कर्नाटक हाईकोर्ट और X (पूर्व ट्विटर) विवाद: भारत में ऑनलाइन कंटेंट नियंत्रण पर बड़ा झगड़ा

कर्नाटक हाईकोर्ट और X (पूर्व ट्विटर) विवाद: भारत में ऑनलाइन कंटेंट नियंत्रण पर बड़ा झगड़ा

29, 9, 2025

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हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) द्वारा चुनौती दी गई भारतीय सरकार की कंटेंट हटाने की प्रणाली के खिलाफ याचिका खारिज कर दी। इस प्रणाली के माध्यम से “सहयोग” नामक ऑनलाइन पोर्टल पर दो मिलियन से अधिक पुलिस अधिकारियों को केवल अवैध होने के संदेह पर बिना किसी न्यायिक समीक्षा के ऑनलाइन कंटेंट हटाने के लिए अनुरोध करने की शक्ति दी गई है।

X का कहना है कि यह प्रणाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा है और प्लेटफ़ॉर्म पर अनुपालन न करने पर आपराधिक जिम्मेदारी लगा सकती है। वहीं, भारतीय सरकार इस प्रणाली को जरूरी मानती है ताकि बढ़ती हुई गलत जानकारी और अवैध कंटेंट पर नियंत्रण रखा जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के नियमन को 2023 से और सख्त किया गया है।


कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख

कर्नाटक हाईकोर्ट ने X की याचिका खारिज करते हुए कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को भारतीय कानूनों का पालन करना होगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका में लागू फ्री स्पीच के मानक भारत के संविधान के तहत लागू नहीं होते। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय कानून और सार्वजनिक सुरक्षा प्राथमिकता में आगे हैं और सोशल मीडिया कंपनियों को इसके अनुरूप काम करना होगा।


X का रुख

X ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने की योजना बनाई है। प्लेटफ़ॉर्म का कहना है कि कंटेंट हटाने की यह प्रणाली पारदर्शी नहीं है और इससे मौलिक अभिव्यक्ति के अधिकार को खतरा है। X के अनुसार, अगर प्लेटफ़ॉर्म इस प्रणाली का पालन नहीं करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है, जिससे वैश्विक तकनीकी कंपनियों पर दबाव बढ़ जाएगा।

X का तर्क है कि यह सिर्फ तकनीकी नियंत्रण का मामला नहीं है, बल्कि डिजिटल स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उपयोगकर्ताओं के अधिकारों के बीच संघर्ष है। प्लेटफ़ॉर्म ने कहा कि उन्हें डर है कि यह प्रणाली प्लेटफ़ॉर्म्स पर सेंसरशिप का नया युग शुरू कर सकती है।


भारतीय सरकार का बचाव

भारतीय सरकार का कहना है कि कंटेंट हटाने की प्रणाली अनिवार्य उपाय है, ताकि ऑनलाइन अवैध कंटेंट और गलत सूचना को रोका जा सके। सरकार का यह भी कहना है कि यह प्रणाली आईटी नियमों के तहत पूरी तरह वैध है और इसका मकसद सामाजिक शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखना है।

सरकार ने यह स्पष्ट किया कि वैश्विक तकनीकी कंपनियों द्वारा भारत में संचालित प्लेटफ़ॉर्म्स को राष्ट्रीय कानूनों और नियमों का पालन करना होगा। सरकार का कहना है कि कंटेंट हटाने की प्रक्रिया का उद्देश्य केवल डिजिटल अपराधों को रोकना और नागरिकों के हितों की सुरक्षा करना है।


विवाद का व्यापक महत्व

यह मामला वैश्विक तकनीकी कंपनियों और राष्ट्रीय सरकारों के बीच जारी तनाव को उजागर करता है। भारत जैसे देशों में, जहां डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर तेजी से नियंत्रण बढ़ रहा है, इस तरह के फैसले ऑनलाइन कंटेंट प्रशासन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर X की अपील खारिज होती है, तो यह न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में भी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स के नियंत्रण के लिए एक उदाहरण बनेगा। इसके विपरीत, अगर अपील सफल होती है, तो यह वैश्विक प्लेटफ़ॉर्म्स को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण देने की दिशा में बल देगा।


भविष्य की चुनौतियाँ

इस विवाद से कई बड़े सवाल खड़े होते हैं:

  1. क्या वैश्विक प्लेटफ़ॉर्म्स को राष्ट्रीय कानूनों का पालन करना चाहिए, भले ही उनके अपने देश के नियम अलग हों?

  2. क्या सरकारी नियंत्रण और सेंसरशिप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकती है?

  3. भविष्य में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स और सरकारों के बीच समानुभूतिपूर्ण संतुलन कैसे बनाए रखा जाएगा?

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स की बढ़ती निगरानी और कंटेंट हटाने के नियम मौलिक अधिकारों और सुरक्षा के बीच संतुलन की दिशा में एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा बनते जा रहे हैं।


निष्कर्ष

कर्नाटक हाईकोर्ट और X के बीच यह मामला यह दर्शाता है कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स और राष्ट्रीय सरकारों के बीच संघर्ष केवल तकनीकी या कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि यह मौलिक अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल संचार के भविष्य से जुड़ा है।

जैसे-जैसे अपील की सुनवाई आगे बढ़ेगी, यह तय होगा कि भारत में ऑनलाइन कंटेंट के नियम किस हद तक कड़े होंगे और वैश्विक प्लेटफ़ॉर्म्स को राष्ट्रीय कानूनों के अनुपालन में कितना स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दी जाएगी।

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