दंतेवाड़ा में 21 माओवादी आत्मसमर्पण — इनमें से 13 पर इनाम घोषित, राज्य की रणनीति को जोर

दंतेवाड़ा में 21 माओवादी आत्मसमर्पण — इनमें से 13 पर इनाम घोषित, राज्य की रणनीति को जोर

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले से एक बड़ा राजनीतिक-सुरक्षा संबंधी मोड़ सामने आया है। कुल 21 माओवादी ने हथियार डालने का फैसला किया है, जिनमें से 13 पर इनामी इनाम राशि घोषित थी। ये आत्मसमर्पण राज्य सरकार की “Lone Varatu” (वापसी की राह) और “Puna Narkem” (नया सवेरा) अभियानों के तहत किया गया है।


आत्मसमर्पण का सिलसिला कैसे शुरू हुआ

  • इन 21 माओवादी आत्मसमर्पण करने वालों ने दंतेवाड़ा पुलिस और सुरक्षाबलों के समक्ष समर्पण किया। इस दौरान वरिष्ठ अधिकारी और जिला पुलिस प्रशासन मौजूद थे।

  • यह कदम उन अभियानों का हिस्सा है जो कुछ समय से चलाई जा रही हैं — सुरक्षित लौटने की योजनाएँ, पुनर्वास नीति, और संवाद-विचार की पहलें। ये अभियान हिंसा को कम करने, जंगलों में दबाव बनाए रखने, और लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश करते हैं।


आत्मसमर्पितों की स्थिति और इनामी सदस्यों की पहचान

  • इन 21 लोगों में 13 ऐसी शख्सियतें शामिल थीं, जिनके सिर पर इनाम घोषित था, कुल मिलाकर लगभग ₹25.5 लाख की इनामी राशि-मूल्यांकन उनकी सक्रियता और हिंसक घटनाओं से जुड़ी हुई है।

  • इनमें से एक प्रमुख नाम है “केये उर्फ केशा लेकरम”, जिस पर ₹8 लाख का इनाम था। उस पर एक पूर्व मुठभेड़ की घटना में शामिल होने का आरोप था।

  • दो महिला कैडर — जमली कुहरम और कुमारी हिडमे उर्फ विज्जो ओयम — भी उनमें शामिल हैं। दोनों पर क्रमशः लगभग ₹1-1 लाख का इनाम था और आरोप है कि उन्होंने जंगलों में बैंड कॉल, पोस्टर लगाना, अन्य प्रचारात्मक गतिविधियों में भूमिका निभाई थी।

  • बाकी आत्मसमर्पित माओवादी संगठन के सक्रिय या सहायक कार्यों से जुड़े थे — साधारण जंगल मार्गों की रक्षा, सूचना संकलन, अभियानात्मक आवाजाही, बैनर-पोस्टर काम आदि।


आत्मसमर्पण के पीछे कारण

इन आत्मसमर्पणों के पीछे कुछ प्रमुख कारण सामने आए हैं:

  1. नक्सली विचारधारा से निराशा
    कुछ आत्मसमर्पितों ने कहा कि विचारधारा ने वादों जितना व्यवहार नहीं दिया। जंगल, ज़मीन, प्राकृतिक संसाधन आदि के नाम पर होने वाली राजनीतिक बातें, लेकिन स्थानीय लोगों को वास्तविक सुधार कम मिला।

  2. जीवन की कठिनाइयाँ
    जंगलों में रहने की चुनौतियाँ — भोजन-पानी, स्वास्थ्य सुविधाएँ, सुरक्षा, लगातार दबाव में रहना — ये सभी ऐसे कारक हैं जो लोगों को मुख्यधारा में लौटने पर मजबूर कर देते हैं।

  3. सरकारी पहलें और पुनर्वास नीति
    राज्य सरकार द्वारा आत्मसमर्पण करने वालों को जो प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं — आर्थिक सहायता, पुनर्वास, आजीविका व कौशल विकास कार्यक्रम — उन्होंने लोगों में यह भरोसा जगाया कि लौट कर एक नई ज़िंदगी संभव हो सकती है।

  4. सुरक्षा व दबाव का असर
    जंगलों में सुरक्षा बलों के अभियान बढ़े हैं, खुफिया तंत्र मजबूत हुआ है, माओवादी नियंत्रण वाले इलाकों में दबाव महसूस हो रहा है। इन दबावों से कुछ लोग देख रहे हैं कि संघर्ष जारी रखना कितना जोखिम भरा हो गया है।


