संघर्ष का नया मोड़: भूपति ने हथियार उठाना बताया “सबसे बड़ी भूल”, जनता से मांगी माफी

संघर्ष का नया मोड़: भूपति ने हथियार उठाना बताया “सबसे बड़ी भूल”, जनता से मांगी माफी

11, 8, 2025

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जगदलपुर से बड़ी खबर आई है। माओवादी संगठन के पोलितन ब्यूरो सदस्य मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ सोनू, उर्फ भूपति ने एक पत्र जारी किया है जिसमें उन्होंने अपनी पिछली रणनीतियों की आलोचना की है। इस पत्र में वे यह स्वीकार कर रहे हैं कि “हथियार उठाना” आंदोलन की दिशा में एक भारी गलत कदम था। साथ ही उन्होंने इस राह को बदलने की इच्छा जताई है — शांतिपूर्ण एवं सामाजिक संघर्ष पर ज़ोर देने का संकेत दिया है।


पत्र की मुख्य बातें

  1. हथियार चलाना गलत फैसला था
    सोनू के शब्दों में, आंदोलन के असली मुद्दे जमीन, जंगल और सम्मान थे। लेकिन हथियारों के ज़रिए संघर्ष ने आंदोलन को कमजोर किया, निर्दोषों को पीड़ा दी गई और न्याय की अपेक्षाएँ पूरी नहीं हो पाईं। उन्होंने कहा कि चलकर हुई हिंसा लोगों के विश्वास को लॉजिकल तरीके से प्रभावित कर गई। 

  2. जनता से माफी
    पत्र में उन्होंने खुले रूप से जनता से माफी मांगी है उन गलतियों के लिए जो आंदोलन के दौरान हुईं। उन्होंने स्वीकार किया कि आंदोलन की कुछ गतिविधियों ने जन समर्थन की बजाय डर और ग़लतफहमी पैदा की। 

  3. सरकार की पुनर्वास नीति पर टिप्पणी
    सोनू ने सरकार की पुनर्वास नीति — जिसमें आत्मसमर्पण करने वालों को सुविधाएँ या लाभ दिए जाते हैं — पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि कुछ मामलों में “नकली आत्मसमर्पण” दिखाया गया है, जिससे जनता को गुमराह किया गया। उन्होंने कहा कि सरकार इस तरह की रणनीतियों से वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटा रही है। 

  4. आत्ममंथन और नई रणनीति की ओर इशारा
    पत्र में सोनू ने लिखा है कि संगठन आत्ममंथन प्रक्रिया में है। अब आगे की रणनीति में हथियार नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक मुद्दों, महिलाओं की भागीदारी, गांव-गांव में जागरूकता और शांतिपूर्ण संघर्ष को अहमियत दी जाएगी।

  5. इन अंतरालों की आलोचना भी की गई
    उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि आंदोलन ने बाहरी विचारधाराओं की नकल करने में अपनी जड़ों से दूरी बना ली थी, और शांति की चाह रखने वालों को पर्याप्त आवाज़ नहीं मिली।


सोनू / अभय कौन हैं?

  • मल्लोजुला वेणुगोपाल, जिनके कई नाम हैं — सोनू, भूपति, अभय — माओवादी संगठन के पोलित ब्यूरो (Politburo) और केंद्रीय सैन्य कमीशन के सदस्य हैं।

  • उनके भाई किशनजी की हत्या 2011 में हुई थी।

  • सोनू की पत्नी तारक्का ने पहले आत्मसमर्पण किया है और पुनर्वास कैंप में हैं। वह इस बात पर भी बल देते हैं कि संगठन अब हिंसात्मक तरीकों की बजाय न्याय, सामाजिक न्याय और स्थानीय मुद्दों को सामने लाने का रास्ता अपनाए। 


क्या बदल रहा है?

यह पत्र संकेत है कि माओवादी आंदोलन में एक आंतरिक बदलाव की प्रक्रिया हो रही है — जहाँ अब सिर्फ हथियार नहीं, बल्कि “जनता-के बीच बात”, संगठनात्मक बदलाव, शांति वार्ता आदि की ओर झुकाव है।

  • संगठन अब यह मानता है कि हिंसा ने लोगों में डर और अस्थिरता बढ़ायी है, न कि न्याय।

  • अब भविष्य की रणनीति में गांव-गांव लड़ाई, सामाजिक आंदोलनों, महिलाओं की भागीदारी जैसी चीज़ें होंगी।

  • आत्मसमर्पण नीतियों को संदेह के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है क्योंकि उनका उपयोग “दिखावा” तरीकों से करने की आलोचना हो रही है।


इसके निहितार्थ

  • यदि यह परिवर्तन वास्तविक हो, तो इसका सीधा असर आदिवासी इलाकों की जीवनशैली, स्थानीय सरकारों और विकास योजनाओं पर होगा।

  • सुरक्षाबलों और सरकारी मशीनरी को भी रणनीति बदलनी पड़ेगी: अब संभावित वार्ताएँ, पुनर्वास और बातचीत के रास्ते खुल सकते हैं।

  • जन विश्वास का पुनर्निर्माण करना होगा क्योंकि हिंसा के वर्षों से कई लोग संगठन और सरकार दोनों से असंतुष्ट भाव रखते हैं।

  • यह कदम माओवादी आंदोलन के लिए “नया चेहरा” हो सकता है — जितना अस्थायी या दिखावटी न हो, अगर हल्की सी भी सच्चाई हो।


चुनौतियाँ और विरोधाभास

हालाँकि सोनू ने बड़ी गलती स्वीकार की है, लेकिन कुछ बातें अभी भी उलझी हुई हैं:

  • आंदोलन के अंदर यह बदलाव कितने गहराई से और कितनी वास्तविकता से होगा, यह कहना मुश्किल है।

  • बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा आदि इलाकों में हाल ही में हुई घटनाएँ — जैसे कि निर्दोष ग्रामीणों की हत्याएं — अभी भी माओवादी जिम्मेदारी की श्रेणी में आती हैं, जो इस बदलाव की विश्वसनीयता को प्रभावित करती हैं। 

  • सरकारी पुनर्वास नीति और सुरक्षा बलों की जवाबदेही का महत्व बढ़ेगा, क्योंकि जनता अब सिर्फ प्रतीकों से संतुष्ट नहीं होगी।


निष्कर्ष

भूपति का यह पत्र केवल एक समाचार वस्तु नहीं है, बल्कि संभावित परिवर्तन की झलक है — माओवादी आंदोलन में आत्ममंथन, रणनीति परिवर्तन और हिंसा से दूरी लेने की कोशिश।

अगर ये बदलाव सत्‍य हों तो:

  • हिंसा कम होगी,

  • जनता के बीच भरोसा बनेगा,

  • विकास और न्याय की ओर कदम बढ़ेंगे।

लेकिन यह सब तभी संभव है जब संगठन, सरकार और जनता — तीनों पक्ष — कार्रवाई में बदलाव देखें, बयानबाज़ी नहीं, बल्कि असली परिवर्तन हो।

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