असम में आदिवासी समुदायों का आंदोलन: मटक समुदाय की एसटी दर्जे की मांग

असम में आदिवासी समुदायों का आंदोलन: मटक समुदाय की एसटी दर्जे की मांग

29, 9, 2025

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असम में मटक समुदाय सहित छह आदिवासी समुदायों ने हाल ही में एसटी (अनुसूचित जनजाति) दर्जे की मांग को लेकर व्यापक प्रदर्शन शुरू किया है। यह आंदोलन राज्य सरकार के प्रति असंतोष और लंबे समय से लंबित मांगों को लेकर है।

मटक समुदाय का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ

मटक समुदाय असम के दीब्रूगढ़ और तिनसुकिया जिलों में मुख्य रूप से निवास करता है। इनकी सांस्कृतिक पहचान महापुरुषिया पंथ से जुड़ी हुई है, और इनका इतिहास अहोम साम्राज्य के पतन से जुड़ा हुआ है। मटक समुदाय ने ब्रिटिश शासन और स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी।

आंदोलन की शुरुआत और प्रमुख घटनाएँ

मटक समुदाय ने 22 सितंबर को तिनसुकिया जिले के डिकम से लाहोवाल तक मशाल जुलूस निकाला, जिसमें लगभग 50,000 लोग शामिल हुए। इस प्रदर्शन में मटक समुदाय के नेताओं ने राज्य और केंद्र सरकारों पर वादे पूरा न करने का आरोप लगाया। इसके बाद, 26 सितंबर को दीब्रूगढ़ में लगभग 20,000 लोगों ने मुख्यमंत्री के वार्ता प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए सड़कों पर उतरे और एसटी दर्जे की मांग की।

अन्य आदिवासी समुदायों की भागीदारी

मटक समुदाय के साथ-साथ मोरान, चाय जनजातियाँ, ताई आहोम, आदिवासी और मेइतेई समुदाय भी एसटी दर्जे की मांग में शामिल हुए हैं। इन समुदायों का कहना है कि उन्हें शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में समान अवसर नहीं मिल रहे हैं।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

यह आंदोलन राज्य सरकार के लिए एक नई चुनौती बन गया है, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए। इन समुदायों की मांगों को नजरअंदाज करना सरकार के लिए राजनीतिक रूप से जोखिमपूर्ण हो सकता है।

निष्कर्ष

असम में आदिवासी समुदायों का यह आंदोलन उनके अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार को इन समुदायों की मांगों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और उचित कदम उठाना चाहिए ताकि राज्य में शांति और समृद्धि बनी रहे।

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