बिजली गिरने से बैगा युवक की मौत, ईसाई रीति से दफनाने को लेकर विवाद

बिजली गिरने से बैगा युवक की मौत, ईसाई रीति से दफनाने को लेकर विवाद

29, 9, 2025

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कबीरधाम जिले के एक दूरस्थ जंगल क्षेत्र में एक दुखद घटना हुई, जिसने धार्मिक, सामाजिक और प्रशासनिक सवालों को जन्म दिया है। एक बैगा युवक के बिजली गिरने से मरने के बाद, जब उसका अंतिम संस्कार ईसाई धर्म की रीति से किया गया, तो उसी समय बैगा समुदाय में आक्रोश छिड़ गया। विवाद इस बात को लेकर है कि क्या उसे उसकी पारंपरिक परंपराओं के अनुसार ही दफनाया जाना चाहिए था।

घटनाक्रम

24 वर्षीय अमर सिंह (पिता दल सिंह) ग्राम कांदावानी के आश्रित टोला ठेंगाटोला का रहने वाला था। एक दिन वह खेतों के किनारे ही था जब आकाशीय बिजली गिर गई। बिजली गिरने से वह गंभीर रूप से घायल हो गया, और पास के लोग उसे तुरंत घर ले आए।

परिजन ने पारंपरिक उपाय किए — जैसे कोदो (अनाज) के दानों पर रखकर “ठंडक देना” व अन्य लोक इलाज — लेकिन स्थिति बिगड़ी। तुरंत 108 एंबुलेंस मंगाई गई और उसे पहले कुकदूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। वहां से उसकी हालत गंभीर देखते हुए उसे जिला अस्पताल कवर्धा रेफर किया गया और अंततः रायपुर के डीकेएस अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन दम तोड़ दिया।

इलाज के दौरान अमर सिंह के भाई राम सिंह अस्पताल में मौजूद थे। बताया गया कि अस्पताल प्रशासन ने मृत्युपत्र जारी करने के नाम पर दो हज़ार रुपये की मांग की। परिजनों ने पैसे दिए, लेकिन उसके बाद भी शव को पोस्टमॉर्टम के बिना पार्इ दो श्रेणी से बाहर नहीं दिया गया। विवाद बढ़ने पर अंततः पोस्टमॉर्टम कर शव को गाँव भेजा गया।

दफन करने की रीति और विवाद

जब शव गांव पहुंचा, तो बीस बाद धूप में दाहसंस्कार न कर हिन्दू/पारम्परिक रीति से नहीं, बल्कि ईसाई धर्मानुसार दफनाया गया। इस फैसले ने बैगा समाज को झकझोरा। समाज नेताओं ने इसे धर्मांतरण की चेतावनी माना।

बैगा समुदाय के प्रदेश अध्यक्ष इतवारी माछीया ने कहा कि हमारे समाज में किसी की मृत्यु होने पर पारंपरिक रीति से ही दाह संस्कार किया जाता है — जल देना, पूजा-पाठ करना, अन्य सामाजिक रस्में निभाई जाती हैं। यदि किसी ने धर्म परिवर्तन किया है, तो वह सार्वजनिक रूप से स्वीकार करे — लेकिन किसी को उसकी मर्जी और बिना बताए परंपराओं को बदल देना अस्वीकार्य है।

उनका कहना था कि धर्मांतरण गाँवों में ढेरों प्रलोभन, इलाज या आर्थिक मदद के नाम पर किया जा रहा है — ख़ासकर उन परिवारों को लक्षित कर जो आर्थिक तंगी में हों।

प्रशासन और सोशल मीडिया में नाराज़गी

परिजनों और समाज ने अस्पताल प्रबंधन पर आरोप लगाए कि उन्होंने मृत्युपत्र जारी करने के नाम पर रिश्वत ली और पोस्टमॉर्टम प्रक्रिया को दबाया। प्रशासन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने संवेदनशील मामले में पर्याप्त संवेदन नहीं दिखाया।

सोशल मीडिया पर यह मामला तेजी से वायरल हुआ। लोगों ने पूछा कि क्या किसी की धार्मिक मान्यताओं को अनदेखा कर दिया जाना चाहिए? क्या कानून और संवैधानिक अधिकारों के तहत, व्यक्ति की धार्मिक पहचान की रक्षा नहीं होनी चाहिए?

महत्वपूर्ण चर्चाएँ और सबक

  1. धर्म की आज़ादी बनाम पारंपरिक पहचान
    संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। लेकिन जब किसी समुदाय की सांस्कृतिक पहचान गहरे जड़ें रखती हो, तो किसी की मृत्यु के बाद उसकी पारंपरिक विधि को दरकिनार करना संवेदनशील विषय बन जाता है।

  2. इच्छा और स्पष्ट स्वीकृति
    यदि मृतक पहले से ही किसी धर्म को मानता हो — और उसने स्पष्ट रूप से अपनी इच्छा व्यक्त की हो — तो उसके अनुसार कार्रवाई हो सकती है। लेकिन यदि परिवार और समुदाय से पूछे बिना धर्म परिवर्तन की रीति लागू की जाए, तो यह विवाद की भूमि बन सकती है।

  3. आदिवासी समाज की जागरूकता
    कई आदिवासी क्षेत्रों में जानकारी, शिक्षा और संसाधन कम पहुंचते हैं। जब लोग बीमारी या मृत्यु की स्थिति में इलाज, आर्थिक मदद की उम्मीद करते हैं, तो उन्हें प्रलोभन दिया जाता है — और धर्मांतरण का प्रस्ताव सामने आ सकता है। ऐसे इलाकों में जागरूकता अभियान ज़रूरी है।

  4. प्रशासन की भूमिका
    अस्पताल, प्रशासन और स्थानीय सरकार को संवेदनशील तरीके से काम करना चाहिए। मृत्युपत्र जारी करना, पोस्टमॉर्टम करना और शव सुविधा से सुपुर्द करना — ये सभी कार्य पारदर्शिता और नीति के अनुरूप होने चाहिए। रिश्वत लेने या पारदर्शिता का अभाव राज्य तंत्र पर सवाल उठाता है।

  5. समाज में सहिष्णुता
    कभी-कभी धार्मिक पहचान बदलने की प्रक्रिया होती है, और यह व्यक्ति की मर्जी हो सकती है, लेकिन जब यह समुदाय की सहमति और पारस्परिक संवाद के बिना होती है, तो वह विवाद को जन्म देती है। सहिष्णुता, संवाद और सम्मान से ही इस तरह की घटनाओं में शांति बनी रह सकती है।

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