“फार्मासिस्ट स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था के अहम स्तंभ” — प्रमोद सिंह की बातों ने जगाई चर्चा

“फार्मासिस्ट स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था के अहम स्तंभ” — प्रमोद सिंह की बातों ने जगाई चर्चा

30, 9, 2025

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झारखंड के बॉकारो में हाल ही में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में फार्मासिस्टों की भूमिका पर एक महत्वपूर्ण हिसाब-किताब सामने आया। वहाँ के वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी प्रमोद सिंह ने कहा कि फार्मासिस्ट सिर्फ दवाएँ बांटने वाले नहीं हैं, बल्कि वे सार्वजनिक स्वास्थ्य के एक केंद्रीय स्तंभ हैं।

उनका कहना था कि जब दवाओं का सही चयन, उचित मात्रा और उचित समय पर वितरण हो, तभी रोगी को बेहतर इलाज सुनिश्चित किया जा सकता है। इस संदर्भ में फार्मासिस्टों की भूमिका — दवा-अनुपालन (compliance), जानकारी देना, दुष्प्रभावों की निगरानी — बहुत महत्वपूर्ण होती है।

साथ ही, प्रमोद सिंह ने यह भी कहा कि फार्मासिस्टों को अधिक मान्यता मिलनी चाहिए, उन्हें स्वास्थ्य टीम का हिस्सा माना जाना चाहिए, और उन्हें प्रशिक्षण, संसाधन तथा आधुनिक उपकरणों की सुविधा दी जानी चाहिए ताकि वे अपनी कार्यक्षमता बढ़ा सकें।

उनका तर्क था कि आज के समय में स्वास्थ्य क्षेत्र जटिल हो गया है — रोगों की विविधता, दवाओं की बढ़ती संख्या और नई चिकित्सा दिशा — ऐसे में यदि फार्मासिस्टों को पीछे रखा जाए, तो यह प्रणाली अधूरी रह जाएगी।

उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग को यह देखना चाहिए कि फार्मासिस्टों का रोल सिर्फ “पर्ची भरा करो, दवाई दे दो” तक सीमित न हो — बल्कि उन्हें रोगी शिक्षा, दवा प्रबंधन, फार्मास्युटिकल देखभाल (pharmaceutical care) का अवसर मिले।

अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस विचार को समर्थन दिया और कहा कि यदि फार्मासिस्टों को अधिक भागीदारी मिले तो दवाओं के अनियंत्रित उपयोग, स्वयं-उपचार और दुष्प्रभावों की घटनाएँ कम हो सकती हैं।

इस तरह, यह विमर्श यह दर्शाता है कि भारत में स्वास्थ्य सुधारों के लिए फार्मासिस्टों की भूमिका को पुनर्स्थापित करना ज़रूरी हो गया है — और यह बदलाव मरीजों, डॉक्टरों और स्वास्थ्य सिस्टम सभी के लिए फायदेमंद हो सकता है।

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