आकाशीय बिजली ने छीना तीन जीवन: दो महिलाएं और एक किशोरी की मौत, एक घायल

आकाशीय बिजली ने छीना तीन जीवन: दो महिलाएं और एक किशोरी की मौत, एक घायल

29, 9, 2025

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कवर्धा (कबीरधाम) जिले में मंगलवार को आकाशीय बिजली की तीव्र चपेट ने एक बड़े हादसे का रूप ले लिया। दो महिलाएं जंगल में भाजी तोड़ने गई थीं, जबकि दो किशोरियां खेत से लौट रही थीं — मौसम अचानक बिगड़ा और बिजली गिरने से तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और एक किशोरी गंभीर रूप से घायल हो गई। घटना ने ग्रामीणों में बड़ा शोक फैला दिया है।


घटनाक्रम: दो अलग-अलग स्थानों पर दुःखद मंजर

जंगल में भाजी तोड़ने गई महिलाएं

कुकदूर थाना क्षेत्र के बाहपानी गाँव की रहने वाली दो महिलाएं — तिहरीबाई (पति ज्ञान सिंह बैगा, उम्र ~ 40 वर्ष) और रामबाई (पति भगत सिंह बैगा, उम्र ~ 34 वर्ष) — जंगल में चरोटा भाजी तोड़ने गई थीं। रविवार की दोपहर बाद वे घर नहीं लौटीं। रात होते-होते परिजन उनकी खोज में निकल पड़े। आशंका के आधार पर अगली सुबह जंगल की ओर खोजबीन की गई, तो झाड़ियों के बीच दोनों का क्षत-विक्षत शव मिला। 

स्थानीय लोगों और पुलिस के अनुसार, तेज बारिश और तेज गर्जना के साथ बिजली गिरी जिसने दोनों महिलाओं को तीव्र रूप से झुलसा दिया। घटना के बाद पुलिस मौके पर पहुंची, पंचनामा किया गया और शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। अंतिम संस्कार उसी दिन देर शाम किया गया। 


खेत से लौटती किशोरियों पर बिजली का कहर

इसी दिन एक और घटना सामने आई: बोड़ला क्षेत्र के मुंडघुसरी जंगल में स्थित चटवाटोला के पास रामयति उर्फ रामप्यारी (17 वर्ष) और प्रसदिया बाई (17 वर्ष) नामक दो किशोरियां खेत से वापसी कर रही थीं। अचानक मौसम बदल गया और बिजली गिरने से दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ा। 

रामयति को घटनास्थल पर ही मौत हो गई। जबकि प्रसदिया बाई गंभीर रूप से झुलस गई। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, घटना के बाद घायल किशोरी को तुरंत अस्पताल ले जाने के बजाय ग्रामीणों ने कोदो (अनाज) के ढेर में दबा दिया, मान्यता यह कि इससे ठंडक मिले और हालत स्थिर हो। इस अजीब मगर संस्कार-प्रेरित कार्रवाई के बाद उसे बोड़ला स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, और वहाँ से जिला अस्पताल रेफर किया गया। उसकी हालत फिलहाल खतरे से बाहर बताई जा रही है। 


पहचान, प्रतिक्रिया और सामाजिक प्रभाव

  • मृतकों में दो महिलाएं व एक किशोरी शामिल हैं। उनकी आयु, मूल गाँव और परिवार के हालात की जानकारी सामने आई है।
  • घायल किशोरी (प्रसदिया बाई) की उम्र 17 वर्ष है और वह झुलसी हालत में अस्पताल में है।
  • ग्रामीण एवं पुलिस का कहना है कि कबीरधाम जिले में हर वर्ष आकाशीय बिजली की चपेट में 10 से अधिक लोगों की मौत होती है, लेकिन अक्सर ऐसी घटनाओं पर व्यापक जागरूकता अभियान नहीं चलाए जाते।
  • कई गांवों में बिजली गिरे तो ग्रामीण कुछ पुरानी मान्यताओं अथवा अंधविश्वासों के सहारे प्रतिक्रिया देते हैं (जैसे टूटी चीज़ को तुरंत छूने से बचना, घायलों को ठंडी चीज़ों में रखना आदि) — जो आधुनिक मेडिकल या सुरक्षा उपायों से मेल नहीं खाते।


चुनौतियाँ और सबक

१. चेतना और जागरूकता की कमी

ग्रामीण इलाकों में अक्सर बिजली गिरने की घटनाओं को “प्राकृतिक शाप” की तरह समझा जाता है। लेकिन बेहतर शिक्षा, स्थानीय प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभागों को मिलकर ग्रामीणों को बताना चाहिए कि बिजली गिरने की स्थिति में क्या करना सुरक्षित है — जैसे कि तुरंत छत या बंद जगह पर जाना, ऊँचे पेड़ों और धातु वस्तुओं से दूर रहना, ज़मीन से नज़र झुकाकर बैठ जाना आदि।

२. आपात चिकित्सा पहुँच और समय

प्राथमिक चिकित्सा सुविधा दूरदराज इलाकों में सीमित होती है। घायल को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाना चाहिए, न कि किसी अनावश्यक प्रक्रिया या परंपरागत उपायों में समय गंवाना चाहिए।
प्रसदिया बाई को कोदो के ढेर में दबाना इस तरह की परंपरागत प्रतिक्रिया का उदाहरण है — जिससे समय बेकार हो गया और हालत बिगड़ सकती थी।

३. मौसम पूर्व चेतावनी एवं अलर्ट प्रणाली

यदि मौसम विभाग, स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों के बीच अलर्ट प्रणाली बेहतर होती — जैसे बिजली गिरने की संभावना पर समय पर सूचनाएँ — तो लोग सुरक्षित आश्रयों में themselves पहुंच सकते थे।

४. डेटा और रिकॉर्ड बनाए रखना


हर वर्ष ऐसी घटनाओं की रिकॉर्डिंग और विश्लेषण होनी चाहिए — कौन से स्थानों में अधिक बिजली गिरती है, कौन से मौसम पैटर्न जुड़े हैं, और किस समय पर सबसे ज़्यादा जोखिम रहता है। इससे भविष्य की सुरक्षा योजनाएँ बेहतर बनाई जा सकती हैं।

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