मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) जिले के नागपुर क्षेत्र में स्थित मां दुर्गा समिति पिछले 60 वर्षों से रामलीला का आयोजन कर रही है।

मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) जिले के नागपुर क्षेत्र में स्थित मां दुर्गा समिति पिछले 60 वर्षों से रामलीला का आयोजन कर रही है।

29, 9, 2025

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मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) जिले के नागपुर क्षेत्र में स्थित मां दुर्गा समिति पिछले 60 वर्षों से रामलीला का आयोजन कर रही है। यह आयोजन स्थानीय सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का एक अनूठा प्रयास है। समिति के सदस्य बताते हैं कि इस आयोजन के माध्यम से वे राम के आदर्शों और भारतीय संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।

रामलीला के मंचन में स्थानीय कलाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। समिति ने हमेशा स्थानीय प्रतिभाओं को मंच प्रदान किया है, जिससे क्षेत्रीय संस्कृति को बढ़ावा मिला है। इस आयोजन में राम के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया जाता है, जो दर्शकों को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समृद्ध करता है।

समिति के आयोजक बताते हैं कि इस आयोजन के दौरान स्थानीय लोग एकजुट होकर सहयोग करते हैं। पंडाल की सजावट, मंच निर्माण, और अन्य व्यवस्थाओं में सभी का योगदान होता है, जिससे सामूहिक प्रयास की भावना प्रबल होती है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में एकता और भाईचारे की भावना को भी प्रगाढ़ करता है।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस आयोजन के माध्यम से वे अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हैं। रामलीला के मंचन से बच्चों और युवाओं में भारतीय संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ती है, जो भविष्य में समाज के लिए सकारात्मक योगदान प्रदान करती है।

समिति के सदस्य यह भी बताते हैं कि इस आयोजन के दौरान वे पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूकता फैलाते हैं। प्लास्टिक के उपयोग को कम करने, स्वच्छता बनाए रखने और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों पर चर्चा की जाती है, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आता है।

इस आयोजन के माध्यम से समिति ने यह सिद्ध कर दिया है कि सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित रखना और उन्हें आगामी पीढ़ियों तक पहुंचाना आवश्यक है। रामलीला का यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में एकता, भाईचारे और जागरूकता की भावना को भी बढ़ावा देता है।

आखिरकार, मां दुर्गा समिति का यह प्रयास एक प्रेरणा है कि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को संजोए रखें और उन्हें आगामी पीढ़ियों तक पहुंचाएं, ताकि हमारी पहचान और संस्कृति जीवित रहे।

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