कोयला घोटाले में बड़ा आरोप: एक आईपीएस अधिकारी ने दी 11.5 करोड़ की राशि सूर्यकांत को

कोयला घोटाले में बड़ा आरोप: एक आईपीएस अधिकारी ने दी 11.5 करोड़ की राशि सूर्यकांत को

29, 9, 2025

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छत्तीसगढ़ में कोयला क्षेत्र से जुड़ी एक बड़ी घोटाला की खबर सामने आई है जिसमें एक उच्च पुलिस अधिकारी पर आरोप है कि उसने 11.5 करोड़ रुपए एक शख्स सूर्यकांत को दिए। इस मामले ने राज्य की राजनीति, प्रशासन और भ्रष्टाचार की लड़ाई को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।

आरोपों की शुरुआत और हकीकत

यह आरोप सार्वजनिक किया गया कि एक आईपीएस अधिकारी ने अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए राशि ट्रांसफर की। आरोपों का यह दायरा बताता है कि कोयला परिवहन या कोयला व्यापार में बड़ी रकम का लेन-देन हो रहा था। बताया गया है कि इस अधिकारी ने 5.67 करोड़ रुपए तिवारी से लिए, और इसके बाद 2 करोड़ रुपए और अन्य स्रोतों से राशि जुटाई। यह लेनदेन एक बड़े नेटवर्क और ढांचे का हिस्सा प्रतीत होता है।

कोयला परिवहन और अवैध वसूली का चक्र

यह मामला सिर्फ एक सरकारी अधिकारी और एक व्यक्ति के बीच का लेन-देन नहीं लगता। आरोप है कि कोयला ट्रांसपोर्टेशन की प्रक्रिया में हर टन पर “इलिजिट लीवी” (अवैध वसूली) लगाई जाती थी। इस वसूली का दायरा बहुत बड़ा था — प्रतिदिन करोड़ों की धनराशि घूमती थी।

अधिकारियों का दावा है कि यह राशि सिर्फ व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं ली जाती थी, बल्कि उससे निवेश, रिश्वत और राजनीतिक लाभ भी लिया जाता था। प्रक्रिया में धन को “बेनामी” या नामी रहित संपत्तियों में लगाना, संपत्ति खरीदना और सिस्टम को प्रभावित करना शामिल हो सकता है।

गिरफ्तारी और छापे

जब यह मामला उजागर हुआ, तो केंद्रीय जांच एजेंसियों ने कई छापे मारे। कई जगहों पर अधिकारियों, व्यापारियों और वशीकरण नेटवर्क से जुड़े ठिकानों की तलाशी ली गई। नकदी, दस्तावेज़, संपत्तियाँ जब्त की गईं।
कुछ आरोपियों ने स्वीकार किया कि वह रोजाना बड़ी राशि को संभालते थे और वसूली में सक्रिय थे।
इन कार्रवाईयों ने यह संकेत दिया कि आरोपों में गंभीरता है और इसे सिर्फ मीडिया कवरेज नहीं कहा जा सकता।

राजनीतिक और प्रशासनिक असर

इस खुलासे ने राजनीतिक पटल पर भी हलचल मचाई है। विपक्ष ने सरकार और पुलिस सिस्टम पर सवाल खड़े किए हैं कि कैसे एक आईपीएस अधिकारी इस कदर घुसपैठ कर सकता है।
साथ ही, यह मामला यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार सिर्फ छोटे स्तर तक सीमित नहीं — बड़े सिस्टम में, बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों तक पहुँच चुका है।
सरकार और जांच एजेंसियों पर दबाव है कि वे इस मामले को पारदर्शी और निष्पक्ष ढंग से सुलझाएँ, और दोषियों को सजा दिलाएँ।

चुनौतियाँ और सवाल

  1. साक्ष्य जुटाना — बड़े अधिकारियों और व्यापारियों के बीच लेन-देन को छिपाना आसान होता है। दस्तावेज़, बैंक रसीदें, मनी ट्रेल्स को पाना कठिन हो सकता है।

  2. राजनीतिक दबाव — ऐसे मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप या दबाव बनना आम है। अधिकारी स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर पाते।

  3. सत्यापन और न्याय — आरोप लगाने से ज़्यादा ज़रूरी है कि दोषी साबित हो। न्यायपालिका और जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता दांव पर है।

  4. रोकथाम व्यवस्था — यदि सिस्टम में रोकथाम नहीं हुई, तो दूसरे अधिकारी या समूह भी इसी तरह की गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं।

निष्कर्ष

यह मामला सिर्फ एक भ्रष्ट कार्रवाई का खुलासा नहीं है — यह चेतावनी है कि हमारे प्रशासनिक तंत्र में गड़बड़ी की जड़ें कितनी गहरी हो सकती हैं। हमें यह समझना होगा कि उच्च पदों पर बैठा अधिकारी भी कानून और नैतिकता के दायरे में आना चाहिए।
इस घोटाले से समाज, मीडिया और जनता को अपनी भूमिका याद आनी चाहिए — सतर्क रहना, सवाल खड़े करना और जवाब मांगना। और सबसे ज़रूरी — निष्पक्ष और सशक्त जांच होना चाहिए, ताकि ऐसे आरोपों का अंत हो सके और भरोसा बहाल हो सके।

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