दंतेवाड़ा: माओवादी IED विस्फोट में दो CRPF जवान घायल, एक की हालत गंभीर

दंतेवाड़ा: माओवादी IED विस्फोट में दो CRPF जवान घायल, एक की हालत गंभीर

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में सुरक्षा बलों और माओवादी संघर्ष की झलक एक बार फिर सामने आई है, जब एक IED (इरप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) बम विस्फोट ने दो CRPF जवानों को घायल कर दिया। इस हमले से क्षेत्र की सुरक्षा चुनौतियाँ और खतरा दोनों उजागर हुए हैं।


घटना कैसे हुई

  • घटना उस समय हुई जब CRPF की 195वीं बटालियन का एक दल डेमाइनिंग ऑपरेशन (IED हटाने की कोशिश) कर रहा था। यह टीम क्षेत्र-पतन और मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जंगल और ग्रामीण मार्गों में लगातार निगरानी करती है।

  • विस्फोट लगभग सुबह 10:30 बजे हुआ, पल्ली-बारसूर रोड के पास, सातारघाट ब्रिज के क़रीब। यह हिस्सा मावेयी / मेलवही इलाके से नज़दीक है। जवान जब एक संभावित दबाव विस्फोटक (pressure-IED) द्वारा बिछाए गए उपकरण को निष्क्रिय करने की कोशिश कर रहे थे, तो वह अचानक फट गया।

  • विस्फोट में दो जवान घायल हुए: इंस्पेक्टर दिवान सिंह गुर्जर और कांस्टेबल आलम मुनैश। इनमें से आलम मुनैश की हालत कुछ ज़्यादा गंभीर बताई गई है।


अस्पताल भर्ती और इलाज

  • घायल जवानों को तुरंत प्राथमिक उपचार के लिए दंतेवाड़ा जिला अस्पताल ले जाया गया। वहाँ उनकी स्थिति का अध्ययन किया गया।

  • आलम मुनैश को स्थिति बिगड़ने के बाद और बेहतर सुविधा वाले अस्पताल पहुँचाने के लिए एयरलिफ्ट किया गया है — रायपुर की ओर भेजा गया है जहाँ बेहतर चिकित्सा संसाधन उपलब्ध हैं।

  • दिवान सिंह गुर्जर को भी अस्पताल में भर्ती किया गया है; उन्हें छर्रों से लगी चोटें हुई हैं। उनकी स्थिति स्थिर बताई जा रही है लेकिन सावधानी बरती जा रही है।


सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया

  • घटना के बाद सुरक्षा बलों ने घटना स्थल की सुरक्षा बढ़ा दी है। आसपास के इलाकों में पैटनिंग अभियान (combing operations) तेज कर दिए गए हैं ताकि किसी भी प्रकार की शंका से निपटा जा सके।

  • जवानों को बताया गया है कि आगे भी ऐसे विस्फोटक उपकरण हो सकते हैं, इसलिए जाँच-खोज और सतर्कता पूरी तरह से बरती जाए।

  • पुलिस और CRPF कमांडरों ने यह पुष्टि की है कि इस प्रकार के दबाव बम अक्सर जंगलों और ग्रामीण मार्गों में रखे जाते हैं जहाँ सुरक्षा दलों की आवाजाही होती है।


इलाकाई पृष्ठभूमि और खतरा

  • दंतेवाड़ा और बस्तर इलाका माओवादी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। वहाँ माओवादी अक्सर जंगलों और रास्तों में IED लगाते हैं ताकि सुरक्षा बलों को प्रभावित किया जा सके।

  • दबाव-आईईडी (pressure IED) एक विशेष प्रकार का विस्फोटक होता है जो किसी ज़मीन या पथ पर रखे जाने बाद उस पर दबाव पड़ने पर फटता है, जैसे जब कोई व्यक्ति या वाहन उस बिंदु से गुजरता है। ये विस्फोटक बेहद खतरनाक होते हैं क्योंकि वे कई तरह से छिपे हो सकते हैं।

  • पिछले कुछ वर्षों में इस इलाके में कई ऐसे हमले हुए हैं। सुरक्षा बलों ने समय-समय पर ऐसे मार्गों की सफाई, जाँच और स्थानीय लोगों से सूचना जुटाने की कोशिशें intensified की हैं।


उत्पन्न तनाव और सामाजिक प्रभाव

  • इस तरह के हमले से जवानों और उनके परिवारों में भय बढ़ता है, क्योंकि जंगलों में हर मूवमेंट खतरनाक हो सकती है।

  • स्थानीय ग्रामीणों को भी इस आंदोलन और जवाबी कार्रवाइयों के बीच फँसना पड़ता है — सफर करने में जोखिम, शिक्षा-स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचने में मुश्किल, तथा भय का माहौल बना रहता है।

  • सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे सुरक्षा सुनिश्चित करें, लेकिन संतुलित तरीके से — ताक़ि नागरिकों का जीवन प्रभावित न हो।


चुनौतियाँ जो बनी हुई हैं

  • IED की पहचान और हटाना: जंगल और ग्रामीण मार्गों में कई छुपे हुए विस्फोटक उपकरण होते हैं — सही खुफिया सूचना के बिना इन्हें ढूँढना मुश्किल है।

  • भारी दबाव और संसाधन: जवानों को अक्सर सीमित संसाधन और जोखिम भरे वातावरण में काम करना पड़ता है। प्रशिक्षित बम डिक्टेक्शन टीमों की पर्याप्त मौजूदगी, उपकरणों की उपलब्धता आदि पर ध्यान देना होगा।

  • स्थानीय सहयोग की कमी: कभी-कभी स्थानीय लोग डर, धमकी या अन्य कारणों से सुरक्षा बलों को सूचना देने में हिचकिचाते हैं। सूचना नेटवर्क को मजबूत करना जरूरी है।


संभावित उपाय व अगले कदम

  • सुरक्षा बलों को नियमित मार्गों और जंगल पथों में IED जाँच दलों का गिरफ्तार करना चाहिए और बेहतर तकनीकियों का उपयोग करना चाहिए — जैसे मिनी-सेंसर्स, बम श्रेडिंग रोबोट आदि।

  • स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ानी चाहिए — ग्रामीणों को सुरक्षा बलों के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि खुफिया सूचना समय पर मिल सके।

  • घायल जवानों के इलाज और पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए। सरकार को यह ध्यान देना चाहिए कि घायल जवानों को बेहतर मेडिकल सुविधा मिले और उनकी रिकवरी अच्छी हो।

  • सुरक्षा नीति में निरंतर अपडेट होनी चाहिए — नक्सली आतंक के तरीकों में बदलाव करते रहते हैं, इसलिए रणनीति भी बदलनी चाहिए।


निष्कर्ष

इस हमले ने एक बार फिर याद दिलाया है कि माओवादी संघर्ष अभी भी सक्रिय है और सुरक्षा चुनौतियाँ अभी भी बरकरार हैं। दो CRPF जवानों के घायल होने से यह स्पष्ट है कि जंगलों और ग्रामीण मार्गों की सुरक्षा और भी ज़रूरी हो गई है।

लेकिन इस घटना के बाद जो उम्मीद जगती है, वह यह है कि सुरक्षाबलों की मुस्तैदी, स्थानीय जनता की भागीदारी और बेहतर सूचना तंत्र मिलकर ऐसे हमलों को कम कर सकें। दर्द इसलिए भी है क्योंकि जीवन व परिवारों पर असर पड़ता है, लेकिन सही कदम उठाकर इस तरह के हमलों को नियंत्रित किया जा सकता है।

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