भारत की एशिया कप जीत से रंगीली शाम

भारत की एशिया कप जीत से रंगीली शाम

29, 9, 2025

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जब भारत ने एशिया कप 2025 का फाइनल पाकिस्तान को पांच विकेट से हराकर ख़िताब जीता, तो राष्ट्रीय स्तर पर जश्न की उमंग फैली और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में इस जीत का असर साफ़ झलका। विशेष रूप से आगरा, मेरठ, वाराणसी और लखनऊ जैसे शहरों ने रात को रोशन कर दिया।


रिंकू सिंह ने दिलाया जीत का पल

दुबई में हुए उस निर्णायक पल में अलीगढ़ के क्रिकेटर रिंकू सिंह ने एक गेंद पर ऐसा शॉट खेला, जिसने भारत को जीत दिलाई। जैसे ही वह चौका लगा, पल भर में भारत की जीत पक्की हुई — और वहीं से जश्न की शुरुआत हो गई।

अपने घर में रिंकू को बधाई देने वालों की कतार लग गई। उनके माता-पिता ने बताया कि जब उन्होंने शॉट मारा, तब पूरे घर में उत्साह और खुशी का माहौल बन गया। दूर-दूर से आने वाले फोन और मैसेज उनके पास बधाइयों की झड़ी लिए थे।


आगरा से लेकर लखनऊ तक: शहरों में उत्सव का रंग

आगरा में लोगों ने रोड पर निकलकर नारे लगाए, घरों पर तिरंगे लहराए और पटाखे फोड़े। कुछ स्थानों पर स्थानीय रामलीला मंडलों ने तुरंत ‘राम-विराम’ खेल का आयोजन कर दिया — जीत और उत्सव के बीच सांस्कृतिक को जोड़ने की ये कोशिश थी।

मेरठ और वाराणसी में भी लोग सड़कों पर उमड़ पड़े। बीन-ढोल, थाली-थाली की आवाज़ों के बीच गीत चले, और “भारत माता की जय” की गूंज हर कोने से सुनाई दी। लखनऊ में खास तौर पर झाड़ियों-मंज़िलों पर बल्ब जल गए, और लोगों ने मोबाइल लाइट्स से रात को रोशन कर दिया।

एक वीडियो में यह भी दिखा कि कैसे रिंकू को कॉल पर बधाई दी गई, और उनके घरवालों की भावनाओं का खुमार सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।


जश्न का सांस्कृतिक रंग और जनता की अभिव्यक्ति

यह सिर्फ क्रिकेट जीत नहीं थी — यह एक राष्ट्रीय अहसास था, जो छोटे-छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों तक पहुंचा। लोगों ने इसे अपनी जीत माना, और अपनी भावनाएँ खुले मन से जताईं।

रामलीला मंडलों का शामिल होना खास था — जैसे ही जीत का पल आया, कई जगहों पर राम-रावण के मंच सजाए गए और कलाकारों ने तुरंत नाटक शुरू कर दिया। यह एक तरीके से इस खुशी को लोक-संस्कृति के मंच पर ले जाने जैसा था।

इसी तरह, गायन, ढोल-नगाड़े, नृत्य और कीर्तन ने जश्न को और ऊँचाई दी। बच्चे, युवा और बुज़ुर्ग — हर कोई तिरंगा लेकर निकल पड़ा।


क्या ये सिर्फ खुशी या कुछ और था?

यह उत्सव सिर्फ जीत का जश्न नहीं था — यह एक पहचान, मान और गर्व का पल था। भारतीय टीम ने जिस तरह से जश्न मनाया, लोगों ने उसे अपनी जीत की तरह देखा। यही वजह है कि साधारण सामूहीकरण (social celebration) से ऊपर, इसे एक साझा भावनात्मक आंदोलन कहा जा सकता है।

कुछ विशेषज्ञ इसे “क्रिकेट की शक्ति” कहेंगे — वो शक्ति जो लोगों को जोड़ देती है, सीमाएँ मिटा देती है और छोटी-छोटी जिंदगीओं में उमंग का संचार कर देती है।

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