देर होने पर अनुशासन की सख्ती: कवर्धा में 42 कर्मचारियों को कान पकड़कर माफी मंगवाना

देर होने पर अनुशासन की सख्ती: कवर्धा में 42 कर्मचारियों को कान पकड़कर माफी मंगवाना

29, 9, 2025

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कवर्धा (कबीरधाम) जिले में सरकारी कार्यालयों में अनुशासनहीनता को लेकर ऐसी घटना सामने आई कि चर्चा होना स्वाभाविक है। शुक्रवार सुबह कलेक्टर गोपाल वर्मा ने अचानक जिला पंचायत, जिला अस्पताल और करपात्री स्कूल में निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान देखा गया कि 42 कर्मचारी समय पर नहीं पहुंचे थे। इस पर कलेक्टर ने तत्काल एक कठोर कार्रवाई की — उन कर्मचारियों को उन सामने ही सार्वजनिक रूप से कान पकड़कर माफी माँगने के लिए कहा गया। इस घटना ने सरकारी संस्थानों में अनुशासन, गरिमा और मानवाधिकारों को लेकर बहस खड़ी कर दी है।


घटना की पूरी कहानी

सुबह लगभग 10 बजे, कलेक्टर गोपाल वर्मा ने जिला पंचायत कार्यालय पहुँचकर उपस्थिति रजिस्टर की पड़ताल की। वहां ज्ञात हुआ कि 42 कर्मचारी निर्धारित समय तक कार्यालय नहीं पहुँचे थे। यह मामला इतना गंभीर था कि उन कर्मचारियों के नामों के सामने “टीप” अंकित कर दिया गया और उनसे कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्देश दिया गया।

जब कर्मचारियों से जवाब सामने नहीं आया, तो कलेक्टर ने उनसे सार्वजनिक रूप से कान पकड़कर माफी माँगने का आदेश दिया। कई कर्मचारियों ने तुरंत कान पकड़ कर हाथ जोड़कर माफी माँगी और यह वादा किया कि आगे से समय का पालन अवश्य करेंगे।

कलेक्टर ने स्पष्ट कहा कि जिला पंचायत, जिला अस्पताल, स्कूल व अन्य जनसेवा संस्थान ऐसे स्थान हैं जहाँ समय की पाबंदी आवश्यक है। यदि निर्धारित समय पर कर्मचारी कार्यालय में उपस्थित न हों, तो जनता को सेवा देने में बाधा आती है। उन्होंने यह भी कहा कि शासन ने कामकाज की शुरुआत सुबह 10 बजे तय की है, और इस नियम में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।


विरोध और प्रतिक्रिया

छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन इस घटना को अपमानजनक और असंवैधानिक ठहराता है। उनका कहना है कि यदि किसी कर्मचारी ने देर की है, तो दंड हो सकता है, लेकिन सार्वजनिक अपमान करना सिविल सेवा आचरण संहिता के खिलाफ है। उन्होंने कलेक्टर की इस कार्रवाई को अमर्यादित बताया और उसे वापस लेने की मांग की है।

एसोसिएशन का कहना है कि इस तरह की कार्रवाई से न सिर्फ कर्मचारियों की गरिमा टूटती है, बल्कि यह भविष्य में सरकारी कार्यों के प्रति मनोबल को भी प्रभावित कर सकती है।


इस घटना का महत्व और संदेश

यह घटना सिर्फ “किसी का देर से आना” नहीं बताती, बल्कि इसके पीछे कई बड़ी बातें हैं:

  1. अनुशासन की अनिवार्यता
    सरकारी कार्यालयों में समय का पालन किसी सजावट की बात नहीं, बल्कि जनता की सेवा का एक मूल आधार है। समय की पाबंदी से ही व्यवस्था सुचारू और भरोसेमंद बनती है।

  2. मानव गरिमा बनाम कठोर कार्रवाई
    हालांकि अनुशासन जरूरी है, पर कार्रवाई का तरीका संवेदनशील हो। सार्वजनिक अपमान की पद्धति कर्मचारी वर्क कल्चर को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।

  3. नीति और कानून की सीमाएँ
    राज्य शासन और कर्मचारी सेवा नियमों में सजा व अनुशासन के प्रावधान होते हैं। पर क्या नियम सार्वजनिक अपमान को अनुमति देते हैं? इस तरह के कदम संवैधानिक अधिकारों और सिविल सेवा आचरण संहिता की सीमाओं को चुनौती दे सकते हैं।

  4. जनता की दृष्टि
    आम नागरिक इस घटना को देख कर दो तरह की प्रतिक्रियाएँ दे सकते हैं — एक, वे कहेंगे “वाह! शासन सख्ती कर रहा है” और दूसरा, “ये असभ्य व्यहार है, कर्मचारी भी इंसान हैं।” यह संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

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