केंद्रीकृत प्रवेश पोर्टल के कारण कॉलेजों में दाखिले कम — छिन्ना का आरोप

केंद्रीकृत प्रवेश पोर्टल के कारण कॉलेजों में दाखिले कम — छिन्ना का आरोप

29, 9, 2025

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अमृतसर के शिक्षा क्षेत्र में एक विवाद उठ खड़ा हुआ है, जहाँ राजिंदर मोहन सिंह छिन्ना समेत कई शिक्षा व्यवस्थापक आरोप लगा रहे हैं कि राज्य सरकार द्वारा लगाई गई केंद्रीयकृत प्रवेश पोर्टल प्रणाली के कारण कॉलेजों में दाखिले घटे हैं। उनका कहना है कि इस नए मॉडल ने पारंपरिक कॉलेज-स्वतंत्र प्रवेश व्यवस्था को बाधित किया और शिक्षा संस्थानों की आज़ादी व संकेतों को अनदेखा किया गया।


आरोप और शिकायतें

  • छिन्ना जैसे नेताओं का कहना है कि कई कॉलेज पहले अपनी स्वयं की ऑनलाइन प्रवेश प्रणालियाँ चला रहे थे, लेकिन अब उन्हें इस नए पोर्टल का हिस्सा होने का दबाव दिया गया है।

  • वे तर्क देते हैं कि इससे दाखिले प्रभावित हुए हैं — छात्रों को आवेदन करने में कठिनाइयाँ आई हैं, और कुछ अभ्यर्थियों ने इस नए सिस्टम की जटिलता की वजह से कॉलेजों में दाखिला लेने से हाथ पीछे खींच लिया।

  • उन्होंने यह भी कहा है कि इस पोर्टल की संरचना सरकारी और सहायता प्राप्त कॉलेजों को ही बाध्य करती है, जबकि निजी विश्वविद्यालयों को इससे बाहर रखा गया है — जिससे एक प्रकार का पक्षपात उत्पन्न हो गया है।

  • छिन्ना का यह भी मानना है कि इस निर्णय को छात्रों, कॉलेजों और शिक्षकों के साथ चर्चा किए बिना थोपना उचित नहीं था।


क्या विरोध हो रहा है?

  • कई नॉन-गवर्नमेंट सहायता प्राप्त (aided) और गैर-सहायता प्राप्त (unaided) कॉलेजों ने इस पोर्टल व्यवस्था का विरोध करने की घोषणा की है।

  • उन्होंने इस केंद्रकृत मॉडल को “भेदभावपूर्ण” और “निष्पक्ष नहीं” कहा है।

  • इन कॉलेजों के प्रबंधन ने कहा है कि वे इस पोर्टल का हिस्सा नहीं लेंगे और अपनी मूल प्रवेश प्रक्रियाएँ जारी रखेंगे।

  • कुछ कॉलेजों ने तो छात्रों के प्रवेश परीक्षाओं को भी स्थगित किया, और कॉलेजों के गेट बंद कर दिए — एक तरह से विरोध स्वरूप — ताकि सरकार को यह दिखाया जा सके कि यह निर्णय शिक्षा प्रणाली को अस्थिर कर सकता है। 

  • इस विरोध के चलते, कुछ विश्वविद्यालयों ने परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं क्योंकि कॉलेजों ने क्लासरूम दरवाजे नहीं खोले। 


क्या दिक्कतें सामने आई हैं?

  1. छात्रों व अभ्यर्थियों की परेशानी
    नए पोर्टल में आवेदन करना, चयन प्रक्रिया को समझना, विकल्प चुनने की जटिलता — ये सभी छात्रों के लिए बोझ बन सकते हैं, खासकर ग्रामीण या तकनीक कम जानने वाले छात्रों के लिए।

  2. कॉलेजों की स्वायत्तता कम हुई
    कॉलेजों ने जो अपनी प्रवेश नीतियाँ तैयार की थीं — जैसे कि अपने आवेदन तंत्र, अपनी शर्तें — अब उन पर नियंत्रण कम हो गया है।

  3. भेदभाव की धारणा
    अगर कुछ कॉलेजों को पोर्टल में शामिल किया गया और कुछ को नहीं, तो यह एक तरह का विभाजन पैदा कर सकता है — जिससे छात्रों और कॉलेजों को यह लग सकता है कि निर्णय निष्पक्ष नहीं हैं।

  4. कम दाखिले / रिक्त सीटें बढ़ने की संभावना
    अगर छात्रों को आवेदन करने में झंझट हो, तो वे दाखिला नहीं लेंगे, और कॉलेजों में सीटें खाली रह सकती हैं।


क्यों यह मामला अहम है?


  • शिक्षा एक संवेदनशील क्षेत्र है — हर निर्णय छात्रों, अभिभावकों और समाज को प्रभावित करता है।

  • यदि कॉलेजों की आज़ादी और शिक्षा संस्थानों की स्थानीय परिस्थितियों को दरकिनार कर दिया जाए, तो सिस्टम कठोर, अनुकूलन-हीन और गैर-लचीला बन सकता है।

  • शिक्षा विभाग या सरकार को यह ध्यान देना चाहिए कि नीतियाँ थोपी नहीं जाएँ; संवाद, समीक्षा, और सहभागिता बहुत ज़रूरी है।

  • यदि विद्यार्थियों और कॉलेजों की कठिनाइयाँ सचमुच जटिल हों, तो प्रवेश प्रक्रिया अपेक्षित संख्या तक नहीं पहुँच पाएगी — जो कि शिक्षा प्रणाली की साख को कमजोर करती है।

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