दंतेवाड़ा: सड़क न होने से महिला ने ढोकर साढ़े 15 किलोमीटर तय किया, अस्पताल पहुंचने पर हुई मौत

दंतेवाड़ा: सड़क न होने से महिला ने ढोकर साढ़े 15 किलोमीटर तय किया, अस्पताल पहुंचने पर हुई मौत

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में सड़क व आधारभूत सुविधाओं की कमी की वजह से एक दर्दनाक घटना सामने आई है। 56 वर्षीय बंडी मुरियामी नाम की महिला बीमार रहने के छह दिन बाद संजीवनी मिलने से पहले ही मदद के इंतज़ार में दम तोड़ बैठीं।


घटना की पूरी कहानी

  • महिला गाँव: पटेल पारा कमारगुड़ा, जिला दंतेवाड़ा, जगरगुंडा क्षेत्र से।

  • इन्होंने छह दिनों से बीमारी का सामना कर रही थीं, जब उनके परिवार ने 108 एम्बुलेंस सेवा को बुलाया।

  • लेकिन समस्या ये कि उनका गांव सड़क संपर्क से कोसों दूर था, खासकर बारिश के मौसम में रास्ते और भी ख़राब हो जाते हैं। एम्बुलेंस गांव तक नहीं पहुँच सकी क्योंकि बारिश के कारण मार्ग लंबा एवं गीला हो गया था, और वाहन चलाना मुश्किल हो गया था।

  • बंडी मुरियामी को मौत होने से बचाने के लिए परिजन, ग्रामीणों की मदद से, खाट पर रखकर लगभग 15 किलोमीटर की दूरी कंधों पर-ढोकर निकटतम जगह, जहाँ एम्बुलेंस पहुँच सकती थी, ले गए।


अस्पताल यात्रा और मृत्यु

  • जब वह खाट पर ढोकर थोड़ी दूरी तय कर नई पटेल पारा पहुँची, वहाँ एम्बुलेंस ने प्राथमिक उपचार दिया और बाद में जिला अस्पताल के लिए रवाना हुई।

  • एम्बुलेंस टीम ने EMT Reshma Kariyam और पायलट अशोक सिंह ठाकुर की निगरानी में प्राथमिक उपचार शुरू किया।

  • बावजूद इसके, इलाज में देरी और यात्रा की थकान ने बंडी मुरियामी की हालत बिगाड़ दी, और अस्पताल पहुँचने के कुछ समय बाद उनकी मौत हो गई।


कारण, असर और सवाल

क्यों ऐसा हुआ?

  1. सड़क संपर्क का अभाव — गांव ऐसा है कि बारिश के दिनों में वाहन नहीं पहुँच सकते। सड़क न बनने या बहुत ख़राब होने के कारण एम्बुलेंस जैसे आपात सेवाएँ गाँव तक नहीं आ पातीं।

  2. भर्ती देरी — कदमों को समय पर नहीं उठाया गया; ज़रूरी था कि गाँवों से अस्पतालों तक पहुंच सुनिश्चित हो।

  3. भारी मौसम और बारिश — ये हालात और बिगाड़ देते हैं, विशेषकर अगर गाँव किनारे-छिपे हो और इफ्रा कम हो।


सामाजिक और मानव-दृष्टिकोण

  • ये सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं; यह कई गाँवों की कहानी है जो सुविधाओं से कटे-फटे हैं।

  • स्वास्थ्य सेवाएँ, समय का महत्व, सही-सही यातायात मार्गों की ज़रूरत — ये सभी बातें इस घटना से फिर सामने आई हैं।

  • जब जीवन और मृत्यु के बीच समय की भूमिका इतनी अहम हो जाए, तो आधारभूत सुविधाएँ जैसे सड़क, असरदार आपातकालीन सेवाएँ और अस्पतालों की समयनिष्ठ पहुँच कितनी ज़रूरी होती है, यह स्पष्ट हो जाता है।


प्रशासनिक पहल और ज़रूरी सुधार

अभी क्या किया जा सकता है:

  • ग्रामीण इलाकों तक रेड-सड़क परियोजनाएँ तेजी से पूरी की जाएँ। बारिश के दिनों को भी ध्यान में रखते हुए सड़क निर्माण हो ताकि वाहन सीज़न भर चले सकें।

  • आपातकालीन सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए मोबाइल क्लीनिक, एम्बुलेंस स्टेशनों को गांव-पास भेजना, या सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की ड्यूटी बढ़ाना।

  • स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन को गांवों में आशा / आंगनवाड़ी / प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की निगरानी करना चाहिए कि वे सचमुच काम कर रहे हों और आपात स्थिति में कितने समय में मदद पहुँच सके।

  • बारिश और प्राकृतिक विकारों को देखते हुए आपदा प्रबंधन की योजना तैयार हो — कौन-सी सड़कें सबसे ज़्यादा प्रभावित होती हैं, कहाँ अस्थायी पुल बने, आदि।


निष्कर्ष

बंडी मुरियामी की मौत एक दर्दनाक प्रतीक है कि यदि基础इंफ्रास्ट्रक्चर — खासकर सड़क, आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधा, अस्पताल पहुँच — समय रहते सुनिश्चित न हों, तो जीवन भी बचाया नहीं जा सकता।

यह घटना हमें याद दिलाती है कि वक़्त और दूरी जीवन-मरण का अंतर हो सकते हैं।

यदि सरकार, स्थानीय प्रशासन, और सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र मिलकर काम करें, तो ऐसे हादसों को रोका जा सकता है। यह जरूरी है कि गाँव-गाँव तक सुरक्षित रास्ते हों, आपातकालीन सेवाएँ समय पर पहुँच सकें, और मरीजों को ज़रूरी इलाज देर न हो।

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