लेकिन असली परीक्षा तब होगी जब पूरी जांच रिपोर्ट सामने आएगी, दोषियों को न्याय मिलेगा और शिक्षा व्यवस्था में विश्वास फिर से कायम होगा। छात्रों को यह महसूस होना चाहिए कि उनका भविष्य सिर्फ डिग्री नहीं, बल्कि गुणवत्ता, सही प्रशिक्षण और मर्यादा के अधिकार से जुड़ा है।

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