जगदलपुर: गृहमंत्री शर्मा ने माओवादियों के शांति वार्ता पत्र को बताया संदिग्ध, पुलिस को सतर्क रहने के निर्देश

जगदलपुर: गृहमंत्री शर्मा ने माओवादियों के शांति वार्ता पत्र को बताया संदिग्ध, पुलिस को सतर्क रहने के निर्देश

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के जगदलपुर से एक अहम राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी खबर सामने आई है। हाल ही में माओवादी पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू उर्फ भूपति द्वारा जारी पत्र में हथियार छोड़कर शांति वार्ता की बात कही गई थी। इस पत्र ने पूरे बस्तर क्षेत्र में हलचल मचा दी। लेकिन राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा ने इस पत्र पर सीधी प्रतिक्रिया देते हुए इसे संदिग्ध करार दिया है और पुलिस प्रशासन को सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं।


पत्र और उसके मायने

कुछ दिन पहले माओवादी नेता भूपति का एक पत्र सामने आया था जिसमें उसने माना कि हथियार उठाना सबसे बड़ी भूल रही। पत्र में हिंसा को त्यागकर जनता के बीच सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष को आगे बढ़ाने की बात लिखी गई। साथ ही उसने सरकार की पुनर्वास नीतियों पर सवाल उठाए और जनता से माफी भी मांगी।

यह पत्र पहली बार किसी बड़े माओवादी नेता की ओर से आत्ममंथन की तरह सामने आया था। इसने यह संकेत दिया कि संगठन के भीतर एक नई सोच जन्म ले रही है। लेकिन सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के बीच इस पर गहरी शंका भी बनी हुई है।


गृहमंत्री की प्रतिक्रिया

गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि इस तरह के पत्रों पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता। उनका मानना है कि यह पत्र माओवादियों की एक रणनीतिक चाल भी हो सकती है। कई बार पहले भी उन्होंने वार्ता और शांति की बातें की हैं लेकिन ज़मीन पर हिंसा की घटनाएँ जारी रहीं।

उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार जनता की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। इसलिए किसी भी परिस्थिति में पुलिस या सुरक्षा बल ढिलाई नहीं बरतेंगे। उन्होंने बस्तर और अन्य नक्सल प्रभावित जिलों की पुलिस को निर्देश दिए हैं कि वे और सतर्क रहें, हर गतिविधि पर नजर बनाए रखें और जनता को सुरक्षित वातावरण दें।


पत्र की विश्वसनीयता पर सवाल

गृहमंत्री ने कहा कि भूपति का पत्र चाहे जिस भावना से लिखा गया हो, लेकिन जब तक माओवादी हिंसा पूरी तरह बंद नहीं करते, इसे भरोसे के काबिल नहीं माना जा सकता।

  • अगर संगठन वास्तव में हिंसा छोड़ना चाहता है, तो उन्हें औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण करना होगा।

  • केवल पत्र जारी कर देने से शांति स्थापित नहीं होती।

  • पिछले कई दशकों से माओवादी वार्ता की बात करते रहे हैं लेकिन असल में सुरक्षा बलों और निर्दोष ग्रामीणों पर हमले करते रहे हैं।


पुलिस और जनता के लिए संदेश

गृहमंत्री ने पुलिस अधिकारियों को साफ शब्दों में कहा है कि वे इस पत्र को ध्यान में रखते हुए हर हाल में अलर्ट रहें। उन्होंने यह भी कहा कि अगर माओवादी शांति वार्ता चाहते हैं तो उन्हें हथियार छोड़कर सरकार के सामने आना चाहिए।

जनता को भी सतर्क रहने की अपील की गई है। ग्रामीणों से कहा गया है कि वे किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी तुरंत पुलिस को दें। सरकार ने यह भरोसा दिलाया है कि सूचना देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाएगी और उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी।


राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण

यह मामला केवल सुरक्षा से जुड़ा नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से भी अहम है।

  • माओवादी हिंसा छत्तीसगढ़ के विकास में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक रही है।

  • सरकार ने कई बार पुनर्वास नीति, आत्मसमर्पण पॉलिसी और विकास योजनाओं के जरिए समस्या को हल करने की कोशिश की है।

  • लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि माओवादी इलाकों में हिंसा की घटनाएँ अभी भी होती हैं।

पत्र ने उम्मीद और संशय दोनों पैदा किए हैं। एक ओर यह संकेत है कि संगठन के भीतर कुछ लोग बदलाव चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर यह भी डर है कि यह केवल सुरक्षा बलों को गुमराह करने की नई चाल हो सकती है।


सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति

पत्र आने के बाद सुरक्षा बल और भी सतर्क हो गए हैं।

  • जंगलों में सर्च ऑपरेशन तेज कर दिए गए हैं।

  • खुफिया तंत्र को अलर्ट कर दिया गया है।

  • उन इलाकों में, जहाँ माओवादी गतिविधियाँ ज्यादा होती हैं, अतिरिक्त जवान तैनात किए गए हैं।

साथ ही, सरकार यह भी देख रही है कि अगर माओवादी गुटों के भीतर वास्तव में असहमति और आत्ममंथन हो रहा है, तो इसका फायदा उठाया जा सके।


जनता की भूमिका

गृहमंत्री का मानना है कि इस पूरे संघर्ष में जनता की भूमिका सबसे अहम है। जब तक स्थानीय लोग माओवादियों का समर्थन या सहयोग करना बंद नहीं करेंगे, तब तक समस्या का हल पूरी तरह नहीं निकल सकता। इसलिए पुलिस अब ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों से जुड़ने, उनका विश्वास जीतने और उन्हें सुरक्षा का अहसास कराने की कोशिश कर रही है।


निष्कर्ष

भूपति का पत्र भले ही एक सकारात्मक संकेत हो, लेकिन राज्य सरकार ने साफ कर दिया है कि इसे सीधे-सीधे विश्वास करने योग्य नहीं माना जाएगा। गृहमंत्री शर्मा का यह बयान इस बात को स्पष्ट करता है कि सरकार माओवादियों की किसी भी चाल से धोखा नहीं खाना चाहती।

यह पत्र चाहे आत्ममंथन हो या रणनीति, इससे एक बहस जरूर शुरू हो गई है कि क्या अब माओवादी संगठन हिंसा की राह छोड़कर संवाद और शांति की ओर बढ़ेंगे?

फिलहाल सरकार का रुख सख्त है:

  • बिना हथियार छोड़े कोई वार्ता नहीं।

  • जनता और पुलिस को अलर्ट रहना होगा।

  • शांति की बातें तभी मायने रखती हैं जब धरातल पर हिंसा बंद हो।

बस्तर और पूरे छत्तीसगढ़ की जनता इसी सवाल का इंतजार कर रही है — क्या माओवादी सचमुच बदलना चाहते हैं, या यह भी सिर्फ एक और चाल है?

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