छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का अहम फैसला: 14 वर्षों से अलग रह रहे दंपती का तलाक, पत्नी को 15 लाख रुपये गुजारा भत्ता

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का अहम फैसला: 14 वर्षों से अलग रह रहे दंपती का तलाक, पत्नी को 15 लाख रुपये गुजारा भत्ता

11, 8, 2025

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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक अहम निर्णय में पति की अपील को स्वीकार करते हुए 14 वर्षों से अलग रह रहे दंपती का विवाह रद्द कर दिया और पत्नी को 15 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। यह फैसला विवाह विवाद, दहेज उत्पीड़न और वैवाहिक जीवन में क्रूरता से जुड़े मामलों में न्याय का प्रतीक माना जा रहा है।


विवाद का इतिहास

कोरबा जिले के कटघोरा क्षेत्र में रहने वाले दंपती के बीच वैवाहिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा। शादी के तुरंत बाद ही पत्नी और पति के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए। पत्नी ने पति और ससुरालवालों पर दहेज उत्पीड़न और मानसिक अत्याचार के आरोप लगाए। इन आरोपों के चलते वैवाहिक जीवन असंभव बन गया और दंपती ने धीरे-धीरे अलग रहने का निर्णय लिया।

लगभग 14 वर्षों तक दोनों एक-दूसरे से अलग रहे, और इस अवधि के दौरान कई बार पुनर्मिलन की कोशिशें की गईं, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकल पाया। इस लंबे अंतराल ने अदालत के समक्ष तलाक और गुजारा भत्ते का मामला प्रस्तुत करने का आधार बनाया।


कोर्ट की कानूनी प्रक्रिया

पत्नी ने प्रारंभिक रूप से फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उसने पति और ससुरालवालों पर आरोप लगाए थे। इसके बाद पति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की। कोर्ट ने पूरे मामले की गंभीरता से जांच की और सभी दस्तावेजों, गवाहों और आरोपों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया।

अदालत ने पाया कि पत्नी और पति के बीच वैवाहिक जीवन में पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अगर दोनों एक साथ रहने का निर्णय नहीं ले सकते, तो विवाह को समाप्त करना ही उचित है।


कोर्ट का निर्णय और टिप्पणी

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पत्नी द्वारा वैवाहिक जीवन से दूरी बनाना क्रूरता की श्रेणी में आता है। न्यायालय ने यह भी माना कि 14 वर्षों तक अलग रहने के बाद दोनों के रिश्ते में मेलजोल की संभावना नहीं है। अतः तलाक की डिक्री प्रदान करना न्यायसंगत कदम है।

साथ ही अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी और बेटी के लिए 15 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता अदा करे। यह राशि उनके जीवनयापन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित की गई है।


गुजारा भत्ते का महत्व

गुजारा भत्ता किसी भी तलाकशुदा पत्नी के जीवन और सम्मान को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस मामले में, अदालत ने पत्नी और बेटी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए राशि निर्धारित की। इससे यह सुनिश्चित होगा कि तलाक के बाद भी वे आर्थिक रूप से सुरक्षित रहें।

विशेष रूप से यह फैसला यह संदेश देता है कि समाज में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अदालत ने पति को यह जिम्मेदारी दी कि वह निर्धारित समय के भीतर राशि का भुगतान करे, ताकि पत्नी और बेटी के जीवन में स्थिरता आए।


सामाजिक और कानूनी पहलू

इस मामले ने वैवाहिक विवाद और दहेज उत्पीड़न के मामलों में कानूनी प्रणाली की भूमिका को स्पष्ट किया। यह दिखाता है कि लंबे समय तक अलग रहने वाले दंपती के मामले में न्यायपालिका न केवल कानूनी अधिकारों की रक्षा करती है, बल्कि आर्थिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है।

साथ ही, यह फैसला समाज में यह संदेश देता है कि महिलाओं को उनके अधिकारों और आर्थिक सुरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता। उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि तलाक का निर्णय केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसके साथ महिला और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी न्याय का हिस्सा है।


विशेषज्ञों की राय

कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला परिवार न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों के लिए महत्वपूर्ण मिसाल है। यह दिखाता है कि अदालतें न केवल वैवाहिक संबंधों के टूटने को कानूनी रूप से स्वीकार करती हैं, बल्कि गुजारा भत्ता और अन्य आर्थिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से पीड़ित पक्ष के जीवन को संतुलित रखने का प्रयास करती हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, 14 साल तक अलग रहने के बाद तलाक का निर्णय समयबद्ध और न्यायसंगत था। इसके अलावा, 15 लाख रुपये का गुजारा भत्ता महिला और उनके परिवार के लिए पर्याप्त आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।


निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह निर्णय परिवार कानून में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा का महत्वपूर्ण उदाहरण है। 14 वर्षों से अलग रहने वाले दंपती के मामले में न्यायपालिका ने स्पष्ट संदेश दिया कि तलाक केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि इसके माध्यम से आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना भी न्याय का हिस्सा है।

इस फैसले से यह भी प्रमाणित होता है कि न्यायपालिका ऐसे मामलों में त्वरित और निष्पक्ष निर्णय देती है। तलाकशुदा पत्नी और बेटी को 15 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता मिलना न केवल उनके जीवन को सुरक्षित करेगा, बल्कि समाज में महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के प्रति जागरूकता भी बढ़ाएगा।

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह फैसला महिला सशक्तिकरण, कानूनी सुरक्षा और सामाजिक न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

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