सरकार और पुलिस प्रशासन की भूमिका

  • प्रशासन ने इन आत्मसमर्पणों को बड़े जन-आंदोलन की तरह देखा है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिला प्रशासन और केंद्रीय सुरक्षा बल इस तरह की घटनाओं को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों पर काम कर रहे हैं।

  • “Lon Varatu” और “Puna Narkem” अभियानों के तहत समर्पण करने वालों को तुरंत आर्थिक सहायता और पुनर्वास पैकेज दिए जा रहे हैं। इसके साथ सरकारी रोजगार योजनाएँ, कौशल प्रशिक्षण, आवास और अन्य सामाजिक कल्याण प्रावधान शामिल हैं।

  • पुलिस ने आश्वस्त किया है कि आत्मसमर्पण करने वालों को सुरक्षा की गारंटी मिलेगी, उनका शोषण नहीं होगा, और समाज में उन्हें सम्मान के साथ स्वीकार किया जाएगा।


संभावित प्रभाव और निहितार्थ

इस आत्मसमर्पण की घटना सिर्फ एक सुरक्षा सफलता नहीं है, बल्कि इससे कई स्तरों पर व्यापक परिवर्तन की संभावना दिखती है:

  • हिंसा में कमी: जितने माओवादी हथियार छोड़ रहे हैं, वे उन नक्सली अभियानों को कमजोर करेंगे जिसमें ये लोग भूमिका निभाते थे। इससे जंगलों में संघर्ष की तीव्रता कम हो सकती है।

  • स्थानीय लोगों में विश्वास बढ़ेगा: जब लोग देखेंगे कि आत्मसमर्पण से उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है, तो अधिक लोग इस रास्ते को चुन सकते हैं। इससे सामाजिक स्थिरता बढ़ेगी।

  • विकास और सेवा-वितरण में सुधार: इन आत्मसमर्पितों के लौटने से सरकार को विकास योजनाएँ उन इलाकों तक पहुँचाने में आसानी होगी जहाँ माओवादी प्रभाव ज़्यादा था। स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, सड़क-पानी जैसी सुविधाएँ बेहतर होंगी।


चुनौतियाँ और सवाल

हालाँकि आत्मसमर्पण स्वयं में सकारात्मक कदम है, कुछ बाधाएँ और मुद्दे अभी बाकी हैं:

  • भरोसा कायम करना: लोगों को यह विश्वास करना होगा कि आत्मसमर्पण के बाद उन्हें सामाजिक, आर्थिक, चिकित्सकीय एवं कानूनी बराबरी मिलेगी।

  • स्थायी पुनर्वास व्यवस्था: सिर्फ पैसे देना या प्रशिक्षण देना ही काम नहीं होगा; रोजगार के अवसर, भूमि-स्वामित्व, सामाजिक स्वीकार्यता आदि महत्वपूर्ण हैं।

  • आत्मसमर्पण का दायरा बढ़ाना: अभी के आत्मसमर्पितों में कुछ सक्रिय सदस्य हैं, कुछ सहयोगी। लेकिन बड़े स्तर की समस्या उन कमांडरों, ज़िम्मेदार नेताओं की है जो अभी भी संगठन को चला रहे हैं। उनके आत्मसमर्पण या बदलाव से ही बहुत कुछ बदलेगा।

  • सुरक्षा की गारंटी: आत्मसमर्पण के बाद उन पर कोई कार्रवाई न हो, उनके परिवार सुरक्षित हों, खुफिया या अन्य कानूनी झमेले में न फँसें — ये बातें सुनिश्चित होनी चाहिए।


निष्कर्ष

दंतेवाड़ा में 21 माओवादी आत्मसमर्पण की खबर न सिर्फ सुरक्षा बलों की सफलता है, बल्कि यह संकेत है कि लंबे समय से चले आ रहे हिंसक संघर्षों के बीच अब संवाद और बदलती पहचानों की गुंजाइश बन रही है। इन आत्मसमर्पणों ने यह दिखा दिया है कि विचारधारा, हिंसा और संघर्ष के बीच “वापसी की राह” भी संभव है जब सरकार और सामाजिक तंत्र सही-सही प्रोत्साहन और भरोसा दें।

यह घटना उम्मीद जगाती है कि भविष्य में ऐसे और कदम होंगे, और बस्तर-जंगलों का परिदृश्य बदलने लगेगा जहाँ आदिवासी इलाकों में विकास, न्याय और सामाजिक शांति की स्थिति मजबूत होगी।

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